ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 27/ मन्त्र 3
ऋषि: - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
न॒हि नु ते॑ महि॒मनः॑ समस्य॒ न म॑घवन्मघव॒त्त्वस्य॑ वि॒द्म। न राध॑सोराधसो॒ नूत॑न॒स्येन्द्र॒ नकि॑र्ददृश इन्द्रि॒यं ते॑ ॥३॥
स्वर सहित पद पाठन॒हि । नु । ते॒ । म॒हि॒मनः॑ । स॒म॒स्य॒ । न । म॒घ॒ऽव॒न् । म॒घ॒व॒त्ऽत्वस्य॑ । वि॒द्म । न । राध॑सःऽराधसः । नूत॑नस्य । इन्द्र॑ । नकिः॑ । द॒दृ॒शे॒ । इ॒न्द्रि॒यम् । ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नहि नु ते महिमनः समस्य न मघवन्मघवत्त्वस्य विद्म। न राधसोराधसो नूतनस्येन्द्र नकिर्ददृश इन्द्रियं ते ॥३॥
स्वर रहित पद पाठनहि। नु। ते। महिमनः। समस्य। न। मघऽवन्। मघवत्ऽत्वस्य। विद्म। न। राधसःऽराधसः। नूतनस्य। इन्द्र। नकिः। ददृशे। इन्द्रियम्। ते ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 27; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं ध्येयमित्याह ॥
अन्वयः
हे मघवन्निन्द्र ! यस्य ते महिमनः समस्य कश्चिन्नु नहि ददृशे वयं मघवत्त्वस्य तुल्यं किंचिदपि न विद्म नूतनस्य राधसोराधसः समः नकिर्ददृशे ते तवेन्द्रियं न ददृशे तस्योपासनं वयं कुर्वीमहि ॥३॥
पदार्थः
(नहि) (नु) (ते) (महिमनः) (समस्य) तुल्यस्य (न) (मघवन्) न्यायोपार्जितधनयुक्त (मघवत्त्वस्य) बहुधनयुक्तानां भावस्य (विद्म) विजानीयाम (न) (राधसोराधसः) धनस्यधनस्य (नूतनस्य) नवीनस्य (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रदेश्वर (नकिः) (ददृशे) दृश्यते (इन्द्रियम्) (ते) तव ॥३॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यस्य महिम्नः समो महिमैश्वर्यसामर्थ्येन समं सामर्थ्यमाकृतिश्च न विद्यते तमेव सर्वव्यापकं सर्वान्तर्यामिनं जगदीश्वरं सततं ध्यायत ॥३॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर मनुष्यों को किसका ध्यान करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (मघवन्) न्याय से इकट्ठे किये हुए धन से युक्त (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य के देनेवाले ! जिन (ते) आपकी (महिमनः) महिमा का और (समस्य) तुल्यता का कोई (नु) भी (नहि) नहीं (ददृशे) देखा जाता है तथा हम लोग (मघवत्त्वस्य) बहुत धन से युक्तपने के तुल्य कुछ भी (न) नहीं (विद्म) जानें और (नूतनस्य) नवीन (राधसोराधसः) धन-धन के तुल्य (नकिः) नहीं देखा जाता है और (ते) आपका (इन्द्रियम्) इन्द्रिय (न) नहीं देखा जाता है, उनकी उपासना को हम लोग करें ॥३॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जिसकी महिमा के समान महिमा, ऐश्वर्यसामर्थ्य के समान सामर्थ्य और स्वरूप नहीं विद्यमान है, उसी सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, जगदीश्वर का निरन्तर ध्यान करो ॥३॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! ज्याच्या महानतेप्रमाणे महानता नाही व ऐश्वर्य सामर्थ्याप्रमाणे सामर्थ्य व स्वरूप विद्यमान नाही त्याच सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी जगदीश्वराचे निरंतर ध्यान करा. ॥ ३ ॥
English (1)
Meaning
Indra, lord of wealth, power and majesty, we know not anyone equal to you in greatness and glory, nothing like your regality and munificence, nothing so perfect as your perfection which reveals ever new possibilities. None comprehends your omniscience and your omnipotence.
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