Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 57 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 57/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मरुतः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उ॒त स्तु॒तासो॑ म॒रुतो॑ व्यन्तु॒ विश्वे॑भि॒र्नाम॑भि॒र्नरो॑ ह॒वींषि॑। ददा॑त नो अ॒मृत॑स्य प्र॒जायै॑ जिगृ॒त रा॒यः सू॒नृता॑ म॒घानि॑ ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । स्तु॒तासः॑ । म॒रुतः॑ । व्य॒न्तु॒ । विश्वे॑भिः । नाम॑ऽभिः । नरः॑ । ह॒वींषि॑ । ददा॑त । नः॒ । अ॒मृत॑स्य । प्र॒ऽजायै॑ । जि॒गृ॒त । रा॒यः । सू॒नृता॑ । म॒घानि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत स्तुतासो मरुतो व्यन्तु विश्वेभिर्नामभिर्नरो हवींषि। ददात नो अमृतस्य प्रजायै जिगृत रायः सूनृता मघानि ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत। स्तुतासः। मरुतः। व्यन्तु। विश्वेभिः। नामऽभिः। नरः। हवींषि। ददात। नः। अमृतस्य। प्रऽजायै। जिगृत। रायः। सूनृता। मघानि ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 57; मन्त्र » 6
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मरुतो नरो ! यूयं विश्वेभिर्नामभिर्नो हवींषि ददात उत स्तुतासो हवींषि व्यन्तु नोऽस्माकममृतस्य प्रजायै रायस्सूनृता मघानि च जिगृत ॥६॥

    पदार्थः

    (उत) अपि (स्तुतासः) प्राप्तप्रशंसाः (मरुतः) वायव इव मनुष्याः (व्यन्तु) व्याप्नुवन्तु प्राप्नुवन्तु (विश्वेभिः) समग्रैः (नामभिः) संज्ञाभिः (नरः) नायकाः (हवींषि) दातुमर्हाणि (ददात) (नः) अस्माकम् (अमृतस्य) नाशरहितस्य (प्रजायै) प्रजासुखाय (जिगृत) उद्गिरत (रायः) श्रियः (सूनृता) सूनृतानि धर्मेण सम्पादितानि (मघानि) धनानि ॥६॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः ! ये प्रशंसका मनुष्याः समग्रैश्शब्दार्थसम्बन्धैः सर्वा विद्याः प्राप्य शुम्भमाना भूत्वा प्रजाजनेभ्यस्सत्यां वाचं प्रयच्छन्ति ते सर्वे सुखं प्राप्नुवन्ति ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्या क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मरुतः) पवनों के सदृश मनुष्यो (नरः) अग्रणी ! आप लोग (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (नामभिः) संज्ञाओं से (नः) हम लोगों के लिये हम लोगों के (हवींषि) देने योग्य पदार्थों को (ददात) दीजिये (उत) और (स्तुतासः) प्रशंसा को प्राप्त हुए जन देने योग्य द्रव्यों को (व्यन्तु) प्राप्त होवें, हम लोगों और (अमृतस्य) अविनाशी की (प्रजायै) प्रजा के सुख के लिये (रायः) शोभाओं वा लक्ष्मियों को और (सूनृता) धर्म्म से इकट्ठे किये गये (मघानि) धनों को (जिगृत) उगलिये ॥६॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो प्रशंसा करनेवाले मनुष्य सम्पूर्ण शब्द और अर्थ के सम्बन्धों से सम्पूर्ण विद्याओं को प्राप्त कर और शोभित होकर प्रजाजनों के लिये सत्य वचन को देते हैं, वे सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होते हैं ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अध्यक्षों के कर्त्तव्य, उनको उत्तम २ उपदेश ।

    भावार्थ

    हे ( मरुतः नरः ) उत्तम नायक जनो ! आप लोग ( विश्वेभिः नामभिः ) सब प्रकार के उत्तम नामों से ( स्तुतासः ) प्रशंसित और शिक्षित होकर ( हवींषि ) उत्तम ज्ञान और नाना ऐश्वर्य ( उप व्यन्तु ) प्राप्त करें । ( नः ) हमारी प्रजाओं को ( अमृतस्य ददात ) अमृत, अन्न, दीर्घ जीवन प्रदान करो । ( उत ) और ( रायः ) उत्तम ऐश्वर्य (सूनृता) शुभ वचन और ( मघानि ) उत्तम धन ( जिगृत ) प्रदान करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः - २, ४ त्रिष्टुप्। १ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ५, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    दीर्घ जीवन

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (मरुतः नरः) = नायक जनो! आप (विश्वेभिः नामभिः) = सब प्रकार के उत्तम नामों से (स्तुतासः) = प्रशंसित होकर (हवींषि) = ज्ञान और नाना ऐश्वर्य (उप व्यन्तु) = प्राप्त करें। (नः) = हमारी प्रजाओं को (अमृतस्य ददात) = अन्न, दीर्घ जीवन दो। (उत) = और (रायः) = उत्तम ऐश्वर्य (सुनृता) = शुभ वचन, (मघानि) = धन जिगृत प्रदान करो।

    भावार्थ

    भावार्थ- उत्तम नायक जन आचार्यों के समीप रहकर उत्तम शिक्षा ग्रहण करें। उस शिक्षा के द्वारा वे स्वयं एवं अन्य लोगों को दीर्घजीवन जीने तथा उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान कर सकें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जे प्रशंसक संपूर्ण शब्द व अर्थाच्या संबंधांनी संपूर्ण विद्या प्राप्त करून शोभित होतात. प्रजेशी सत्य बोलतात ते संपूर्ण सुख प्राप्त करतात. ॥ ६ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Maruts, leaders and pioneers of humanity, sung and celebrated with all words of praise and appreciation, receive the best of honours and presentations of the social order. Give us wealths of the immortal order for the people and create the values and prosperity of the highest order of truth and Dharma.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top