ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 22/ मन्त्र 3
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
तमी॑मह॒ इन्द्र॑मस्य रा॒यः पु॑रु॒वीर॑स्य नृ॒वतः॑ पुरु॒क्षोः। यो अस्कृ॑धोयुर॒जरः॒ स्व॑र्वा॒न्तमा भ॑र हरिवो माद॒यध्यै॑ ॥३॥
स्वर सहित पद पाठतम् । ई॒म॒हे॒ । इन्द्र॑म् । अ॒स्य॒ । रा॒यः । पु॒रु॒ऽवीर॑स्य । नृ॒ऽवतः॑ । पु॒रु॒ऽक्षोः । यः । अस्कृ॑धोयुः । अ॒जरः॑ । स्वः॑ऽवान् । तम् । आ । भ॒र॒ । ह॒रि॒ऽवः॒ । मा॒द॒यध्यै॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमीमह इन्द्रमस्य रायः पुरुवीरस्य नृवतः पुरुक्षोः। यो अस्कृधोयुरजरः स्वर्वान्तमा भर हरिवो मादयध्यै ॥३॥
स्वर रहित पद पाठतम्। ईमहे। इन्द्रम्। अस्य। रायः। पुरुऽवीरस्य। नृऽवतः। पुरुऽक्षोः। यः। अस्कृधोयुः। अजरः। स्वःऽवान्। तम्। आ। भर। हरिऽवः। मादयध्यै ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे हरिवो विद्वान् ! योऽस्कृधोयुरजरः स्वर्वान् वर्त्तते तं मादयध्यै आभर तमस्य पुरुवीरस्य नृवतः पुरुक्षो राय इन्द्रं वयमीमहे ॥३॥
पदार्थः
(तम्) (ईमहे) याचामहे (इन्द्रम्) परमैश्वर्यप्रदम् (अस्य) (रायः) धनस्य (पुरुवीरस्य) बहुवीरप्रापकस्य (नृवतः) प्रशस्ता नरो विद्यन्ते यस्मिंस्तस्य (पुरुक्षोः) बहुध्यानयुक्तस्य (यः) (अस्कृधोयुः) अपरिच्छिन्नः (अजरः) जरादिरोगरहितः (स्वर्वान्) बहु सुखं विद्यते यस्मिन्त्सः (तम्) (आ) (भर) समन्ताद्धर (हरिवः) प्रशस्ता हरयो मनुष्या विद्यन्ते यस्य तत्सम्बुद्धौ (मादयध्यै) मादयितुमानन्दयितुम् ॥३॥
भावार्थः
सर्वे मनुष्या विज्ञानादिप्राप्तये परमात्मानमेव याचन्ताम् ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (हरिवः) अच्छे मनुष्यों के सहित वर्त्तमान विद्वान् ! (यः) जो (अस्कृधोयुः) व्यापक (अजरः) जरा आदि रोग से रहित (स्वर्वान्) बहुत सुख विद्यमान जिसमें वह वर्त्तमान है (तम्) उसको (मादयध्यै) आनन्दित करने के लिये (आ, भर) सब प्रकार से धारण करिये और (तम्) उसको (अस्य) इस (पुरुवीरस्य) बहुत वीरों को प्राप्त करानेवाले (नृवतः) अच्छे मनुष्य विद्यमान जिसमें उस (पुरुक्षोः) बहुत ध्यान से युक्त (रायः) धन के (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य के देनेवाले की हम लोग (ईमहे) याचना करते हैं ॥३॥
भावार्थ
सब मनुष्य विज्ञान आदि की प्राप्ति के लिये परमात्मा से ही याचना करें ॥३॥
विषय
राजा के अधिकार का निरूपण ।
भावार्थ
हे ( हरिवः ) अश्वों के समान सन्मार्ग पर ले जाने हारे मनुष्यों के स्वामिन् ! ( यः ) जो (अस्कृधोयुः ) कभी न खुटने वाला, ( अजरः ) अविनाशी, ( स्वर्वान् ) सुखप्रद ऐश्वर्य है वह तू ( मादयध्यै ) सुख प्राप्त करने के लिये ( तम् आभर ) उसे प्राप्त करा । ( अस्य ) उस ( पुरु-वीरस्य ) बहुत से पुत्र, भृत्य, वीर जनों से युक्त ( नृवतः ) उत्तम नायक वाले, ( पुरु-क्षोः ) बहुत अन्न सम्पदा से पूर्ण, ( रायः ) धन की हम ( ईमहे ) याचना करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः - १, ७ भुरिक् पंक्ति: । ३ स्वराट् पंक्तिः । १० पंक्तिः । २, ४, ५ त्रिष्टुप् । ६, ८ विराट् त्रिष्टुप् । ९, ११ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सुक्तम् ।।
विषय
कैसा धन !
पदार्थ
[१] (तं इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु से (अस्य) = इस (पुरुवीरस्य) = बहुत वीर सन्तानोंवाले, (नृवतः) = प्रशस्त पुरुषोंवाले, (पुरुक्षोः) = पालक व पूरक अन्नवाले (रायः) = धन की ईमहे याचना करते हैं। उस धन को चाहते हैं, जो कि हमारे सन्तानों की वीरता का साधन बने, हमारे गृह के सब पुरुषों को प्रशस्त जीवनवाला बनाए, हमें उस अन्न को प्राप्त कराये जो हमारा पालन व पूरण करे । [२] हे (हरिवः) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाले प्रभो ! (तम्) = उस धन को मादयध्यै आनन्द प्राप्ति के लिए (आभर) = प्राप्त कराइये (यः) = जो (अस्कृधोयु:) = [कृधु-अल्प] अनल्प है, अविच्छिन्न रूप से प्राप्त होनेवाला है। (अजरः) = शक्तियों की जीर्णता का कारण नहीं होता। और (स्वर्वान्) = प्रकाश व सुखवाला है, ज्ञान प्राप्ति का साधन बनता हुआ वास्तविक आनन्द को प्राप्त कराता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमें वह धन दें जो [क] हमारे सन्तानों को वीर बनाये, [ख] हम गृहवासियों के जीवन को प्रशस्त करे, [ग] पालक व पूरक अन्न को प्राप्त कराये, [घ] अविच्छिन्न रूप से प्राप्त होता रहे, [ङ] शक्तियों को जीर्ण न करे, [च] प्रकाश व सुख प्राप्ति का साधन बने ।
मराठी (1)
भावार्थ
सर्व माणसांनी विज्ञानाच्या प्राप्तीसाठी परमात्म्याचीच याचना करावी. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
We pray to Indra for his gifts of wealth, happy progeny, man power and generous abundance which he, lord of unlimited potential, ageless and blissful, commanding men and transport, would, we hope, bring us for his joy and ours.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
An ideal person's qualities are described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O enlightened person ! you have admirable men as your assistants, Try to please that God from all sides who is Unlimited or Infinite, free from old age or decay (and) Giver of much happiness. We pray to attain that God who is the Lord of the wealth that conveys to us many heroes, has along with it many admirable men and is endowed with much power of meditation.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
All men should pray to God only for the attainment of true knowledge and other virtues.
Translator's Notes
By राय: wealth of both kinds is meant, material as well as spiritual.
Foot Notes
(हरिवः) प्रशस्ता हरयो मनुष्या विद्यन्ते यस्य तत्सम्बुद्धौ । हरय इति मनुष्यनाम। (NG 2,3) = He who has many admirable men (as his assistants or followers ). ( ईमहे) याचामहे । ईमहे याञ्च्या- कर्मा (NG 3,19)। = Pray for (अस्कृधोयुः) अपरिच्छिन्न: = Unlimited, Infinite. (पुरुक्षोः) बहुध्यानयुक्तस्य। = Endowed with much power of meditation.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal