ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 78/ मन्त्र 9
ऋषिः - सप्तवध्रिरात्रेयः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
दश॒ मासा॑ञ्छशया॒नः कु॑मा॒रो अधि॑ मा॒तरि॑। नि॒रैतु॑ जी॒वो अक्ष॑तो जी॒वो जीव॑न्त्या॒ अधि॑ ॥९॥
स्वर सहित पद पाठदश॑ । मासा॑न् । श॒श॒या॒नः । कु॒मा॒रः । अधि॑ । मा॒तरि॑ । निः॒ऽऐतु॑ । जी॒वः । अक्ष॑तः । जी॒वः । जीव॑न्त्या । अधि॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
दश मासाञ्छशयानः कुमारो अधि मातरि। निरैतु जीवो अक्षतो जीवो जीवन्त्या अधि ॥९॥
स्वर रहित पद पाठदश। मासान्। शशयानः। कुमारः। अधि। मातरि। निःऐतु। जीवः। अक्षतः। जीवः। जीवन्त्याः। अधि ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 78; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 20; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 20; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यो जीवोऽधि मातरि दश मासाञ्छशयानोऽक्षतः कुमारो निरैतु स जीवो जीवन्त्या अधि जीवति ॥९॥
पदार्थः
(दश) (मासान्) (शशयानः) कृतशयनः (कुमारः) (अधि) उपरि (मातरि) (निरैतु) निर्गच्छतु (जीवः) यः प्राणान् धरति (अक्षतः) क्षतवर्जितः (जीवः) (जीवन्त्याः) (अधि) ॥९॥
भावार्थः
त एव सन्ताना उत्तमा भवन्ति ये दश मासा यावत्तावद् गर्भे स्थित्वा जायन्ते ॥९॥ अत्राश्विस्त्रीपुरुषगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टसप्ततितमं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (जीवः) प्राण आदि का धारण करनेवाला (अधि) ऊपर (मातरि) माता में (दश) दश (मासान्) महीनों तक (शशयानः) शयन करता हुआ (अक्षतः) घाव से रहित (कुमारः) बालक (निरैतु) निकले वह (जीवः) जीव (जीवन्त्याः) जीवती हुई के (अधि) ऊपर जीवता है ॥९॥
भावार्थ
वे ही सन्तान उत्तम होते हैं कि जो दश महीने पूर्ण हों, जबतक तबतक गर्भ में स्थित होकर प्रकट होते हैं ॥९॥ इस सूक्त में अश्विपदवाच्य स्त्रीपुरुष के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अठहत्तरवाँ सूक्त और बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
गर्भविज्ञान, उत्तम प्रसवविज्ञान ॥
भावार्थ
भा०-( कुमारः ) बालक (मातरि अधि) माता के भीतर अधिकार पूर्व अर्थात् माता के शरीर पर अपना विशेष प्रभाव रखता हुआ ( दश-मासान् शशयानः ) दस मास तक सुखपूर्वक प्रसुप्त रूप से रहता हुआ ( जीवः ) जीवित रूप में ( अक्षतः ) किसी प्रकार की चोट, आघात, अंग-भंग को प्राप्त न होकर ( जीवः ) जीव ( जीवन्त्याः अधि ) जीती हुई माता से ( निर आ एतु ) बाहर आ जावे । इति विंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सप्तवध्रिरात्रेय ऋषिः।। अश्विनौ देवते । ७, ९ गर्भस्राविणी उपनिषत् ॥ छन्दः— १, २, ३ उष्णिक् । ४ निचृत्-त्रिष्टुप् । ५, ६ अनुष्टुप् । ७, ८, ९ निचृद्-नुष्टुप् ।।
विषय
जीवः जीवन्त्याः
पदार्थ
[१] (कुमारः) = कुमार (दश मासान्) = दस महीनों तक (मातरि अधि) = मातृ गर्भ में (शशयानः) = अच्छी प्रकार (प्रसुप्त) = सी अवस्था में रहता हुआ (जीवः) = जीवन को धारण करनेवाला (निरैतु) = ना हि आनेवाला हो। मातृ गर्भ में सम्यक् पोषित होकर यह जीवन को बिताने के लिये बाहिर आये। (२) यह (अक्षतः) = अविक्षत अंग-प्रत्यंगोंवाला हो । (जीवः) = जीवनी शक्ति से परिपूर्ण हो । (जीवन्त्याः अधि) = जीवित माता से ही यह बाहिर आये बालक भी जीवित हो, उसकी माता भी।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से गर्भस्थ बालक के सब अंग-प्रत्यंग अविक्षत होते हैं तथा माता भी कष्टों से मृत नहीं होती। इस प्राणसाधना से उत्तम कर्मोंवाला यह 'सत्यश्रवाः' बनता है-'सत्यानि श्रवांसि यस्य' [praiseworthy actions] यह तीनों प्रकार के कष्टों से दूर 'आत्रेय' बनता है। यह उषाकाल से उत्तम कर्मों में प्रवृत्त होने की कामना रखता हुआ कहता है -
मराठी (1)
भावार्थ
जी दहा महिने पूर्ण होईपर्यंत गर्भात स्थित राहून जन्मतात तीच संताने उत्तम असतात. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Let the individual soul reposing in the mother’s womb for ten months be born as the baby, healthy and unhurt, in the mother’s state of good health and perfect life and live on as extension of the mother beyond her life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of childbirth geos on.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
May the babe who stayed for ten month's time lying in the mother's womb, come forth alive, from the living mother unharmed.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
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Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those babies are the best who are born after lying in the mother's womb for ten months.
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