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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 68/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अश्विनौ छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    वृका॑य चि॒ज्जस॑मानाय शक्तमु॒त श्रु॑तं श॒यवे॑ हू॒यमा॑ना । याव॒घ्न्यामपि॑न्वतम॒पो न स्त॒र्यं॑ चिच्छ॒क्त्य॑श्विना॒ शची॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृका॑य । चि॒त् । जस॑मानाय । श॒क्त॒म् । उ॒त । श्रु॒त॒म् । श॒यवे॑ । हू॒यमा॑ना । यौ । अ॒घ्न्याम् । अपि॑न्वतम् । अ॒पः । न । स्त॒र्य॑म् । चि॒त् । श॒क्ती । अ॒श्वि॒ना॒ । शची॑भिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृकाय चिज्जसमानाय शक्तमुत श्रुतं शयवे हूयमाना । यावघ्न्यामपिन्वतमपो न स्तर्यं चिच्छक्त्यश्विना शचीभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृकाय । चित् । जसमानाय । शक्तम् । उत । श्रुतम् । शयवे । हूयमाना । यौ । अघ्न्याम् । अपिन्वतम् । अपः । न । स्तर्यम् । चित् । शक्ती । अश्विना । शचीभिः ॥ ७.६८.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 68; मन्त्र » 8
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अश्विना) हे राजकीयाः पुरुषाः ! (वृकाय) सूर्यतेजसः तेजस्विन इत्यर्थः, (चित्, शक्तं) प्रकाशितैश्वर्य्यसम्पन्नस्य, (जसमानाय) सदाचारविभूषितस्य, (श्रुतं) बहुश्रुतस्य (शयवे) विज्ञानवतः (उत) च राज्ञः (चित्, शक्ती) ऐश्वर्य्यरूपिणीः शक्तीः (यौ) यूयं (शचीभिः) शुभकर्मभिः (हूयमानाः) हवनीयैश्च वर्धयत। अन्यच्च (अघ्न्यां) सर्वदा रक्षित्र्यो गावः (अपः) स्वक्षीरैः (अपिन्वतं) तदैश्वर्य्यं वर्द्धयन्तु, याश्च गावः (स्तर्यं) वृद्धाः (न) न सन्तीत्यर्थः ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अश्विना) हे राजपुरुषो ! (वृकाय) आदित्य के समान (चित्, शक्तं) प्रकाशमान ऐश्वर्य्यसम्पन्न (जसमानाय) सत्कर्मों से विभूषित (श्रुतं) बहुश्रुत (उत) और (शयवे) विज्ञानी राजा की (चित्, शक्ती) ऐश्वर्य्यरूप शक्ति को (यौ) तुम लोग (शचीभिः, हूयमानाः) शुभ कर्मों तथा प्रतिदिन हवनादि यज्ञों द्वारा बढ़ाओ और (अध्न्यां) सर्वदा रक्षा करने योग्य गौएँ (अपः) अपने दुग्धों द्वारा (अपिन्वतं) उसके  ऐश्वर्य्य को बढ़ायें (न, स्तर्यम्) जो वृद्धा न हों ॥८॥

    भावार्थ

    “वृणक्ति य: स वृक:”=जो अन्धकार का नाशक हो, उसका नाम यहाँ “वृक“ है। परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे राजपुरुषो ! अविद्यादि अन्धकार के नाशक, विद्यादि गुणों से सम्पन्न और जो हनन करने योग्य नहीं, ऐसी “अघ्न्या”=सर्वदा रक्षायोग्य गौएँ दुग्ध द्वारा जिसके ऐश्वर्य्य को बढ़ाती अर्थात् शरीरों को पुष्ट करती हैं, ऐसे राजा के ऐश्वर्य्य को आप लोग सत्कर्मों द्वारा बढ़ायें ॥८॥

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    विषय

    स्त्रियों, कन्याओं की रक्षा का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    है ( अश्विना ) उत्तम वेगयुक्त अश्वों और यन्त्रों की विद्या को जानने वाले शिल्पज्ञ स्त्री पुरुषो ! आप दोनों ( जसमानाय ) प्रजा का नाश करने वाले, ( वृकाय ) चोर स्वभाव के, दम्भी पुरुष के लिये ( चित् ) अवश्य ( शक्तम् ) शक्त, सामर्थ्यवान् बनो । उसको दमन करने में समर्थ होओ । और ( हूयमाना ) आदर से बुलाये गये आप दोनों ( शयवे ) शान्ति सुख के इच्छुक पुरुष के हितार्थ ( श्रुतम् ) उसकी प्रार्थनादि श्रवण करो । ( यौ) जो आप दोनों ( शक्ती ) शक्ति से और ( शचीभिः ) वाणियों द्वारा ( अपः न ) जल जिस प्रकार नदी को पूर्ण करते हैं उसी प्रकार ( स्तर्यं ) आच्छादन, भरण पोषण और आश्रय देने योग्य ( अघ्न्याम् ) न मारने योग्य, गौ के समान रक्षा योग्य कन्या, स्त्री, भूमि और प्रजा को ( अपिन्वतम् ) पुष्ट करो, पालो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, ६, ८ साम्नी त्रिष्टुप् । २, ३, ५ साम्नी निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ७ साम्नी भुरिगासुरी विराट् त्रिष्टुप् । निचृत् त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूकम्॥

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    विषय

    स्त्री रक्षा

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (अश्विना) = अश्वों और यन्त्रों की विद्या जाननेवाले स्त्री-पुरुषो! आप दोनों (जसमानाय) = प्रजानाश करनेवाले, (वृकाय) = चोर दम्भी पुरुष के दमन के लिये (चित्) = अवश्य (शक्तम्) = समर्थ बनो। और (हूयमाना) = आदर से बुलाये गये आप दोनों (शयवे) = सुखेच्छु पुरुष के हितार्थ (श्रुतम्) = उसकी प्रार्थनादि श्रवण करो। (यौ) = जो आप दोनों (शक्ती) = शक्ति और (शचीभिः) = वाणियों द्वारा (अपः न) = जल जैसे नदी को पूर्ण करते वैसे (स्तर्यं) = आच्छादन, भरण, पोषण और आश्रय देने और (अघ्न्याम्) = न मारने योग्य गौ के समान कन्या, स्त्री भूमि और प्रजा (अपिन्वतम्) = पुष्ट करो ।

    भावार्थ

    भावार्थ-यन्त्रविद्या के जाननेवाले स्त्री-पुरुष दुष्टों व दम्भियों के चंगुल में फँसी स्त्री की रक्षा करें तथा उन दुष्टों का दमन करें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ashvins, harbingers of light and energy of a new day, against the wolfish thief and the aggressor, for the powers of law and punishment against exploitation, and for the lazy and the backward, bring force and counsel whenever the situation calls on you to act. You who command the competence for correction and rejuvenation with your powers can revitalise old cows and waste lands and make them overflow with milk and honey like abundant streams of water.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ‘वृणक्ति य: स वृक:’= जो अंधकाराचा नाशक आहे. त्याचे नाव ‘वृक’ आहे. परमात्मा उपदेश करतो, की हे राजपुरुषांनो! अविद्या इत्यादी अंधकाराचा नाशक, विद्या इत्यादी शुभ गुणांनी संपन्न व हनन करण्यायोग्य नाहीत. अशा ‘अघ्न्या’= सदैव रक्षण करण्यायोग्य अशा गाई दुधाद्वारे ज्याचे ऐश्वर्य वाढवितात, शरीर पृष्ट करतात, अशा राजाच्या ऐश्वर्याला तुम्ही सत्कर्मांनी वाढवावे. ॥८॥

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