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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 36/ मन्त्र 5
    ऋषिः - श्यावाश्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - शक्वरी स्वरः - धैवतः

    ज॒नि॒ताश्वा॑नां जनि॒ता गवा॑मसि॒ पिबा॒ सोमं॒ मदा॑य॒ कं श॑तक्रतो । यं ते॑ भा॒गमधा॑रय॒न्विश्वा॑: सेहा॒नः पृत॑ना उ॒रु ज्रय॒: सम॑प्सु॒जिन्म॒रुत्वाँ॑ इन्द्र सत्पते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ज॒नि॒ता । अश्वा॑नाम् । ज॒नि॒ता । गवा॑म् । अ॒सि॒ पिब॑ । सोम॑म् । मदा॑य । कम् । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । यम् । ते॒ । भा॒गम् । अधा॑रयन् । विश्वाः॑ । से॒हा॒नः । पृत॑नाः । उ॒रु । ज्रयः॑ । सम् । अ॒प्सु॒ऽजित् । म॒रुत्वा॑न् । इ॒न्द्र॒ । स॒त्ऽप॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जनिताश्वानां जनिता गवामसि पिबा सोमं मदाय कं शतक्रतो । यं ते भागमधारयन्विश्वा: सेहानः पृतना उरु ज्रय: समप्सुजिन्मरुत्वाँ इन्द्र सत्पते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जनिता । अश्वानाम् । जनिता । गवाम् । असि पिब । सोमम् । मदाय । कम् । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । यम् । ते । भागम् । अधारयन् । विश्वाः । सेहानः । पृतनाः । उरु । ज्रयः । सम् । अप्सुऽजित् । मरुत्वान् । इन्द्र । सत्ऽपते ॥ ८.३६.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 36; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    You are the generator of the horses. You are the generator of cows. O lord of a hundred acts of divinity, accept the soma of the ecstasy of your creations who celebrate the joy of their being to the extent that they reflect your kindness and grace in their love of life. You are the conqueror in all world’s struggles for existence and survival, immanent in expansive spaces and beyond, the life of cosmic waters and the breath of mighty winds, lord of truth and reality of existence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जीवात्म्याच्या ज्ञान कर्मेन्द्रियांच्या शक्तीचा मूळ स्रोत परमेश्वर आहे. त्याच्या गुणांपासून प्रेरणा ग्रहण करून प्रत्येक माणसाने आपल्या जीवनात तसे वागले पाहिजे. ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे (शतक्रतो) विविधकर्मरत तथा विविध बुद्धि द्वारा युक्त परम सामर्थ्यवान् परमात्मा! आप (अश्वानाम्) अश्वों के समान द्रुतगामी बलवान् कर्मेन्द्रिय रूप एवं (गवाम्) ज्ञानरूपी प्रकाश के कारणभूत ज्ञानेन्द्रिय रूप संचालक शक्तियों के (जनिता असि) मूल कारण हैं। शेष पूर्ववत्॥५॥

    भावार्थ

    जीवात्मा का संचालन करने वाला ज्ञान एवं कर्मेन्द्रिय शक्ति का मूल स्रोत प्रभु ही है; उसके गुणों से प्रेरणा ग्रहण कर प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का संचालन करना चाहिये॥५॥

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    विषय

    प्रभु की उपासना और उससे प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र सत्पते शतक्रतो) ऐश्वर्यवन् ! सज्जनों के पालक सैकड़ों यज्ञों कर्मों के स्वामिन् ! तू ( अश्वानां जनिता, गवां जनिता असि ) अश्वों और गौओं, सूर्यो और भूमियों का भोक्ता आत्मा और इन्द्रियों का भी उत्पन्न करने वाला है। शेष पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ६ शक्वरी। २, ४ निचृच्छक्वरी। ३ विराट् शक्वरी । ७ विराड् जगती॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'अश्वानां गवां' जनिता

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो! आप ही (अश्वानाम्) = [अश् व्याप्तौ] कर्मों में व्याप्त होनेवाली कर्मेन्द्रियों के (जनिता) = उत्पादक हैं तथा (गवाम्) = [ गमयन्ति अर्थात्] अर्थों की ज्ञापक ज्ञानेन्द्रियों के भी आप ही (जनिता असि) = प्रादुर्भूत करनेवाले हैं। इन कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों को सशक्त बनाने के लिये आप सोम का पान करिये। अवशिष्ट मन्त्र भाग एक संख्या पर द्रष्टव्य है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु सोमरक्षण द्वारा हमारी कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों को सशक्त बनाते हैं।

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