ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 68/ मन्त्र 5
चि॒त्रं ह॒ यद्वां॒ भोज॑नं॒ न्वस्ति॒ न्यत्र॑ये॒ महि॑ष्वन्तं युयोतम् । यो वा॑मो॒मानं॒ दध॑ते प्रि॒यः सन् ॥
स्वर सहित पद पाठचि॒त्रम् । ह॒ । यत् । वा॒म् । भोज॑नम् । नु । अस्ति॑ । नि । अत्र॑ये । महि॑ष्वन्तम् । यु॒यो॒त॒म् । यः । वा॒म् । ओ॒मान॑म् । दध॑ते । प्र्यः॒ । सन् ॥
स्वर रहित मन्त्र
चित्रं ह यद्वां भोजनं न्वस्ति न्यत्रये महिष्वन्तं युयोतम् । यो वामोमानं दधते प्रियः सन् ॥
स्वर रहित पद पाठचित्रम् । ह । यत् । वाम् । भोजनम् । नु । अस्ति । नि । अत्रये । महिष्वन्तम् । युयोतम् । यः । वाम् । ओमानम् । दधते । प्र्यः । सन् ॥ ७.६८.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 68; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वां) हे न्यायाधीश्वराः सेनापतयश्च राजपुरुषाः ! (नु) निश्चयेन (यत्) यदा (चित्रम्) विविधं (भोजनम्) अन्नं राष्ट्रे (अस्ति) उत्पद्यते, तदा (वां) युष्मान् (ओमानं) रक्षकान् ज्ञात्वा (नि) निरन्तरं सर्वे जनाः (प्रियः, सन्) आनन्दयुक्ताः सन्तः (दधते) धारयन्ति, यतः (यः) यः पुरुषः (अत्रये) रक्षार्थं (महिष्वन्तम्) महान् भवति (ह) इति प्रसिद्धौ, तेनैव सर्वे जनाः (युयोतं) संयुक्ता भवन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वां) हे न्यायाधीश तथा सेनाधीश राजपुरुषो ! (नु) निश्चय करके (यत्) जब (चित्रं, भोजनं) विविध प्रकार के अन्न राज्य में (अस्ति) होते हैं, तब (वां) तुमको (ओमानं) रक्षायुक्त जानकर (नि) निरन्तर सब लोग (प्रियः, सन्) प्यार करते हुए (दधते) धारण करते हैं, क्योंकि (यः) जो (अत्रये) रक्षा के लिये (महिष्वन्तं) बड़ा होता है, (ह) प्रसिद्ध है कि उसी से सब लोग (युयोतं) जुड़ते हैं ॥५॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे राजपुरुषो ! तुम अन्न का कोष और विविध प्रकार के धनों को सम्पादन करके पूर्ण ऐश्वर्य्ययुक्त होओ, तुम्हारे ऐश्वर्य्यसम्पन्न होने पर सब लोग तुम्हारे शासन में रहते हुए तुमसे मेल करेंगे, क्योंकि ऐश्वर्य्ययुक्त पुरुष से सब प्रजाजन मेल रखते तथा प्यार करते हैं, अत एव प्रजापालन करनेवाले राजा का मुख्य कर्त्तव्य है कि सब प्रकार के यत्नों से ऐश्वर्य्य लाभ करे ॥५॥
विषय
शिष्यशिष्याओं के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( यः ) जो ( वाम् ) आप दोनों का ( प्रियः सन् ) प्रिय होकर ( महिष्वन्तं ) बहुत उत्तम परिणाम जनक ( ओमानं ) उत्तम ज्ञान और रक्षण सामर्थ्य ( दधते ) स्वयं धारता और आप दोनों को धारण कराता है, उस ( अत्रये ) त्रिविध तापों से रहित, और तीन ऋणों से मुक्त विद्वान् पुरुष के लिये ( यद् वा चित्रं भोजनं नु अस्ति ) जो आपका नाना प्रकार का भोजन है वह ( नि युयोतम् ) अवश्य पृथक् करो । उपकारी, चतुर्थाश्रमी, ज्ञानप्रद परिव्राजक के अर्थ पति पत्नी अपने भोजन का उत्तमांश अवश्य पृथक् रख दिया करें । उससे वे अतिथि यज्ञ किया करें । इति चतुर्दशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, ६, ८ साम्नी त्रिष्टुप् । २, ३, ५ साम्नी निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ७ साम्नी भुरिगासुरी विराट् त्रिष्टुप् । निचृत् त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूकम्॥
विषय
ज्ञान से रक्षा
पदार्थ
पदार्थ - (यः) = जो (वाम्) = आप दोनों का (प्रियः सन्) = प्रिय होकर (महिष्वन्तं) = उत्तम परिणामजनक (ओमानं) = ज्ञान और रक्षण-सामर्थ्य (दधते) = स्वयं धारता और आपको धारण कराता है, (अत्रये) = त्रिविध ताप रहित, तीन ऋणों से मुक्त विद्वान् के लिये (यद् वा चित्रं भोगनं नु अस्ति) = जो आपका नाना प्रकार का भोजन है वह (नि युयोतम्) = अवश्य पृथक् करो । \
भावार्थ
भावार्थ- जो पुरुष ज्ञान को स्वयं धारण करता है तथा अन्यों को भी धारण कराता है वह आधिदैविक, आधिभौतिक व आध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों से बचा रहता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
Whatever your food that may be special or surplus, keep that in reserve exclusively for people for the time of distress. They would love you for that because they honour the protector dear to them.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे राजपुरुषांनो! तुम्ही अन्नाचा कोष व विविध प्रकारचे धन संपादन करून पूर्ण ऐश्वर्ययुक्त व्हा. तुम्ही ऐश्वर्यसंपन्न झाल्यावर सर्व लोक तुमच्या शासनात राहून तुमच्याशी मेळ घालतील. कारण ऐश्वर्ययुक्त पुरुषाशी सर्व प्रजा मिळून मिसळून वागते व प्रेम करते. त्यासाठी प्रजापालन करणाऱ्या राजाचे मुख्य कर्तव्य हे आहे, की त्याने सर्व प्रकारे प्रयत्नपूर्वक ऐश्वर्य मिळवावे. ॥५॥
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