ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 55/ मन्त्र 3
स्ते॒नं रा॑य सारमेय॒ तस्क॑रं वा पुनःसर। स्तो॒तॄनिन्द्र॑स्य रायसि॒ किम॒स्मान्दु॑च्छुनायसे॒ नि षु स्व॑प ॥३॥
स्वर सहित पद पाठस्ते॒नम् । रा॒य॒ । सा॒र॒मे॒य॒ । तस्क॑रम् । वा॒ । पु॒नः॒ऽस॒र॒ । स्तो॒तॄन् । इन्द्र॑स्य । रा॒य॒सि॒ । किम् । अ॒स्मान् । दु॒च्छु॒न॒ऽय॒से॒ । नि । सु । स्व॒प॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्तेनं राय सारमेय तस्करं वा पुनःसर। स्तोतॄनिन्द्रस्य रायसि किमस्मान्दुच्छुनायसे नि षु स्वप ॥३॥
स्वर रहित पद पाठस्तेनम्। राय। सारमेय। तस्करम्। वा। पुनःऽसर। स्तोतॄन्। इन्द्रस्य। रायसि। किम्। अस्मान्। दुच्छुनऽयसे। नि। सु। स्वप ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 55; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्गृहस्थैः किं कर्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे राय सारमेय ! त्वमिन्द्रस्य स्तेनं वा तस्करं वा पुनस्सर यस्त्वं स्तोतॄन् रायसि सोऽस्मान् किं दुच्छुनायसे स त्वमुत्तमे स्थाने नि सु स्वप ॥३॥
पदार्थः
(स्तेनम्) चोरम् (राय) रासु धनेषु साधो (सारमेय) (तस्करम्) दस्य्वादिकम् (वा) (पुनःसर) पुनःपुनः दण्डदानाय प्राप्नुहि (स्तोतॄन्) स्तावकान् (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यस्य (रायसि) शब्दयसि (किम्) (अस्मान्) (दुच्छुनायसे) दुष्टेष्वेवाचरसि (नि) नितराम् (सु) (स्वप) ॥३॥
भावार्थः
गृहस्थैः स्तेनानां निग्रहं श्रेष्ठानां सत्करणं कृत्वा कदाचिद् श्ववन्नाचरणीयम् सदैव शुद्धवायूदकावकाशे शयितव्यम् ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर गृहस्थों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (राय) धनियों में सज्जन (सारमेय) सार वस्तुओं से मान करने योग्य आप (इन्द्रस्य) परम ऐश्वर्य्य के (स्तेनम्) चोर (वा) (तस्करम्) डाँकू आदि चोर को (पुनःसर) फिर फिर दण्ड देने के लिये प्राप्त होओ जो आप (स्तोतॄन्) स्तुति करनेवालों को (रायसि) कहलाते हो (अस्मान्) हम लोगों को (किम्) क्या (दुच्छुनायसे) दुष्टों में, वैसे वैसे आचरण से प्राप्त होंगे सो आप उत्तम स्थान में (नि, सु, स्वप) निरन्तर अच्छे प्रकार सोओ ॥३॥
भावार्थ
गृहस्थों को चाहिये कि चोरों की रुकावट और श्रेष्ठों का सत्कार कर के कभी कुत्ते के समान न आचरण करें और सदैव शुद्ध वायु, जल और अवकाश में सोवें ॥३॥
विषय
नगररक्षक सैन्य जन ( पोलिस ) के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे (सारमेय ) उत्तम बल को धारण करने वाली सेना के उत्तम जन ! तू ( स्तेनं ) चोर और ( तस्करं ) उस निन्द्य कार्य को करने वाले डाकू के (राय) पास पहुंच और उसे पकड़ (पुनः सर) तू उस पर वार २ आक्रमण कर । तू ( इन्द्रस्य स्तोतॄन् ) राजा के प्रति उत्तम उपदेश करने वाले विद्वानों को ( किं रायसि ) क्यों पकड़ता है । ( अस्मान् किं दुच्छुनायसे ) हमारे प्रति दुष्ट कुत्ते के समान क्यों कष्ट पीड़ा देता है, तू ( नि सु स्वप ) नियमपूर्वक सुख से निद्रा ले और अन्यों को भी सुख से सोने दे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १ वास्तोष्पतिः । २—८ इन्द्रो देवता॥ छन्दः —१ निचृद्गायत्री। २,३,४ बृहती। ५, ७ अनुष्टुप्। ६, ८ निचृदनुष्टुप् । अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
सारमेय
पदार्थ
पदार्थ - हे (सारमेय) = उत्तम बल धारक सेना के जन ! तू (स्तेनं) = चोर और (तस्करं) = निन्द्य कार्य करनेवाले डाकू के पास (राय) = पहुँच, उसे पकड़ । (पुनः सर) = तू उस पर आक्रमण कर तू (इन्द्रस्य स्तोतॄन्) = राजा प्रति उत्तम उपदेश करनेवाले विद्वानों को (किं रायसि) = क्यों पकड़ता है? (अस्मान् किं दुच्छुनायसे) = हमें दुष्ट कुत्ते के समान क्यों कष्ट देता है? तू (नि सु स्वप) = नियमपूर्वक सुख से निद्रा ले।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र आरक्षी विभाग दुष्टों का दमन तथा सज्जनों का रक्षण करता रहे।
मराठी (1)
भावार्थ
गृहस्थांनी चोरांना रोखावे व श्रेष्ठांचा सत्कार करावा. कधी कुत्र्याप्रमाणे आचरण करू नये. सदैव शुद्ध वायू व जल, अवकाश मिळाल्यावर झोपावे. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Lord of wealth and glory, lover of values and essence of things in life, keep on pursuing the thief and the smuggler and bring them to book. And don’t you appreciate and encourage those who support and augment the wealth of the nation and the ruling order and assure that we are safe against evil and the negationists? You do. If so, you may thus rest in peace and security in the state of readiness.
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