ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 40/ मन्त्र 6
पु॒ना॒न इ॑न्द॒वा भ॑र॒ सोम॑ द्वि॒बर्ह॑सं र॒यिम् । वृष॑न्निन्दो न उ॒क्थ्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒ना॒नः । इ॒न्दो॒ इति॑ । आ । भ॒र॒ । सोम॑ । द्वि॒ऽबर्ह॑सम् । र॒यिम् । वृष॑न् । इ॒न्दो॒ इति॑ । नः॒ । उ॒क्थ्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनान इन्दवा भर सोम द्विबर्हसं रयिम् । वृषन्निन्दो न उक्थ्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठपुनानः । इन्दो इति । आ । भर । सोम । द्विऽबर्हसम् । रयिम् । वृषन् । इन्दो इति । नः । उक्थ्यम् ॥ ९.४०.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 40; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो सोम) हे परमैश्वर्यशालिन् परमात्मन् ! (पुनानः) मत्स्वभावं पवित्रयन् (द्विबर्हसम् रयिम् आभर) द्युलोकपृथिवीद्वयस्यैश्वर्यं देहि (इन्दो) हे प्रकाशरूप (वृषन्) सर्वेष्टदस्त्वं (नः उक्थ्यम्) मम स्तुतिमयीं वाचं च स्वीकुरु ॥६॥ इति चत्वारिंशत्तमं सूक्तं त्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो सोम) हे परमैश्वर्यशाली परमात्मन् ! (पुनानः) आप मेरे स्वभाव को पवित्र करते हुए (द्विबर्हसम् रयिम् आभर) द्युलोक तथा पृथिवीलोकसम्बन्धी दोनों ऐश्वर्यों को दीजिये (इन्दो) हे प्रकाशरूप ! (वृषन्) सब कामनाओं की वर्षा करनेवाले आप (नः उक्थ्यम्) मेरी स्तुतिरूप वाणी स्वीकार करिये ॥६॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मा के गुण-कर्मानुसार अपने स्वभाव को बनाते हैं, परमात्मा उन्हें ऐहिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के सुख प्रदान करता है ॥६॥ यह ४० वाँ सूक्त और ३० वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
अभ्युदय व निःश्रेयस का साधक सोम
पदार्थ
[१] हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले (सोम) = सोम (पुनानः) = हमें पवित्र करता हुआ तू (द्विबर्हसम्) = [द्वयोः लोकयोः परिवृढम् सा० ] इहलोक व परलोक के दृष्टिकोण से बढ़े हुए, अभ्युदय व निःश्रेयस रूप (रयिम्) = ऐश्वर्य को (आभर) = हमें प्राप्त करा । सोमरक्षण से इस लोक में अभ्युदय को प्राप्त करने पर हम निःश्रेयस को प्राप्त करनेवाले बनें। [२] हे (वृषन्) = सब सुखों का वर्षण करनेवाले (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू (नः) = हमारे लिये (उक्थ्यम्) = स्तुति के योग्य, प्रशंसनीय धन को देनेवाला हो, सोमरक्षक पुरुष धन को प्राप्त करता है। उस धन का सदुपयोग करके वह यशस्वी बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमारे अभ्युदय व निः श्रेयस का साधक होता है । सोमरक्षण से जीवन को उत्तम बनाकर यह मेध्य [पवित्र] प्रभु के आतिथ्य के लिये उद्यत होकर 'मेध्यातिथि' बनता है । यह कहता है कि-
विषय
परमेश्वर से बलों की और ऐश्वयों की प्रार्थना, याचनादि।
भावार्थ
हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन्! हे (सोम) जगत्-सञ्चालक ! वा स्नेहवन् ! तू (नः) हमें (द्वि-बर्हसम्) दोनों लोकों में बढ़ने वाला (रयिम्) ऐश्वर्य प्रदान कर। हे (वृषन्) बलवन् ! सुखवर्षिन् ! तू (नः) हमारे (उक्थ्यम्) उत्तम वचन योग्य ऐश्वर्य को (आ भर) प्राप्त करा। इति त्रिंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बृहन्मतिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २ गायत्री। ३-६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, lord of peace, beauty, power and divine bliss, bring us the honour, excellence and glory of both the worlds, earth and heaven, and, O generous lord, bless us with excellence worthy of celebration in sacred song for presentation to divinity.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक परमात्म्याच्या गुणकर्मानुसार आपला स्वभाव बनवितात. परमात्मा त्यांना ऐहिक व पारलौकिक दोन्ही प्रकारचे सुख प्रदान करतो. ॥६॥
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