ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 19/ मन्त्र 10
ए॒ते स्तोमा॑ न॒रां नृ॑तम॒ तुभ्य॑मस्म॒द्र्य॑ञ्चो॒ दद॑तो म॒घानि॑। तेषा॑मिन्द्र वृत्र॒हत्ये॑ शि॒वो भूः॒ सखा॑ च॒ शूरो॑ऽवि॒ता च॑ नृ॒णाम् ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । स्तोमाः॑ । न॒राम् । नृ॒ऽत॒म॒ । तुभ्य॑म् । अ॒स्म॒द्र्य॑ञ्चः । दद॑तः । म॒घानि॑ । तेषा॑म् । इ॒न्द्र॒ । वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑ । शि॒वः । भूः॒ । सखा॑ । च॒ । शूरः॑ । अ॒वि॒ता । च॒ । नृ॒णाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एते स्तोमा नरां नृतम तुभ्यमस्मद्र्यञ्चो ददतो मघानि। तेषामिन्द्र वृत्रहत्ये शिवो भूः सखा च शूरोऽविता च नृणाम् ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठएते। स्तोमाः। नराम्। नृऽतम। तुभ्यम्। अस्मद्र्यञ्चः। ददतः। मघानि। तेषाम्। इन्द्र। वृत्रऽहत्ये। शिवः। भूः। सखा। च। शूरः। अविता। च। नृणाम् ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 19; मन्त्र » 10
अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 30; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 30; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजा किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे नरां नृतमेन्द्र ! य एत अस्मद्र्यञ्चः स्तोमास्तुभ्यं मघानि ददतस्तेषां नृणां वृत्रहत्ये सूर्य इवाऽविता शिवः सखा च शूरश्च त्वं भूः ॥१०॥
पदार्थः
(एते) (स्तोमाः) प्रशंसनीया विद्वांसोऽध्येतारश्च (नराम्) नायकानाम् नृणां मध्ये (नृतम) अतिशयेन नायक (तुभ्यम्) (अस्मद्र्यञ्चः) येऽस्मानञ्चन्ति प्राप्नुवन्ति ते (ददतः) (मघानि) विद्याधनादीनि (तेषाम्) (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त राजन् (वृत्रहत्ये) मेघहनन इव सङ्ग्रामे (शिवः) मङ्गलकारी (भूः) भव। अत्राडभावः। (सखा) सुहृत् (च) (शूरः) शत्रूणां हन्ता (अविता) रक्षकः (च) (नृणाम्) मनुष्याणाम् ॥१०॥
भावार्थः
हे राजन् ! यदि भवान् विदुषां रक्षां कृत्वा तेभ्य उपकारं गृह्णीयात्तर्हि का कोन्नतिर्न स्यात् ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (नराम्) नायक मनुष्यों के बीच (नृतम) अतीव नायक (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त राजा ! जो (एते) ये (अस्मद्र्यञ्चः) हम लोगों को प्राप्त होते हुए (स्तोमाः) प्रशंसनीय विद्वान् और पढ़नेवाले (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये (मघानि) विद्याधनों को (ददतः) देते हैं (तेषाम्) उन (नृणाम्) मनुष्यों के (वृत्रहत्ये) मेघों के हनन करने के समान संग्राम में सूर्य के समान (अविता) रक्षा करनेवाले (शिवः) मङ्गलकारी (सखा, च) और मित्र (शूरः) शत्रुओं के मारनेवाले (च) भी आप (भूः) हूजिये ॥१०॥
भावार्थ
हे राजन् ! जो आप विद्वानों की रक्षा करके उनसे उपकार लें तो कौन-कौन उन्नति न हो ॥१०॥
विषय
missing
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( एते अस्मद्रयञ्चः ) हमें प्राप्त ( नरां स्तोमाः) उत्तम पुरुषों के वचन समूह वा स्तुत्यजन समूह (हे नृतम) नरश्रेष्ठ ! (मघानि ददतः) नाना ऐश्वर्य देते रहते हैं । तू (तेषाम् ) उनके ( वृत्र-हत्ये ) शत्रुनाशक संग्राम में ( शिवः भूः ) कल्याणकारी हो । तू ( नृणाम् ) सब मनुष्यों का ( सखा शूरः च ) मित्र और शूरवीर ( भू: ) हो (अविता च ) और रक्षक भी ( भूः ) हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः - १, ५ त्रिष्टुप् । ३, ६ निचृत्त्रिष्टुप् । ७, ९, १० विराट् त्रिष्टुप् । २ निचृत्पंक्ति: । ४ पंक्ति: । ८, ११ भुरिक् पंक्तिः ॥॥ एकादशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
शिवः सखा-अविता
पदार्थ
[१] हे (नरां नृतम्) = नायकों में सर्वोत्तम नायक प्रभो ! (एते स्तोमाः) = ये स्तुतिसमूह (तुभ्यम्) = आपकी प्राप्ति के लिये हैं। (अस्मद्र्यञ्चः) = हमारे अभिमुख होते हुए ये स्तोम (मघानि) = ऐश्वर्यों को (ददत:) = देते हुए होते हैं। अर्थात् हम आपका स्तवन करते हैं और सब प्रकार के ऐश्वर्यों को प्राप्त करते हैं। [२] हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो ! (वृत्रहत्ये) = संग्राम में (तेषां नृणाम्) = उन उन्नति-पथ पर चलनेवाले मनुष्यों का (शिवः भूः) = कल्याण करनेवाले होइये । (च) = और (सखा) = उनके मित्र होते हुए (शूरः) = उनके शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले होइये (च) = और (अविता) = रक्षक होइये।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु-स्तवन करनेवाला सब ऐश्वर्यों को प्राप्त करता है। प्रभु इनके शत्रुओं को शीर्ण करके इनका कल्याण करते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा ! जर तू विद्वानांचे रक्षण करून त्यांच्याकडून उपकार घेतलेस तर कुणाकुणाची उन्नती होणार नाही? ॥ १० ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
These songs of adoration offered to you, O highest leader of the leaders of men, in fact, come back to us, giving wealth, honours and excellence of life. O lord, in these people’s battle against darkness, want and injustice, be their friend, wise protector and kind defender.
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