ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 80/ मन्त्र 3
ऋषिः - सत्यश्रवा आत्रेयः
देवता - उषाः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ए॒षा गोभि॑ररु॒णेभि॑र्युजा॒नास्रे॑धन्ती र॒यिमप्रा॑यु चक्रे। प॒थो रद॑न्ती सुवि॒ताय॑ दे॒वी पु॑रुष्टु॒ता वि॒श्ववा॑रा॒ वि भा॑ति ॥३॥
स्वर सहित पद पाठएषा । गोभिः॑ । अ॒रु॒णेभिः॑ । यु॒जा॒ना । अस्रे॑धन्ती । र॒यिम् । अप्र॑ऽआयु । च॒क्रे॒ । प॒थः । रद॑न्ती । सु॒वि॒ताय॑ । पु॒रु॒ऽस्तु॒ता । वि॒श्वऽवा॑रा । वि । भा॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एषा गोभिररुणेभिर्युजानास्रेधन्ती रयिमप्रायु चक्रे। पथो रदन्ती सुविताय देवी पुरुष्टुता विश्ववारा वि भाति ॥३॥
स्वर रहित पद पाठएषा। गोभिः। अरुणेभिः। युजाना। अस्रेधन्ती। रयिम्। अप्रऽआयु। चक्रे। पथः। रदन्ती। सुविताय। देवी। पुरुऽस्तुता। विश्वऽवारा। वि। भाति ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 80; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे विदुषि स्त्रि ! यथैषोषा अरुणेभिर्गोभिर्युजाना रयिमस्रेधन्ती अप्रायु चक्रे पथो रदन्ती पुरुष्टुता विश्ववारा देवी सुविताय वि भाति तथा त्वं भव ॥३॥
पदार्थः
(एषा) उषाः (गोभिः) किरणैः (अरुणेभिः) आरक्तवर्णैः सह (युजाना) युक्ता (अस्रेधन्ती) साधयन्ती (रयिम्) धनम् (अप्रायु) यन्न प्रैति नश्यति तत् (चक्रे) करोति (पथः) मार्गान् (रदन्ती) लिखन्ती (सुविताय) ऐश्वर्य्याय (देवी) द्योतमाना (पुरुष्टुता) बहुभिः प्रशंसिता (विश्ववारा) विश्वैः सर्वैर्मनुष्यैर्वरणीया (वि, भाति) विशेषेण प्रकाशते ॥३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा पतिव्रता विदुषी विचक्षणा स्त्री गृहस्य प्रकाशिका वर्त्तते तथैवोषा ब्रह्माण्डस्य प्रकाशिका वर्त्तते ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्यायुक्त स्त्रि ! जैसे (एषा) यह प्रातर्वेला (अरुणेभिः) चारों ओर रक्त वर्णवाले (गोभिः) किरणों के साथ (युजाना) युक्त और (रयिम्) धन को (अस्रेधन्ती) सिद्ध करती हुई (अप्रायु) नहीं नष्ट होनेवाले को (चक्रे) करती है और (पथः) मार्गों को (रदन्ती) खोदती हुई (पुरुष्टुता) बहुतों से प्रशंसा की गई (विश्ववारा) सम्पूर्ण मनुष्यों से स्वीकार करने योग्य (देवी) प्रकाशित होती हुई (सुविताय) ऐश्वर्य्य के लिये (वि, भाति) विशेष करके प्रकाशित होती है, वैसे आप होओ ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पतिव्रता, विद्यायुक्त और चतुर स्त्री गृह को प्रकाशित करनेवाली होती है, वैसे ही प्रातर्वेला ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करनेवाली है ॥३॥
विषय
उत्तम गृहिणी ।
भावार्थ
भा०-जिस प्रकार उषा ( अरुणेभिः गोभिः ) लाल किरणों से ( युजाना ) संयोग करती हुई ( रयिम् अप्रायु चक्रे ) प्रकाश को स्थायी कर देती है और ( सुविताय ) सुख से जाने के लिये ( पथः रदन्ती ) मार्गों को चमकाती हुई ( विश्ववारा विभाति ) सबसे वरण योग्य होकर चमकती है उसी प्रकार ( एषा देवी ) यह विदुषी स्त्री भी ( अरुणेभिः गोभिः) अपनी अनुराग युक्त वाणियों से (युजाना) सब बातों का समाधान करती हुई, ( रयिम् ) गृह के ऐश्वर्य को ( अप्रायु ) कभी नष्ट न होने देने वाला ( चक्रे ) बनावे | वह ( सुविताय ) सुख से जीवन व्यतीत करने के लिये ( पथः ) स्वयं उत्तम २ मार्गों को ( रदन्ती ) बनाती हुई ( पुरु- स्तुता ) बहुतों से प्रशंसित होकर ( विश्व-वारा ) सबसे वरण करने योग्य, सर्वप्रिय, सब संकटों का वारण करने और सबको अन्नादि विभाग करने वाली होकर (वि भाति) विविध प्रकार से सबको अच्छी लगे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सत्यश्रवा आत्रेय ऋषिः । उषा देवता ।। छन्द:-१, ६ निचृत्-त्रिष्टुप् ।। २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ४, ५ भुरिक् पंक्ति: ।।
विषय
अप्रायुरयि
पदार्थ
[१] (एषा) = यह उषा (अरुणेभिः गोभिः) = तेजस्वी इन्द्रियों से (युजाना) = शरीर-रथ को युक्त करती हुई, (अस्त्रेधन्ती) = किसी प्रकार से हिंसित न करती हुई, (अप्रायु) = अविचलित स्थिर (रयिम्) = रयि को, ऐश्वर्य को (चक्रे) = करती है। उषाकाल का जागरण [क] इन्द्रियों को तेजस्वी बनाता है, [ख] शरीर को हिंसित नहीं होने देता, [ग] सब कोशों को उस उस ऐश्वर्य से युक्त करता है । [२] (सुविताय) = सुवित के लिये, दुरित से दूर होने के लिये, (पथः रदन्ती) = मार्गों का निर्माण करती हुई यह उषा देवी प्रकाशमयी है, हमारे जीवन को प्रकाशमय करती है। (पुरुष्टुता) = खूब ही स्तुतिवाली है, इसमें प्रबुद्ध होनेवाले व्यक्ति खूब ही प्रभु का स्तवन करते हैं। (विश्ववारा) = सब वरणीय वस्तुओंवाली है। सब वरणीय वस्तुओं को हमारे लिये देती हुई यह उषा (विभाति) = खूब ही चमकती है।
भावार्थ
भावार्थ- उषा जागरण से [१] इन्द्रियाँ तेजस्वी होती हैं, [२] सब अन्नमय आदि कोशों का ऐश्वर्य प्राप्त होता है, [३] सत्पथ प्रवृत्ति होती है, [४] प्रभु-स्तवन करते हुए हम सब वरणीय वस्तुओं को प्राप्त करते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी पतिव्रता विद्यायुक्त व चतुर स्त्री घर व्यवस्थित ठेवते. तशीच प्रातःकाळची वेळ ब्रह्मांडाला प्रकाशित करणारी असते. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Harnessing the crimson rays of the sun to her chariot, she goes unerringly, assiduously, creating unfailing wealth of light and rejuvenation. Marking paths of movement for the good of the people, the divine dawn shines, loved and adored by the people as the source of universal good.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The ideal women are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned lady! this dawn has harnessed reddish rays, enables men to acquire undecaying wealth by happiness. Praised by many, labor, and opens the paths to it is acceptable to all people, shines bright for prosperity. So you should also become.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As a chaste highly learned lady, who is intelligent and clever is illuminator (pride. Ed) of the home. So is the dawn illuminator of the universe.
Foot Notes
(गोभिः) किरणः। गाव इति रश्मिनाम (NG 1. 5) = By rays (अस्त्रेधन्ती) साधयन्ती | = Accomplishing. (अप्रायु) यन्न प्रति नश्यति तत् । स्त्रिधु-हिंसायाम् | अहिंसन्ती कार्याणि साधयन्तीत्यर्थ: । = Undecayable. (सुविताय ) ऐश्वर्य्याय । ( सुविताय ) षु प्रसवैश्वर्ययो: ( स्वा० ) अत्र ऐश्वर्यार्थः । = For prosperity.
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