ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 40/ मन्त्र 2
आ योनि॑मरु॒णो रु॑ह॒द्गम॒दिन्द्रं॒ वृषा॑ सु॒तः । ध्रु॒वे सद॑सि सीदति ॥
स्वर सहित पद पाठआ । योनि॑म् । अ॒रु॒णः । रु॒ह॒त् । गम॑त् । इन्द्र॑म् । वृषा॑ । सु॒तः । ध्रु॒वे । सद॑सि । सी॒द॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ योनिमरुणो रुहद्गमदिन्द्रं वृषा सुतः । ध्रुवे सदसि सीदति ॥
स्वर रहित पद पाठआ । योनिम् । अरुणः । रुहत् । गमत् । इन्द्रम् । वृषा । सुतः । ध्रुवे । सदसि । सीदति ॥ ९.४०.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 40; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अरुणः) सर्वव्यापकः (सुतः) स्वयम्भूः स परमात्मा (आयोनिं रुहत्) अखिलां प्रकृतिं व्याप्नोति किञ्च (वृषा) सर्वाभिलाषदः सः (सदसि) यज्ञस्थले (इन्द्रम् गमत्) ज्ञानयोगिनं प्राप्नुवन् (ध्रुवे सीदति) तदीये दृढविश्वासेऽन्तःकरणे विराजते ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अरुणः) सर्वव्यापी (सुतः) स्वयंसिद्ध वह परमात्मा (आयोनिं रुहत्) सम्पूर्ण प्रकृति में व्याप्त हो रहा है और (वृषा) सर्व कामनाओं का देनेवाला वह परमात्मा (सदसि) यज्ञस्थल में (इन्द्रम् गमत्) ज्ञानयोगी को प्राप्त होकर (ध्रुवे सीदति) उसके दृढविश्वासी अन्तःकरण में विराजमान होता है ॥२॥
भावार्थ
कर्मयोगी पुरुषों को परमात्मा सदैव उत्साह देकर सत्कर्मों में प्रवृत्त करता है ॥२॥
विषय
योनि - आरोहण
पदार्थ
[१] (अरुण:) = यह तेजोमय, अप्रतिहत सामर्थ्यवाला सोम (योनिम्) = अपने उत्पति स्थान इस शरीर में (आरुहत्)=- आरोहण करता है, शरीर में ही इसकी ऊर्ध्वगति होती है। ऐसी स्थिति में (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (वृषा) = शक्ति का सेचन करनेवाला होता है और (इन्द्रम्) = इस जितेन्द्रिय पुरुष को (गमत्) = प्राप्त होता है। अथवा उस परमैश्वर्यशाली प्रभु की ओर चलनेवाला होता है । [२] उस प्रभु की ओर चलता हुआ यह सोम अन्तत: (ध्रुवे सदसि) = उस (ध्रुव) = अविचल सब के आधार [सर्वाधार ] प्रभु में (सीदति) = स्थित होता है। हमें यह प्रभु को प्राप्त करानेवाला बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम की शरीर में ऊर्ध्वगति होने पर यह हमें शक्तिशाली बनाता हुआ प्रभु की ओर ले चलता है, अन्ततः प्रभु में आसीन करता है ।
विषय
विद्वान् ज्ञानी की स्तुति।
भावार्थ
(अरुणः) तेजोमय, अप्रतिहत सामर्थ्य वाला (वृषा) बलवान्, सुखवर्षी, (सुतः) अति पवित्र, अभिषिक्तवत् स्वच्छ जीव (योनिम्) आश्रय रूप (इन्द्रम् आ रुहत्) उस ऐश्वर्यवान् प्रभु को प्राप्त हो, उस तक चढ़ जावे और (सदसि) राजसभा में सभापति के समान उस (ध्रुवे) ध्रुव, निष्प्रकम्प, (सदसि) शरण योग्य परमेश्वर में (सीदति) स्थिति प्राप्त करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बृहन्मतिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २ गायत्री। ३-६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The glorious light of divinity, self-manifested and self-existent, pervades its natural abode, the world of Prakrti, and the generous spirit pervades the human soul too, and while it seats itself in the unshakable faith of man, the human soul too, purified and sanctified, abides in the eternal presence of divinity.
मराठी (1)
भावार्थ
कर्मयोगी पुरुषांना परमात्मा सदैव उत्साह देऊन सत्कर्मात प्रवृत्त करतो. ॥२॥
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