ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 8/ मन्त्र 3
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
इन्द्र॑स्य सोम॒ राध॑से पुना॒नो हार्दि॑ चोदय । ऋ॒तस्य॒ योनि॑मा॒सद॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑स्य । सो॒म॒ । राध॑से । पु॒ना॒नः । हार्दि॑ । चो॒द॒य॒ । ऋ॒तस्य॑ । योनि॑म् । आ॒ऽसद॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रस्य सोम राधसे पुनानो हार्दि चोदय । ऋतस्य योनिमासदम् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रस्य । सोम । राधसे । पुनानः । हार्दि । चोदय । ऋतस्य । योनिम् । आऽसदम् ॥ ९.८.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! भवान् (ऋतस्य, योनिम्) सत्यरूपिणो यज्ञस्य जनकः (आसदम्) कृत्स्नानां सत्यवादिनां हृत्सु वर्तमानोऽस्ति (सोम) हे सौम्यस्वभाव भगवन् ! (हार्द्दि) अभिलषितसिद्धये (इन्द्रस्य) जीवात्मानम् (राधसे) ऐश्वर्यार्थम् (चोदय) प्रेरयतु, यतः (पुनानः) सर्वस्य शोधको भवानेव ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ऋतस्य, योनिम्) हे परमात्मन् ! आप सत्यरूपी यज्ञ के कारण हो (आसदम्) प्रत्येक सत्यवादी के हृदय में स्थिर हो (सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! (हार्द्दि) अभिलषित कामनाओं की सिद्धि के लिये (इन्द्रस्य) इस जीवात्मा की (राधसे) ऐश्वर्य के लिये (चोदय) आप प्रेरणा करें, क्योंकि (पुनानः) आप सबको पवित्र करनेवाले हैं ॥३॥
भावार्थ
सत्य का स्थान एकमात्र परमात्मा ही है, इसी अभिप्राय से “ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसः” इस मन्त्र में यह लिखा है कि दीप्तिमान् परमात्मा से ऋत और सत्य अर्थात् ऋत शास्त्रीयसत्य, और सत्य वस्तुगतसत्य ये दोनों प्रकार के सत्य परमात्मा के आधार पर ही स्थिर रहते हैं, इस अभिप्राय से यहाँ परमात्मा को ऋत की योनि कहा गया है। योनि के अर्थ यहाँ कारण के हैं ॥३॥
विषय
सोमरक्षण से जीवन की सफलता
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (हार्दि) = हृदय में (पुनानः) = पवित्रता को करती हुई (इन्द्रस्य) = इस जितेन्द्रिय पुरुष की (राधसे) = सिद्धि प्राप्ति के लिये (चोदय) = प्रेरणा को देनेवाली हो। रक्षित हुए- हुए सोम के द्वारा यह साधक पवित्र जीवनवाला बने और अन्ततः सफलता को प्राप्त करे। [२] (ऋतस्य योनिम्) = ऋत के उत्पत्ति स्थान उस प्रभु को (आसदम्) = पाने के लिये यह समर्थ हो। इस सोम के रक्षण के द्वारा ही जीवन पवित्र बनता है और ज्ञानाग्नि दीप्ति होती है। ज्ञानाग्नि के दीप्त होने पर ही वासनाओं का विनाश होता है और प्रभु का दर्शन होता है ।
भावार्थ
भावार्थ-रक्षित सोम हमें पवित्र करे, सफलता की ओर प्रेरित करें और अन्ततः प्रभु को प्राप्त करानेवाला हो ।
विषय
अध्यक्ष की योग्य पद पर स्थिति
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! विद्वन् ! तू (पुनानः) स्वयं पवित्र और अन्यों को पवित्र करता हुआ, (हार्दि) सब के हृदयों का प्रेमपात्र होकर (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् शत्रुहन्ता वा तत्वदर्शी तेजस्वी जन को (राधसे) धनैश्वर्य प्राप्त करने और (ऋतस्य योनिम्) न्याय सत्य व्यवहार के स्थान प्रधान-आसन पर (आसदम्) विराजने के लिये (चोदय) प्रेरित कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ५, ८ निचृद् गायत्री। ३, ४, ७ गायत्री। ६ पादनिचृद् गायत्री। ९ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, peace and power of the divine spirit, purifying and sanctifying the life of humanity, inspire and energise the heart and passion of Indra, the human soul settled at the seed centre of the truth of existence, for winning the ultimate success and victory of life.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वरच सत्याचे एकमेव स्थान आहे. याच दृष्टीने ‘‘ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपस:’’ या मंत्रात दीप्तिमान परमात्म्याकडून ऋत व सत्य अर्थात ऋत शास्त्रीय सत्य व वस्तुगत सत्य हे दोन्ही प्रकारचे सत्य परमेश्वराच्या आश्रयाने स्थित आहेत. याच दृष्टीने येथे परमेश्वराला ऋतची योनी म्हटलेली आहे. योनीचा अर्थ येथे कारण आहे.
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