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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 61/ मन्त्र 10
    ऋषिः - भर्गः प्रागाथः देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    उ॒ग्रबा॑हुर्म्रक्ष॒कृत्वा॑ पुरंद॒रो यदि॑ मे शृ॒णव॒द्धव॑म् । व॒सू॒यवो॒ वसु॑पतिं श॒तक्र॑तुं॒ स्तोमै॒रिन्द्रं॑ हवामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒ग्रऽबा॑हुः । म्र॒क्ष॒ऽकृत्वा॑ । पु॒र॒म्ऽद॒रः । यदि॑ । मे॒ । शृ॒णव॑त् । हव॑म् । व॒सू॒यवो॒ वसु॑पतिं श॒तक्र॑तु॒म् स्तोमै॒र् इन्द्र॑म् हवामहे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उग्रबाहुर्म्रक्षकृत्वा पुरंदरो यदि मे शृणवद्धवम् । वसूयवो वसुपतिं शतक्रतुं स्तोमैरिन्द्रं हवामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उग्रऽबाहुः । म्रक्षऽकृत्वा । पुरम्ऽदरः । यदि । मे । शृणवत् । हवम् । वसूयवो वसुपतिं शतक्रतुम् स्तोमैर् इन्द्रम् हवामहे ॥ ८.६१.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 61; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 37; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    If the lord of mightiest arms, breaker of evil strongholds, divine destroyer, would listen to my invocation and prayer, we, seekers of wealth, honour and excellence in life, would adore and exalt Indra, protector and giver of wealth and supreme lord of infinite divine acts of grace, hymns of praise in his honour.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ईश्वराविषयीच्या विशेषणात उग्रबाहू व पुरंदर इत्यादी शब्द दर्शविले जातात. असे म्हटले जाते की, तो परम न्यायी आहे. त्याच्यासमोर पापी, अपराधी व नास्तिक उभे राहू शकत नाहीत. त्यासाठी माणूस आपले कल्याण इच्छित असेल तर असत्य इत्यादी दोषांचा प्रथम सर्वस्वी त्याग केला पाहिजे.॥१०॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमर्थमाह ।

    पदार्थः

    उग्रबाहुः=दुष्टान् प्रतिभयानकभुजः । म्रक्षकृत्वा=अवसाने सृष्टेः संहारकर्ता । पुरन्दरः=दुर्जनपुरां दारयिता परमन्यायीशः । यदि मे=मम । हवम्=आह्वानम् । शृणवत्=शृणुयात् । तर्हि अहं कृतकृत्यो भविष्यामीत्यर्थः । एवं तर्हि । वयं=सर्वे । वसूयवः=वसुकामाः । मिलित्वा । वसुपतिम्=धनपतिम् । शतक्रतुम्=अनन्तकर्माणम् । स्तोमैः=स्तोत्रैः । हवामहे=प्रार्थयामहे ॥१० ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी अर्थ को कहते हैं ।

    पदार्थ

    (उग्रबाहुः) दुष्टों के प्रति भयानक भुजधारी (म्रक्षकृत्वा) सृष्टि के अन्त में संहारकारी (पुरन्दरः) दुर्जनों के नगरों का विदारयिता ईश (यदि+मे+हवम्) यदि मेरी प्रार्थना आह्वान और आवाहन (शृणवत्) सुने, तो मैं कृतकृत्य हो जाऊँगा और तब (वसूयवः) सम्पत्त्यभिलाषी हम सब मिल के (वसुपतिम्) धनेश (शतक्रतुम्) अनन्तकर्मा (इन्द्रम्) उस भगवान् की (स्तोमैः) स्तोत्रों से (हवामहे) प्रार्थना करें ॥१० ॥

    भावार्थ

    ईश्वर के विशेषण में उग्रबाहु और पुरन्दर आदि शब्द दिखलाते हैं कि वह परम न्यायी है । इसके निकट पापी, अपराधी और नास्तिक खड़े नहीं हो सकते, अतः यदि मनुष्य निज कल्याण चाहें, तो असत्यादि दोष प्रथम सर्वथा त्याग देवें ॥१० ॥

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    विषय

    परमेश्वर के ध्यान ज्ञान से कर्म करने वाला पवित्र हृदय होता है।

    भावार्थ

    हे ( वसूयवः ) धनाभिलाषी जनो ! ( यदि ) जब २ ( वसुपतिं ) सब ऐश्वर्यों और जीवों के पालक, ( शतक्रतुं ) अनन्त ज्ञानों और कर्म सामर्थ्यों से पूर्ण, ( इन्द्रं ) ऐश्वर्यप्रद इस स्वामी को हम ( स्तोमैः हवामहे ) नाना स्तुति वचनों से प्रार्थना करें ( उग्र-बाहुः ) बलवान् बाहु वाला, ( म्रक्ष-कृत्वा ) शत्रुओं का नाशक, ( पुरन्दरः ) शत्रुपुरों को तोड़ने में समर्थ, ( मे हवम् शृणवत् ) मेरे स्तुति वचन को श्रवण कर। इति सप्तत्रिंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भर्गः प्रागाथ ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ११, १५, निचृद् बृहती। ३, ९ विराड् बृहती। ७, १७ पादनिचृद् बृहती। १३ बृहती। २, ४, १० पंक्तिः। ६, १४, १६ विराट् पंक्तिः। ८, १२, १८ निचृत् पंक्तिः॥ अष्टादशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    उग्रबाहु प्रक्षक्रत्वा' प्रभु

    पदार्थ

    [१] (उग्रबाहुः) = तेजस्वी भुजाओंवाला, (प्रक्षक्रत्वा) = शत्रुओं का वध करनेवाला, (पुरन्दरः) = असुरों की पुरियों का विदारण करनेवाला वह प्रभु ही (यदि) = यदि (मे) = मेरी (हवम्) = पुकार को (शृणवत्) = सुनता है, तो (वसूयवः) = वसुओं की कामनावाले होते हुए हम (वसुपतिं) = वसुओं के स्वामी (शतक्रतुं) = अनन्त शक्तिवाले (इन्द्रं) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को ही (स्तोमैः) = स्तोत्रों के द्वारा (हवामहे) = पुकारते हैं। [२] वस्तुतः संसार में प्रभु ही हमारी कामनाओं को पूर्ण करते हैं। प्रभु को पुकारना ही ठीक है। अन्य व्यक्ति तो संपत्ति में ही साथी हैं। विपत्ति में सहायक प्रभु ही हैं। ये प्रभु ही हमारे शत्रुओं को विनष्ट करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु ही तेजस्वी व शत्रुओं के नाशक हैं। प्रभु ही हमारी पुकार को सुनते हैं। हमें उस वसुपति प्रभु को ही पुकारना योग्य है।

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