ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 57/ मन्त्र 4
ऋध॒क्सा वो॑ मरुतो दि॒द्युद॑स्तु॒ यद्व॒ आगः॑ पुरु॒षता॒ करा॑म। मा व॒स्तस्या॒मपि॑ भूमा यजत्रा अ॒स्मे वो॑ अस्तु सुम॒तिश्चनि॑ष्ठा ॥४॥
स्वर सहित पद पाठऋध॑क् । सा । वः॒ । म॒रु॒तः॒ । दि॒द्युत् । अ॒स्तु॒ । यत् । वः॒ । आगः॑ । पु॒रु॒षता॑ । करा॑म । मा । वः॒ । तस्या॑म् । अपि॑ । भू॒म॒ । य॒ज॒त्राः॒ । अ॒स्मे इति॑ । वः॒ । अ॒स्तु॒ । सु॒ऽम॒तिः । चनि॑ष्ठा ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋधक्सा वो मरुतो दिद्युदस्तु यद्व आगः पुरुषता कराम। मा वस्तस्यामपि भूमा यजत्रा अस्मे वो अस्तु सुमतिश्चनिष्ठा ॥४॥
स्वर रहित पद पाठऋधक्। सा। वः। मरुतः। दिद्युत्। अस्तु। यत्। वः। आगः। पुरुषता। कराम। मा। वः। तस्याम्। अपि। भूम। यजत्राः। अस्मे इति। वः। अस्तु। सुऽमतिः। चनिष्ठा ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 57; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः कथं वर्तितव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे यजत्रा मरुतः ! यद्यया व आगो यद्यया पुरुषता कराम तस्यामपि च आगो मा कराम यया वयं पुरुषार्थिनो भूम सा व ऋधक्चनिष्ठा सुमतिरस्मे अस्तु सा विद्युद्वो युष्माकमस्तु ॥४॥
पदार्थः
(ऋधक्) सत्ये (सा) (वः) युष्माकम् (मरुतः) मनुष्याः (दिद्युत्) देदीप्यमाना नीतिः (अस्तु) (यत्) यथा (वः) युष्माकम् (आगः) अपराधम् (पुरुषता) पुरुषाणां भावेन पुरुषार्थतया (कराम) कुर्याम (मा) (वः) युष्मान् (तस्याम्) (अपि) (भूम) भवेम। अत्र द्व्यचो० इति दीर्घः। (यजत्राः) सङ्गन्तारः (अस्मे) अस्मासु (वः) युष्माकम् (अस्तु) (सुमतिः) शोभना प्रज्ञा (चनिष्ठा) अतिशयेनान्नाद्यैश्वर्ययुक्ता ॥४॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! अन्यायापराधं विहाय सत्यां प्रज्ञां गृहीत्वा पुरुषार्थेन सह सुखिनो भवत ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को कैसा वर्ताव करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (यजत्राः) मेल करनेवाले (मरुतः) मनुष्यो ! (यत्) जिससे (वः) आप लोगों के (आगः) अपराध को और जिस (पुरुषता) पुरुषपने से (कराम) करें (तस्याम्) उसमें (अपि) भी (नः) आप लोगों के अपराध को (मा) नहीं करें और जिससे हम लोग पुरुषार्थी (भूम) होवें (सा) वह (वः) आप लोगों के (ऋधक्) सत्य में (चनिष्ठा) अतिशय अन्न आदि ऐश्वर्य्य से युक्त (सुमतिः) अच्छी बुद्धि (अस्मे) हम लोगों में (अस्तु) हो और वह (दिद्युत्) प्रकाशमान नीति (नः) आप लोगों की (अस्तु) हो ॥४॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! अन्याय से अपराध का परित्याग कर और सत्य बुद्धि को ग्रहण कर वे पुरुषार्थ से सुखी होओ ॥४॥
विषय
अध्यक्षों के कर्त्तव्य, उनको उत्तम २ उपदेश ।
भावार्थ
हे ( मरुतः ) विद्वान् और वीर पुरुषो ! ( वः ) आप लोगों की ( सा दिद्युत् ) चमकती हुई उज्ज्वल नीति (ऋधक् अस्तु ) सदा सच्ची हो ( यत् ) यदि चाहे हम ( वः ) आप लोगों के प्रति ( पुरुषता ) पुरुष होने से ( आगः कराम) अपराध भी करें । हे ( यजत्राः ) पूज्य जनो ! ( तस्याम् ) उस नीति में रहकर (वः मा अपि भूम) आप लोगों के प्रति अपराधी न हों। (वः चनिष्ठा ) आप लोगों की अन्न ऐश्वर्यादि युक्त (सुमतिः अस्मे अस्तु ) उत्तम मति हमारे लिये हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः - २, ४ त्रिष्टुप्। १ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ५, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
विषय
नीतिवान राजा
पदार्थ
पदार्थ- हे (मरुतः) = विद्वान् पुरुषो! (वः) = आप की (सा विद्युत्) = वह उज्ज्वल नीति (ऋधक् अस्तु) = सच्ची हो (यत्) = यदि चाहें हम (वः) = आप लोगों के प्रति (पुरुषता) = पुरुष होने से (आगः कराम) = अपराध भी करें। हे (यजत्राः) = पूज्य जनो! (तस्याम्) = उस नीति में रहकर (वः मा अपि भूम) = आप लोगों के प्रति हम अपराधी न हों। (वः चनिष्ठा) = आप की ऐश्वर्यादि-युक्त (सुमतिः अस्मे अस्तु) = शुभ मति हमारे लिये हो ।
भावार्थ
भावार्थ- विद्वान् वीर राजा अपने राष्ट्र की उन्नति के लिए उत्तम नीति का निर्माण कर लागू करे। वह नीति सच्ची हो, नाममात्र की न हो। वह नीति प्रजा जनों को उत्तम अन्न तथा ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली हो । प्रजाजन भी उस नीति का निष्टा से पालन करें।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! अन्याय, अपराध सोडून द्या व सत्य बुद्धी ग्रहण करून पुरुषार्थाने सुखी व्हा ॥ ४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Maruts, best of the human world powers, may that beauty and brilliance of your policy and performance be ever distinguished and true. Even though out of our human frailty we may transgress your law or commit sin, O venerable heroes of the yajnic social order, let us not fall out of favour with you. Let that goodwill of yours still stay constant for us with love and grace.
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