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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 102 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 102/ मन्त्र 3
    ऋषिः - त्रितः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    त्रीणि॑ त्रि॒तस्य॒ धार॑या पृ॒ष्ठेष्वेर॑या र॒यिम् । मिमी॑ते अस्य॒ योज॑ना॒ वि सु॒क्रतु॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रीणि॑ । त्रि॒तस्य॑ । धार॑या । पृ॒ष्ठेषु॑ । आ । ई॒र॒य॒ । र॒यिम् । मिमी॑ते । अ॒स्य॒ । योज॑ना । वि । सु॒ऽक्रतुः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रीणि त्रितस्य धारया पृष्ठेष्वेरया रयिम् । मिमीते अस्य योजना वि सुक्रतु: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रीणि । त्रितस्य । धारया । पृष्ठेषु । आ । ईरय । रयिम् । मिमीते । अस्य । योजना । वि । सुऽक्रतुः ॥ ९.१०२.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 102; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (त्रितस्य, धारया)  गुणत्रयस्य  धारणाशक्त्या (पृष्ठेषु)  ब्रह्माण्डे (त्रीणि) त्रीणि भूतानि (ईरय) प्रेरयन् परमात्मा (रयिम्) ऐश्वर्यम् (मिमीते) उत्पादयति (सुक्रतुः)  सुप्रज्ञः स च (अस्य, योजना)  अस्य ब्रह्माण्डस्य योजनां करोति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (त्रितस्य, धारया) तीनों गुणों की धारणारूप शक्ति से (पृष्ठेषु) इस ब्रह्माण्ड में (त्रीणि) तीन प्रकार के भूतों को (ईरय) प्रेरणा करता हुआ परमात्मा (रयिं) ऐश्वर्य्य को (मिमीते) उत्पन्न करता है, (सुक्रतुः) शोभन प्रज्ञावाला परमात्मा (अस्य, योजना) इस ब्रह्माण्ड की योजना करता है ॥३॥

    भावार्थ

    प्रकृति के सत्त्व, रज, तम, तीनों गुणों द्वारा परमात्मा इस ब्रह्माण्ड की रचना करता है ॥३॥

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    विषय

    विद्वान् प्रभु की स्तुति उपदेशादि करे।

    भावार्थ

    हे विद्वन् ! तू (त्रितस्य) तीनों लोकों में व्यापक प्रभु (त्रीणि) तीनों रूपों को (धारया) वाणी द्वारा (ईरय) बतला। (पृष्ठेषु) समस्त लोकों में (रयिम्) जीवन प्रकाश आदि देने वाले उस प्रभु की (आ ईरय) सर्वत्र स्तुति कर। (सुक्रतुः) उत्तम कामों को करने वाला, मनुष्य (अस्य) इस प्रभु के (योजना) जगत् के सञ्चालक अनेक बलों को (वि मिमीते) विशेष रूप से जानता और उन को विविध रूपों में बनाता, प्रकट करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्रित ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः–१–४, ८ निचृदुष्णिक्। ५-७ उष्णिक्। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    त्रीणि धारय

    पदार्थ

    हे सोम ! तू (त्रितस्य) = काम-क्रोध-लोभ को तैरनेवाले इस पुरुष के (त्रीणि धारय) = शरीर, मन व मस्तिष्क तीनों का धारण कर, इसे कर्म उपासना व ज्ञान वाला बना । इसके इन 'शक्ति-यज्ञ व ज्ञान' रूप (रयिम्) = ऐश्वर्यों को (पृष्ठेषु) = शिखरों पर (एरयः) = प्रेरित कर। यह सोमी पुरुष शक्ति यज्ञ व ज्ञान रूप ऐश्वर्यों के दृष्टिकोण से बड़ा उन्नत हो। यह (सुक्रतुः) = उत्तम 'शक्ति यज्ञ व प्रज्ञान' वाला पुरुष (अस्य) = इस सोम के (योजना) = शरीर के अंग-प्रत्यंग में मेल को वि मिमीते विशेष रूप से करनेवाला होता है। जितना जितना यह सोमरक्षण के लाभ को देखता है, उतना उतना सोम को अपने साथ जोड़ने की कामना वाला होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमारे शरीर, मन व मस्तिष्क तीनों का धारण करता है यह 'शक्ति यज्ञ व प्रज्ञान' रूप ऐश्वर्यों को बढ़ाता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    By three streams of the moving particles of matter, energy and mind does the triple master, Soma, move the dynamics of existence, and thus does the supreme high priest order and accomplish his cosmic plan.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रकृतीच्या सत्व, रज, तम तीन गुणांद्वारे परमेश्वर या ब्रह्मांडाची रचना करतो. ॥३॥

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