ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 80/ मन्त्र 2
ए॒षा जनं॑ दर्श॒ता बो॒धय॑न्ती सु॒गान्प॒थः कृ॑ण्व॒ती या॒त्यग्रे॑। बृ॒ह॒द्र॒था बृ॑ह॒ती वि॑श्वमि॒न्वोषा ज्योति॑र्यच्छ॒त्यग्रे॒ अह्ना॑म् ॥२॥
स्वर सहित पद पाठए॒षा । जन॑म् । द॒र्श॒ता । बो॒धय॑न्ती । सु॒ऽमान् । प॒थः । कृ॒ण्व॒ती । या॒ति॒ । अग्रे॑ । बृ॒ह॒त्ऽर॒था । बृ॒ह॒ती । वि॒श्व॒म्ऽइ॒न्वा । उ॒षाः । ज्योतिः॑ । य॒च्छ॒ति॒ । अग्रे॑ । अह्ना॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एषा जनं दर्शता बोधयन्ती सुगान्पथः कृण्वती यात्यग्रे। बृहद्रथा बृहती विश्वमिन्वोषा ज्योतिर्यच्छत्यग्रे अह्नाम् ॥२॥
स्वर रहित पद पाठएषा। जनम्। दर्शता। बोधयन्ती। सुऽगान्। पथः। कृण्वती। याति। अग्रे। बृहत्ऽरथा। बृहती। विश्वम्ऽइन्वा। उषाः। ज्योतिः। यच्छति। अग्रे। अह्नाम् ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 80; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे सुशीलाः स्त्रियो ! यथैषा बृहद्रथा बृहती विश्वमिन्वा जनं दर्शता बोधयन्ती सुगान् पथः कृण्वत्युषा अग्रे यात्यह्नामग्रे ज्योतिर्यच्छति तथा यूयं भवत ॥२॥
पदार्थः
(एषा) (जनम्) (दर्शता) द्रष्टव्या भूमीः (बोधयन्ती) (सुगान्) सुखेन गच्छन्ति येषु तान् (पथः) मार्गान् (कृण्वती) प्रकाशं कुर्वती (याति) गच्छति (अग्रे) दिवसात्पुरः (बृहद्रथा) महान्तो रथा यस्याः सा (बृहती) महती (विश्वमिन्वा) या विश्वं सर्वं जगन्मिनोति (उषाः) प्रातर्वेला (ज्योतिः) प्रकाशम् (यच्छति) ददाति (अग्रे) प्रथमतः (अह्नाम्) दिवसानाम् ॥२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । याः स्त्रियः प्रभातवेलावत्स्वकीयान् पत्यादीन् सूर्योदयात्प्राक् चेतयन्त्यो गृहस्थान् बाह्यांश्च मार्गांश्छोधयन्त्य आगच्छतां पत्यादीनां कृताञ्जलयोऽग्रे तिष्ठन्ति सर्वदा विज्ञानं च प्रयच्छन्ति ता एव देशकुलभूषणानि भवन्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे उत्तम स्वभाववाली स्त्रियो ! जैसे (एषा) यह (बृहद्रथा) बड़े रथ जिसके ऐसी (बृहती) बड़ी (विश्वमिन्वा) संपूर्ण जगत् को प्रक्षेप करती अलग करती और (जनम्) मनुष्य को और (दर्शता) देखने योग्य भूमियों को (बोधयन्ती) जनाती हुई (सुगान्) सुखपूर्वक जिनमें चलें उन (पथः) मार्गों को (कृण्वती) प्रकाशित करती हुई (उषाः) प्रातर्वेला (अग्रे) दिन से आगे (याति) चलती है और (अह्नाम्) दिनों के (अग्रे) पहिले से (ज्योतिः) प्रकाश को (यच्छति) देती है, वैसे तुम होओ ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो स्त्रियाँ प्रभातवेला के सदृश अपने पति आदि को सूर्य्योदय से पहिले जगातीं, गृह और बाहर के मार्गों को साफ करतीं, आते हुए पतियों के हाथ जोड़ के आगे खड़ी होतीं और सब काल में विज्ञान को देती हैं, वे ही देश और कुल को शोभन करनेवाली हैं ॥२॥
विषय
जीवन मार्ग को सुखी बनाने वाली सहायक स्त्री ।
भावार्थ
भा०- ( एषा उषा ) यह प्रभात वेला जिस प्रकार ( दर्शता ) देखने योग्य होकर ( जनं बोधयन्ती ) जन्तु मात्र को जगाती हुई ( पथः सुगान् कृण्वती) मार्गों को सुगम, सुखदायक करती हुई (अग्रे) आगे २ बढ़ती चली जाती है । उसी प्रकार ( एषा ) यह ( उषा ) कान्तिमती, कमनीय गुणों वाली, पति की कामना करने वाली उत्तम स्त्री भी ( दर्शता ) दर्शनीय रूप, गुणों से युक्त होकर ( जनं बोधयन्ती ) समस्त मनुष्यों को सन्मार्ग और धर्म कर्मों का बोध कराती हुई मनुष्य या वृत पति के (पथः) जीवन के भावी मार्गों को ( सुगान् ) सुख पूर्वक गमन करने योग्य ( कृण्वती ) बनाती हुई ( अग्रे याति ) आगे आगे चलती है । विवाह के अवसर पर स्त्री परिक्रमा में जो आगे २ जाती है वह भी पति के संकट मार्गों को मानो सुगम कर देने के लिये स्वयं उन पर प्रथम चलने का अभिनय करती है । और जिस प्रकार उषा ( बृहद्रथा ) बड़े भारी रमणीय प्रकाश से युक्त, ( बृहती ) स्वयं बड़ी विस्तृत, ( विश्व-मिन्वा ) विश्व भर में व्याप्त होकर ( अह्नाम् अग्रे ) दिनों के पूर्व भाग में ( ज्योतिर्य-च्छति ) सबको प्रकाश देती है उसी प्रकार वह स्त्री भी (बृहद्-रथा) बड़े रथ पर चढ़कर पतिलोक को जाने वाली, वा ( बृहद्-रथा ) बड़े रमणीय, सुन्दर रूप और कर्म करने वाली, ( बृहती ) कुल को बढ़ाने वाली, होकर ( अह्नाम् अग्रे ) दिनों के पूर्व भाग में, मध्याह्न के पूर्व ही ( ज्योतिः यच्छति ) उत्तम अन्न प्रदान करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सत्यश्रवा आत्रेय ऋषिः । उषा देवता ।। छन्द:-१, ६ निचृत्-त्रिष्टुप् ।। २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ४, ५ भुरिक् पंक्ति: ।।
विषय
सत्पथ प्रवृत्ति-शक्ति- ज्योति
पदार्थ
[१] (एषा) = यह (दर्शता) = दर्शनीय उषा (जनं बोधयन्ती) = सोये हुए जनों को प्रबुद्ध करती हुई और (पथ:) = मार्गों को (सुगान्) = सुगमता से जाने योग्य (कृण्वती) = करती हुई (अग्रे याति) = आगे बढ़ती है। उषा जागने की प्रेरणा देती है, सत्पथ पर आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती हुई चलती है। [२] यह (बृहद्रथा) = बढ़ी हुई शक्तियोंवाले शरीर-रथवाली, बृहती वृद्धि की कारणभूत (उषा) = उषा (विश्वमिन्वा) = [ इन्व invigorate, gladden] सबको शक्तिशाली बनाती हुई (अह्रां अग्रे) = दिन के अग्रभाग में ही (ज्योतिः यच्छति) प्रकाश को देती है।
भावार्थ
भावार्थ- उषा हमें सत्पथ प्रवृत्त करती है, शक्तिशाली बनाती है और ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त कराती है। मन सत्पथ की रुचिवाला, शरीर शक्तिवाला व मस्तिष्क ज्ञान के प्रकाशवाला इस उषा से ही बनता है ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या स्त्रिया प्रभातवेळी आपल्या पती इत्यादींना सूर्योदयापूर्वी जागे करतात. घराचे व बाहेरचे मार्ग स्वच्छ करतात. पती बाहेरून येताच त्याचे स्वागत करतात व सर्व काळी विज्ञान देतात. त्याच देशाला व कुलाला सुशोभित करतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
This glorious dawn, vast and great, goes forward riding her mighty chariot, arousing humanity from sleep, lighting up easy paths for movement, all illuminative, giving light in advance of the day.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of attributes of women is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O good ladies! this fair dawn has many chariots or charming forms or appearances (overcomes the dispeller of darkness) and rouses up the people of the world. Showing them the worth-seeing earth and other things, and making the pathways easy to be travelled, the dawn goes in front, (advance. Ed.) giving the splendor at day's beginning. So you should also become.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The women who awaken their husbands before the sunrise, cleaning the paths (floors, corners and walls Ed.) of the house, stand before their husbands with folded hands and give good knowledge to all, are the ornaments (real jewels. Ed.) of the country and the family.
Foot Notes
(दर्शता ) द्रष्टव्या । (दर्शता ) दृशिर्-दर्शने । भृमृ दृशियजि० इति अतच् प्रत्ययः । ( उणादिकोषे ३-११० )। = Worth seeing earth and other things. (विश्वमिन्वा ) या विश्वं सर्वं जगन्मिनोति (ङु-मित्र ) प्रक्षेपे ( स्वा० )। = Which throws away or dispels, all darkness of the world. (रथो-रमते:) । = Charming forms.
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