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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    पु॒ना॒नास॑श्चमू॒षदो॒ गच्छ॑न्तो वा॒युम॒श्विना॑ । ते नो॑ धान्तु सु॒वीर्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒ना॒नासः॑ । च॒मू॒ऽसदः॑ । गच्छ॑न्तः । वा॒युम् । अ॒श्विना॑ । ते । नः॒ । धा॒न्तु॒ । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनानासश्चमूषदो गच्छन्तो वायुमश्विना । ते नो धान्तु सुवीर्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुनानासः । चमूऽसदः । गच्छन्तः । वायुम् । अश्विना । ते । नः । धान्तु । सुऽवीर्यम् ॥ ९.८.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (पुनानासः) सर्वजनं पुनानः परमात्मा (चमूषदः) प्रतिसैनिकबलं विद्यमानः (अश्विना) प्रत्येकं कर्मयोगिनं ज्ञानयोगिनं च तथा (वायुम्) गमनशीलं विद्वांसं च (गच्छन्तः) प्राप्नुवन् (ते) स ईश्वरः (नः) अस्माकम् (सुवीर्यम्) सुतेजः (धान्तु) धारयतु ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (पुनानासः) सबको पवित्र करनेवाला परमात्मा (चमूषदः) जो प्रत्येक सैनिक बल में रहता है (अश्विना) प्रत्येक कर्मयोगी और ज्ञानयोगी को तथा (वायुम्) गतिशील विद्वान् को (गच्छन्तः) जो प्राप्त है (ते) वह परमात्मा (नः) हमको (सुवीर्यम्) सुन्दर बल (धान्तु) धारण कराये ॥२॥

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    विषय

    क्रियाशील व प्राणसाधक को सोमकणों की प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] (वायुम्) = गतिशील पुरुष को तथा (अश्विना) = प्राणापान की साधना करनेवाले पुरुष को (गच्छन्तः) = प्राप्त होते हुए (चमूषदः) = इस शरीर रूप चमस [पात्र] में ही स्थित होनेवाले सोमकण (पुनानासः) = हमारे जीवनों को पवित्र करते हैं। सोमकणों के रक्षण के लिये दो साधन हैं— [क] क्रिया में लगे रहना, [ख] प्राणापान की साधना करना, प्राणायाम का अभ्यासी बनना । रक्षित सोम हमारे जीवन को पवित्र बनाता है, आधि-व्याधियों से शून्य करता है । [२] (ते) = वे सोमकण (न:) = हमारे लिये (सुवीर्यम्) = उत्तम पराक्रम को (धान्तु) = धारण करें।

    भावार्थ

    भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोमकण रोगकृमियों को कम्पित करके दूर करनेवाले होते हैं ।

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    विषय

    सेना के अनेक अध्यक्षों के दो प्रधान नायकों के प्रति कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (पुनानासः) स्वयं अभिषेकादि से पवित्र, युद्धार्थ दीक्षित होकर (चमू-सदः) सेनाओं के अध्यक्ष पद पर स्थित नायक जन (वायुम्) बलवान् मुख्य सेनापति और (अश्विना) अश्वों पर सवार दो प्रधान नायकों को (गच्छन्तः) प्राप्त होते हुए (ते) वे (नः सुवीर्यम्) हमारे उत्तम बल को (धातु) धारण करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ५, ८ निचृद् गायत्री। ३, ४, ७ गायत्री। ६ पादनिचृद् गायत्री। ९ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The same soma streams of life distilled from nature, contained in deep reservoirs, vibrating in human veins and nerves, marshalling in social forces energise and motivate the vibrant scholar and the pursuers of jnana-yoga and karma-yoga in knowledge and action. May they bring us the lustre and vitality of creative splendour and graces of culture, sanctifying as they are.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा सर्वांना पवित्र करणारा, प्रत्येक सैनिकाच्या बलात असणारा व प्रत्येक ज्ञानयोगी व कर्मयोग्याला गतिशील करणारा असून विद्वानाला प्राप्त होतो. त्याने आम्हाला उत्तमबल द्यावे. ॥२॥

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