ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 21/ मन्त्र 1
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
इ॒मा उ॑ त्वा पुरु॒तम॑स्य का॒रोर्हव्यं॑ वीर॒ हव्या॑ हवन्ते। धियो॑ रथे॒ष्ठाम॒जरं॒ नवी॑यो र॒यिर्विभू॑तिरीयते वच॒स्या ॥१॥
स्वर सहित पद पाठइ॒माः । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । पु॒रु॒ऽतम॑स्य । का॒रोः । हव्य॑म् । वी॒र॒ । हव्याः॑ । ह॒व॒न्ते॒ । धियः॑ । र॒थे॒ऽस्थाम् । अ॒जर॑म् । नवी॑यः । र॒यिः । विऽभू॑तिः । ई॒य॒ते॒ । व॒च॒स्या ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा उ त्वा पुरुतमस्य कारोर्हव्यं वीर हव्या हवन्ते। धियो रथेष्ठामजरं नवीयो रयिर्विभूतिरीयते वचस्या ॥१॥
स्वर रहित पद पाठइमाः। ऊँ इति। त्वा। पुरुऽतमस्य। कारोः। हव्यम्। वीर। हव्याः। हवन्ते। धियः। रथेऽस्थाम्। अजरम्। नवीयः। रयिः। विऽभूतिः। ईयते। वचस्या ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 21; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तं राजानं किमर्थमाश्रयेरन्नित्याह ॥
अन्वयः
हे वीर ! ये पुरुतमस्य कारोर्हव्यं हवन्ते या इमा हव्या धियो रथेष्ठां नवीयोऽजरं रयिर्वचस्या विभूतिरीयते ताभिर्युक्तं त्वा उ वयं सत्कुर्याम ॥१॥
पदार्थः
(इमाः) वर्तमानाः प्रजाः (उ) (त्वा) त्वाम् (पुरुतमस्य) अतिशयेन बहुगुणस्य (कारोः) शिल्पिनः (हव्यम्) दातुमर्हम् (वीर) निर्भय (हव्याः) दातुं योग्याः (हवन्ते) आददति (धियः) प्रज्ञाः (रथेष्ठाम्) यो रथे तिष्ठति (अजरम्) जरारहितं शरीरम् (नवीयः) अतिशयेन नवीनम् (रयिः) श्रीः (विभूतिः) ऐश्वर्यम् (ईयते) प्राप्नोति (वचस्या) वचसि भवा ॥१॥
भावार्थः
यः पुरुषः प्रशंसनीयां बुद्धिं स्वीकृत्य तया जरारोगरहितां पुष्कलां श्रियमैश्वर्यं चाप्नोति तस्य शिल्पिप्रियस्य राज्ञः सत्कारः कर्त्तव्यः ॥१॥
हिन्दी (1)
विषय
अब बारह ऋचावाले इक्कीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर उस राजा का किस अर्थ आश्रय करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वीर) भय से रहित जो (पुरुतमस्य) अतिशय बहुत गुणों से विशिष्ट (कारोः) कारीगर के (हव्यम्) देने योग्य को (हवन्ते) ग्रहण करते हैं और जो (इमाः) ये वर्त्तमान प्रजायें (हव्याः) देने योग्य (धियः) बुद्धियों को और जो (रथेष्ठाम्) रथ में स्थित होनेवाले (नवीयः) अतिशय नवीन (अजरम्) वृद्धावस्था से रहित शरीर को (रयिः) धन और (वचस्या) वचन में हुआ (विभूतिः) ऐश्वर्य (ईयते) प्राप्त होता है, उनसे युक्त (त्वा) आपका (उ) तर्क-वितर्क से हम लोग सत्कार करें ॥१॥
भावार्थ
जो पुरुष प्रशंसा करने योग्य बुद्धि को स्वीकार करके उससे वृद्धावस्था और रोग से रहित अत्यन्त लक्ष्मी और ऐश्वर्य को प्राप्त होता है, उस शिल्पीजनप्रिय राजा का सत्कार करना चाहिये ॥१॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात इंद्र, विद्वान, ईश्वर व राजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची यापूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
जो पुरुष प्रशंसनीय बुद्धीने वृद्धावस्थारहित व रोगरहित बनून अत्यंत ऐश्वर्य प्राप्त करतो अशा कारागीर प्रिय असलेल्या राजाचा सत्कार केला पाहिजे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Heroic Indra, leader of the world, you are ageless, ever new, ever fresh. These creations of the most versatile artist worthy of presentation glorify you, adorable lord, and they are offered to you in homage since all creations of intelligence, all wealth and celebrated glory reach you, lord of the nation’s chariot, and everything flows from you.
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