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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 104 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 104/ मन्त्र 4
    ऋषिः - पर्वतनारदौ द्वे शिखण्डिन्यौ वा काश्यप्यावप्सरसौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    अ॒स्मभ्यं॑ त्वा वसु॒विद॑म॒भि वाणी॑रनूषत । गोभि॑ष्टे॒ वर्ण॑म॒भि वा॑सयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्मभ्य॑म् । त्वा॒ । व॒सु॒ऽविद॑म् । अ॒भि । वाणीः॑ । अ॒नू॒ष॒त॒ । गोभिः॑ । ते॒ । वर्ण॑म् । अ॒भि । वा॒स॒या॒म॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्मभ्यं त्वा वसुविदमभि वाणीरनूषत । गोभिष्टे वर्णमभि वासयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्मभ्यम् । त्वा । वसुऽविदम् । अभि । वाणीः । अनूषत । गोभिः । ते । वर्णम् । अभि । वासयामसि ॥ ९.१०४.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 104; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वसुदिवम्)  विविधैश्वर्यप्रदं भवन्तं (अस्मभ्यम्) अस्माकं (वाणीः)  स्तुतिवाक् (अभ्यनूषत) वर्णयतु  (ते) तव (वर्णं) वर्णनं (गोभिः)  चित्तवृत्तिभिः (अभिवासयामसि) चित्ते वासयाम ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (वसुविदम्) सम्पूर्ण प्रकार के ऐश्वर्य्यों को देनेवाले आपको (अस्मभ्यम्) हमारी (वाणीः) स्तुतिरूप वाणी (अभ्यनूषत) वर्णन करे, (ते) तुम्हारे (वर्णम्) वर्णन को (गोभिः) चित्तवृत्तियों द्वारा (अभिवासयामसि) अपने चित्त में बसायें ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा अनन्तगुणसम्पन्न है। उसके गुणों के वर्णन को जो पुरुष श्रवण, मनन और निदिध्पासन द्वारा चित्त में बसाते हैं, वे पुरुष अवश्यमेव ज्ञानयोगी बनते हैं ॥४॥

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    विषय

    प्रभु से वेदवाणियों द्वारा अपनी अभिलाषाएं प्रकट करना। (५

    भावार्थ

    (अस्मभ्यं वसु-विदम्) हमें अनेक धनों को प्राप्त कराने वाले (त्वा) तुझको (वाणीः अभि अनूषत) नाना वाणियें स्तुतियां करता हैं। हे प्रभो ! हमें (ते वर्णम्) तेरे वर्ण अर्थात् तेरे प्रति अपनी अभिलाषा या चाह को (गोभिः अभि वासयामसि) नाना वेदवाणियों से आच्छादित करते हैं, उन्हीं द्वारा प्रकट करते हैं। वाणियां हमारी इच्छाओं के प्रकट रूप हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पर्वत नारदौ द्वे शिखण्डिन्यौ वा काश्यप्यावप्सरसौ ऋषी॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः–१, ३, ४ उष्णिक्। २, ५, ६ निचृदुष्णिक्॥

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    विषय

    वसुविदम्

    पदार्थ

    हे सोम! (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (वसुविदं त्वा) = सब वसुओं को प्राप्त करानेवाले तुझको (वाणी:) = स्तुति वाणियाँ (अभि अनूषत) = स्तुत करती हैं। तेरे गुणों का गायन करती हुईं ये वाणियाँ हमें तेरे रक्षण में अधिक और अधिक प्रीतिवाला करती हैं। हम (गोभिः) = इन ज्ञान की वाणियों के द्वारा ते (वर्णं) = तेरे इस चोगे [covering] या आवरण को (अभिवासयामसि) = आच्छादित करते हैं। ज्ञान की वाणियों के अध्ययन में तत्पर रहने पर हम वासनाओं से बचे रहते हैं और सोम को सुरक्षित कर पाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - खाली समय को ज्ञान प्राप्ति में बिताने से वासनाओं का आक्रमण नहीं होता और सोम के रक्षण का सम्भव होता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Our songs of adoration celebrate and exalt you as creator, knower and giver of peace, power, wealth and honours of the world. Indeed, with thoughts, words and vision, we glorify your power and presence as it emerges in our experience.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा अनंत गुणसंपन्न आहे. त्याच्या गुणांना जे पुरुष श्रवण, मनन व निदिध्यासनाद्वारे चित्तात वसवितात ते पुरुष अवश्य ज्ञानयोगी बनतात. ॥४॥

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