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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 55 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 55/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः

    यद॑र्जुन सारमेय द॒तः पि॑शङ्ग॒ यच्छ॑से। वी॑व भ्राजन्त ऋ॒ष्टय॒ उप॒ स्रक्वे॑षु॒ बप्स॑तो॒ नि षु स्व॑प ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒र्जु॒न॒ । सा॒र॒मे॒य॒ । द॒तः । पि॒श॒ङ्ग॒ । यच्छ॑से । विऽइ॑व । भ्रा॒ज॒न्ते॒ । ऋ॒ष्टयः॑ । उप॑ । स्रक्वे॑षु । नि । सु । स्व॒प॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदर्जुन सारमेय दतः पिशङ्ग यच्छसे। वीव भ्राजन्त ऋष्टय उप स्रक्वेषु बप्सतो नि षु स्वप ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। अर्जुन। सारमेय। दतः। पिशङ्ग। यच्छसे। विऽइव। भ्राजन्ते। ऋष्टयः। उप। स्रक्वेषु। बप्सतः। नि। सु। स्वप ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 55; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्गृहस्थाः कुत्र वासं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे अर्जुन सारमेय ! पिशङ्ग यद्यस्त्वं वीव दतो यच्छसे स्रक्वेषु बप्सत ऋष्टय उप भ्राजन्ते स तेषु नि सु स्वप ॥२॥

    पदार्थः

    (यत्) (अर्जुन) सुखरूप (सारमेय) साराणां निर्मातः (दतः) दन्तान् (पिशङ्ग) पिशङ्गादिवर्णयुक्त (यच्छसे) (वीव) पक्षीव (भ्राजन्ते) प्रकाशन्ते (ऋष्टयः) प्रापकः (उप) (स्रक्वेषु) प्राप्तेषूत्तमेषु गृहेषु (बप्सतः) भक्षयतः (नि) (सु) (स्वप) शयस्व ॥२॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यत्रारोग्येन युष्माकं दन्तादयोऽवयवास्सुशोभन्ते तत्रैव निवासं शयनादिव्यवहारं च कुरुत ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर गृहस्थ कहाँ वास करें, इस विषयको अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अर्जुन) अच्छे रूपयुक्त (सारमेय) सारवस्तुओं की उत्पत्ति करनेवाले (पिशङ्ग) पीछे-पीछे (यत्) जो आप (वीव) पक्षी के समान (दतः) दाँतों को (यच्छसे) नियम से रखते हो वह जो (स्रक्वेषु) प्राप्त उत्तम घरों में (बप्सतः) भक्षण करते हुए (ऋष्टयः) पहुँचानेवाले (उप, भ्राजन्ते) समीप प्रकाशित होते हैं उन में आप (नि, सु, स्वप) निरन्तर अच्छे प्रकार सोओ ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जहाँ आरोग्यपन से तुम्हारे दन्त आदि अवयव अच्छे प्रकार शोभते हैं, वहाँ ही निवास और शयन आदि व्यवहार को करो ॥२॥

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    विषय

    सारमेय विद्वान् पहरेदार का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे ( अर्जुन ) धनादि के उत्तम रीति से उपार्जन करने वाले ! हे प्रतियत्नशील ! हे शुभ्र ! विद्वन् ! हे ( सारमेय ) सारवान्, बलवान् बलयुक्त एवं बहुमूल्य पदार्थों का मान-प्रतिमान करने और उनसे जाने जाने योग्य ! हे ( पिशङ्ग ) तेजस्विन् ! तू ( दतः ) अपने दांतों और अन्यों को खण्डित करने वाले शस्त्रों को ( यच्छसे ) नियम में रख । (बप्सतः) खाते हुए मनुष्यों के दांत जिस प्रकार ( स्रक्वेषु उप ) ओंठों के पास चमकते हैं उसी प्रकार ( स्रक्वेषु ) बने नगरों के पास ( बप्सतः ) राष्ट्र का भोग करते हुए तेरे (ऋष्टयः) शस्त्र अस्त्रादि, ( वि इव भ्राजन्त ) विशेष रूप से चमकते हैं । ( नि सु स्वप ) हे बलवान् राजा के प्रजाजन ! तू अच्छी प्रकार सुख की निद्रा ले ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १ वास्तोष्पतिः । २—८ इन्द्रो देवता॥ छन्दः —१ निचृद्गायत्री। २,३,४ बृहती। ५, ७ अनुष्टुप्। ६, ८ निचृदनुष्टुप् । अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    यदर्जुन सारमेय

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (अर्जुन) = धनादि को उपार्जन करनेवाले! हे (सारमेय) = सारवान्, बलवान् हे पिशङ्गतेजस्विन् ! तू (दतः) = खण्डित करनेवाले शस्त्रों को (यच्छसे) = नियम में रख । (बप्सतः) = खाते हुए मनुष्यों के दाँत जैसे (स्नक्वेषु उप) = ओठों के पास चमकते हैं वैसे (स्नक्वेषु) = बने नगरों के पास (बप्सतः) = राष्ट्र का भोग करते हुए तेरे (ॠष्टयः) = शस्त्र-अस्त्रादि, (वि इव भ्राजन्त) = विशेष रूप से चमकें। (नि सु स्वप) = बलवान् राजा के, हे प्रजाजन! तू अच्छी प्रकार सुख की निद्रा ले ।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र की सीमाएँ सेना द्वारा सुरक्षित रहे, जिससे नागरिक सुख से सो सकें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जेथे आरोग्यामुळे तुमचे दात वगैरे अवयव चांगल्या प्रकारे शोभून दिसतात तेथेच निवास व शयन करा. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Lord of purity and blazing power, creator and controller of values and the essence of things and institutions, handsome and versatile in form and performance, you raise, wield and control your weapons of defence and offence, devouring missiles target oriented in readiness in defence labs beaming like a trail of light in the sky, and thus you may rest in peace and security in the state of readiness.

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