ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 57/ मन्त्र 2
नि॒चे॒तारो॒ हि म॒रुतो॑ गृ॒णन्तं॑ प्रणे॒तारो॒ यज॑मानस्य॒ मन्म॑। अ॒स्माक॑म॒द्य वि॒दथे॑षु ब॒र्हिरा वी॒तये॑ सदत पिप्रिया॒णाः ॥२॥
स्वर सहित पद पाठनि॒चे॒तारः॑ । हि । म॒रुतः॑ । गृ॒णन्त॑म् । प्रऽने॒तारः॑ । यज॑मानस्य । मन्म॑ । अ॒स्माक॑म् । अ॒द्य । वि॒दथे॑षु । ब॒र्हिः । आ । वी॒तये॑ । स॒द॒त॒ । पि॒प्रि॒या॒णाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
निचेतारो हि मरुतो गृणन्तं प्रणेतारो यजमानस्य मन्म। अस्माकमद्य विदथेषु बर्हिरा वीतये सदत पिप्रियाणाः ॥२॥
स्वर रहित पद पाठनिचेतारः। हि। मरुतः। गृणन्तम्। प्रऽनेतारः। यजमानस्य। मन्म। अस्माकम्। अद्य। विदथेषु। बर्हिः। आ। वीतये। सदत। पिप्रियाणाः ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 57; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्ते विद्वांसः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसो ! हि निचेतारो मारुतः सर्वान् प्रेरयन्ति ततः प्रणेतारस्सन्तो यजमानस्य मन्मास्माकं विदथेषु गृणन्तं पिप्रियाणाः अद्य वीतये बर्हिरासदत ॥२॥
पदार्थः
(निचेतारः) ये निचयं समूहं कुर्वन्ति ते (हि) यतः (मरुतः) वायवः (गृणन्तम्) स्तुवन्तम् (प्रणेतारः) प्रकृष्टं न्यायं कुर्वन्तः (यजमानस्य) सर्वेषां सुखाय यज्ञकर्तुः (मन्म) विज्ञानम् (अस्माकम्) (अद्य) अस्मिन् (विदथेषु) यज्ञेषु (बर्हिः) अन्तरिक्षस्थमुत्तममासनम् (आ) (वीतये) विज्ञानाय प्राप्तये वा (सदत) आसीदत (पिप्रियाणाः) प्रियमाणाः ॥२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यूयं सर्वेषां पदार्थानां संधातारं मरुद्गणं विज्ञाय सर्वेषां प्रियं साध्नुवन्तु ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे विद्वान् कैसे होवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वान् जनो ! (हि) जिस कारण (निचेतारः) समूह करनेवाले (मरुतः) पवन सब को प्रेरित करते हैं, उस कारण (प्रणेतारः) अच्छे न्याय को करते हुए जन (यमजानस्य) सब के सुख के लिये यज्ञ करनेवाले के (मन्म) विज्ञान को (अस्माकम्) हम लोगों के (विदथेषु) यज्ञों में (गृणन्तम्) स्तुति करते हुए को (पिप्रियाणाः) प्रसन्न करते हुए (अद्य) आज (वीतये) विज्ञान वा प्राप्ति के लिये (बर्हिः) अन्तरिक्ष में स्थित उत्तम आसन पर (आ, सदत) बैठिये ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! आप लोग सम्पूर्ण पदार्थों के रचनेवाले पवनों के समूह को जान कर सब के प्रिय को सिद्ध करो ॥२॥
विषय
अध्यक्षों के कर्त्तव्य, उनको उत्तम २ उपदेश ।
भावार्थ
हे ( मरुतः ) विद्वान् जनो ! आप लोग ( निचेतारः हि ) उत्तम धनों और ज्ञानों के संग्रहशील और ( यजमानस्य ) दान शील के ( मन्म ) अभिमत वस्तु ( गृणन्त ) उपदेश देने वाले को (पिप्रियाणाः) प्रसन्न करते हुए आप लोग ( प्रणेतारः ) उत्तम कर्म कुशल होकर (अस्माकं विदथेषु ) हमारे यज्ञों में ( वीतये ) रक्षा और ज्ञानप्रकाश के लिये ( बर्हिः ) उत्तमासन पर ( आसदत ) विराजो । इसी प्रकार उत्तम नायक और उत्तम संग्रही जन संग्रामों, धनादि लाभों के लिये (बर्हिः) प्रजाजन पर अध्यक्ष होकर विराजें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः - २, ४ त्रिष्टुप्। १ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ५, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
विषय
नेता कर्मकुशल हों
पदार्थ
पदार्थ- हे (मरुतः) = विद्वान् जनो! आप (निचेतारः) = हि धनों, ज्ञानों के संग्रही और (यजमानस्य) = दानशील के (मन्म) = अभिमत वस्तु (गृणन्त) = उपदेष्टा को (पिप्रियाणा:) = प्रसन्न करते हुए (प्रणेतारः) = कर्म-कुशल होकर (अस्माकं विदथेषु) = हमारे यज्ञों में (वीतये) = रक्षा और ज्ञानप्रकाश के लिये (बर्हिः) = उत्तमासन पर (आसदत) = विराजो।
भावार्थ
भावार्थ- विद्वान् जन संग्रामों में सेनानायकों को रक्षा एवं युद्ध कर्म हेतु कर्मकुशलता का उपदेश करने जावें। वे कर्मकुशल नायक ऐसे विद्वानों को प्रसन्नता पूर्वक उत्तम आसनों पर बैठाकर उनका उपदेश सुनें तथा सैनिकों का मार्गदर्शन करें।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही संपूर्ण पदार्थांची निर्मिती करणाऱ्या वायूच्या समूहाला जाणून सर्वांचे प्रिय व्हा. ॥ २ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
You are inspiring guardians of the celebrant and leading lights for the mind and vision of the yajamana devotee. Come today right now for our good and grace our seats in our yajnas rising to the skies, happy, rejoicing, and inspiring us with joy and enthusiasm.
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