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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 77 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 77/ मन्त्र 4
    ऋषिः - कविः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    अ॒यं नो॑ वि॒द्वान्व॑नवद्वनुष्य॒त इन्दु॑: स॒त्राचा॒ मन॑सा पुरुष्टु॒तः । इ॒नस्य॒ यः सद॑ने॒ गर्भ॑माद॒धे गवा॑मुरु॒ब्जम॒भ्यर्ष॑ति व्र॒जम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । नः॒ । वि॒द्वान् । व॒न॒व॒त् । व॒नु॒ष्य॒तः । इन्दुः॑ । स॒त्राचा॑ । मन॑सा । पु॒रु॒ऽस्तु॒तः । इ॒नस्य॑ । यः । सद॑ने । गर्भ॑म् । आ॒ऽद॒धे । गवा॑म् । उ॒रु॒ब्जम् । अ॒भि । अर्ष॑ति । व्र॒जम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं नो विद्वान्वनवद्वनुष्यत इन्दु: सत्राचा मनसा पुरुष्टुतः । इनस्य यः सदने गर्भमादधे गवामुरुब्जमभ्यर्षति व्रजम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । नः । विद्वान् । वनवत् । वनुष्यतः । इन्दुः । सत्राचा । मनसा । पुरुऽस्तुतः । इनस्य । यः । सदने । गर्भम् । आऽदधे । गवाम् । उरुब्जम् । अभि । अर्षति । व्रजम् ॥ ९.७७.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 77; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अयम्) असौ यः (नः) अस्माकं मध्ये (विद्वान्) मनीष्यस्ति सः (वनुष्यतः) अस्माकं शत्रून् (सत्राचा मनसा) समाहितमनसा (वनवत्) नाशयतु। स परमात्मा (इन्दुः) प्रकाशस्वरूपोऽस्ति। तथा (पुरुष्टुतः) मान्योऽस्ति (यः) यो जनः (इनस्य) ईश्वरस्य (सदने) सन्निधौ (गर्भम्) शिक्षां (आदधे) दधाति सः (गवाम्) इन्द्रियाणां (व्रजम्) फलानि (उरुब्जम्) यानि श्रेष्ठतराणि सन्ति तानि (अभ्यर्षति) प्राप्नोति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अयम्) यह जो (नः) हमारे मध्य में (विद्वान्) विद्वान् है, वह (वनुष्यतः) हमारे शत्रुओं को (सत्राचा मनसा) समाहित मन से (वनवत्) नाश कर सकता है और वह परमात्मा (इन्दुः) प्रकाशस्वरूप है (पुरुष्टुतः) तथा माननीय है। (यः) जो पुरुष (इनस्य) ईश्वर की (सदने) सन्निधि में (गर्भम्) शिक्षा को (आदधे) धारण करता है, वह (गवाम्) इन्द्रियों के (व्रजम्) फल को (उरुब्जम्) जो सर्वोपरि है, उसको (अभ्यर्षति) प्राप्त होता है ॥४॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् इश्वरीयज्ञान पर विश्वास करता है, वह मनुष्यजन्म के फल को प्राप्त करता है ॥४॥

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    विषय

    प्रभु का अपूर्व शासन।

    भावार्थ

    (अयं) यह (इन्दुः) दयाशील, शत्रु को संन्तप्त करने में समर्थ, (सत्राचा मनसा पुरु-स्तुतः) सत्ययुक्त मन से बहुतों द्वारा स्तुति किया, (विद्वान्) ज्ञानवान् प्रभु (वनुष्यतः वनवद्) हिंसा करने वालों का नाश करता है। (यः) जो प्रभु वा स्वामी (इनस्य सदने) स्वामी के स्थान, हृदय में स्थित होकर पति के समान समस्त योनियों में वा प्रकृतिरूप मूल कारण में (गर्भम् आ दधे) सृष्टि-बीज को हिरण्यगर्भ रूप से धारण कराता है और जो (उरुब्जम्) महान्, प्रभूत प्राणों वा सूक्ष्मजलों, वा प्रकृति के परमाणुओं में उत्पन्न, (व्रजम्) विकृति समूहों और जीव गण को (अभि अर्षति) व्यापता या प्राप्त होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः– १ जगती। २, ४, ५ निचृज्जगती। ३ पादनिचृज्जगती॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    गवां उरुब्जमभ्यर्षति व्रजम्

    पदार्थ

    [१] (अयम्) = यह (इन्दुः) = सोम (नः) = हमारे (वनुष्यतः) = हनन की कामनावाले शत्रुओं को (विद्वान्) = जानता हुआ (वनवत्) = उन्हें नष्ट करता है । सोमरक्षण से काम-क्रोध आदि शत्रुओं का विनाश हो जाता है । यह सोम शत्रु विनाश करके (सत्राचा) = [सह अञ्चता] आत्मा के साथ गतिवाले, विषयों में इधर-उधर न भटकते हुए, (मनसा) = मन से (पुरुष्टुतः) = खूब ही स्तवनवाला होता है । [२] (इनस्य) = स्वामी के, अपनी इन्द्रियों को वश में करनेवाले के (सदने) = इस शरीर रूप गृह में स्थित यज्ञवेदि तुल्य हृदय स्थली में (गर्भम्) = सभी के अन्दर रहनेवाले गर्भरूप प्रभु को (यः) = जो (आदधे) = स्थापित करता है, वह सोम (गवाम्) = वेदवाणियों के उस (व्रजम्) = समूह को (अभ्यर्षति) = आभिमुख्येन प्राप्त होता है, जो (उरुब्जम्) = [उरु अप् ज ] विशाल कर्मों को जन्म देनेवाला है। वेदवाणी का अध्ययन करनेवाला कभी संकुचित कर्मों को नहीं करता ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमारे हिंसक शत्रुओं को विनष्ट करता है, हमारे मनों को विषयों में भटकने से बचाता है, हमें विशाल कर्मों के करनेवाला वैदिक जीवन देता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This our sagely scholar, brilliant and generous, widely admired and adored, loving the loving and dispelling the violent with a disciplined and concentrated mind, who has received the eternal seed of knowledge in the presence of the glorious lord of divinity, proceeds to the highest abundant origin of the mind and senses and moves further forward.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्वान ईश्वरीय ज्ञानावर विश्वास ठेवतात. त्याला मनुष्य जन्माच्या फळाचा लाभ होतो. ॥४॥

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