ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 8/ मन्त्र 6
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - पादनिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
पु॒ना॒नः क॒लशे॒ष्वा वस्त्रा॑ण्यरु॒षो हरि॑: । परि॒ गव्या॑न्यव्यत ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒ना॒नः । क॒लशे॑षु । आ । वस्त्रा॑णि । अ॒रु॒षः । हरिः॑ । परि॑ । गव्या॑नि । अ॒व्य॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनानः कलशेष्वा वस्त्राण्यरुषो हरि: । परि गव्यान्यव्यत ॥
स्वर रहित पद पाठपुनानः । कलशेषु । आ । वस्त्राणि । अरुषः । हरिः । परि । गव्यानि । अव्यत ॥ ९.८.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 8; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 31; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 31; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
स परमात्मा (वस्त्राणि, अरुषः) विद्युदिव तेजोमयवस्त्रं दधानः (आ) समस्तवस्तूनि आत्मनि निधाय (कलशेषु) प्रतिब्रह्माण्डं व्याप्य (पुनानः) जगत् पुनाति, तथा (हरिः) सर्वापद्धारकः (गव्यानि, पर्यव्यत) पृथिव्यादि- सर्वलोकानाच्छादयति ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
वह परमात्मा (वस्त्राणि, अरुषः) विद्युत् के समान तेजरूप वस्त्रों को धारण करता हुआ (आ) प्रत्येक वस्तु को अपने भीतर रखकर (कलशेषु) प्रत्येक ब्रह्माण्ड में आप व्यापक होकर (पुनानः) सबको पवित्र कर रहा है और (हरिः) सबके दुःखों को हरनेवाला (गव्यानि, पर्यव्यत) प्रत्येक पृथिव्यादि ब्रह्माण्डों का आच्छादन कर रहा है ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा इस संसार की उत्पत्ति, स्थिति तथा प्रलय का कारण है, इसलिये उसको हरि रूप से कथन किया है, वह परमात्मा विद्युत् के समान गतिशील होकर सबको चमत्कृत करता है। उसी की ज्योति को ज्ञानवृत्ति द्वारा उपलब्ध करके योगी आनन्दित होते हैं ॥६॥
विषय
अरुषः - हरिः
पदार्थ
[१] (कलशेषु) = ' कलाः शेरते एषु' सोलह कलाओं के आधारभूत इन शरीरों में व्याप्त होता हुआ यह सोम (पुनानः) = पवित्र करनेवाला है। यह (आ अरुषः) = आरोचमान है, ज्ञान को दीप्त करनेवाला है । (हरिः) = कष्टों व रोगों का हरण करनेवाला है। [२] इसके रक्षण के लिये (गव्यानि) = ज्ञान की वाणियों से बने हुए (वस्त्राणि) = वस्त्रों को परि (अव्यत) = समन्तात् धारण करनेवाले बनो [पर्याच्छादयति-अव्यति सा० ] । 'गव्य वस्त्रों को धारण' का भाव है 'निरन्तर ज्ञान प्राप्ति में लगना ' । यह ज्ञान का व्यसन ही अन्य व्यसनों से हमें बचाता है और तभी सोम के रक्षण का सम्भव होता है।
भावार्थ
भावार्थ-रक्षित सोम हमें पवित्र बनाता है, हमारे ज्ञान को दीप्त करता है, हमारे कष्टों व रोगों का हरण करता है ।
विषय
अभिषिक्त का उत्तम राजसी वस्त्र धारण।
भावार्थ
(कलशेषु पुनानः) कलशों में स्थित जलों से अभिषिक्त हुआ (हरिः) उत्तम पुरुष, (अरुषः) तेजस्वी और रोषरहित सौम्य स्वभाव होकर (गव्यानि वस्त्राणि) स्तुति योग्य वस्त्रों, वा भूमि के राज्योचित वस्त्रों, अलंकार को (परि अव्यत) धारण करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ५, ८ निचृद् गायत्री। ३, ४, ७ गायत्री। ६ पादनिचृद् गायत्री। ९ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, lord of peace and purity, destroyer of suffering, manifests in refulgent forms of existence and pervades all round in stars and planets of the universe.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर या जगाच्या उत्पत्ती, स्थिती व प्रलयाचे कारण आहे. त्यासाठी त्याला हरि म्हटले आहे. हरिचा अर्थ दु:ख हरण करणारा असा आहे. तो परमेश्वर विद्युतप्रमाणे गतिशील सर्वांना चमत्कृत करतो. योगी त्याच ज्योतीला ज्ञानवृत्तीद्वारे उपलब्ध करून आनंदित होतात. ॥६॥
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