ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 90/ मन्त्र 4
उ॒रुग॑व्यूति॒रभ॑यानि कृ॒ण्वन्त्स॑मीची॒ने आ प॑वस्वा॒ पुरं॑धी । अ॒पः सिषा॑सन्नु॒षस॒: स्व१॒॑र्गाः सं चि॑क्रदो म॒हो अ॒स्मभ्यं॒ वाजा॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒रुऽग॒व्यूतिः । अभ॑यानि । कृ॒ण्वन् । स॒मी॒ची॒ने इति॑ स॒म्ऽई॒ची॒ने । आ । प॒व॒स्व॒ । पुर॑न्धी॒ इति॒ पुर॑म्ऽधी । अ॒पः । सिसा॑सन् । उ॒षसः॑ । स्वः॑ । गाः । सम् । चि॒क्र॒दः॒ । म॒हः । अ॒स्मभ्य॑म् । वाजा॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उरुगव्यूतिरभयानि कृण्वन्त्समीचीने आ पवस्वा पुरंधी । अपः सिषासन्नुषस: स्व१र्गाः सं चिक्रदो महो अस्मभ्यं वाजान् ॥
स्वर रहित पद पाठउरुऽगव्यूतिः । अभयानि । कृण्वन् । समीचीने इति सम्ऽईचीने । आ । पवस्व । पुरन्धी इति पुरम्ऽधी । अपः । सिसासन् । उषसः । स्वः । गाः । सम् । चिक्रदः । महः । अस्मभ्यम् । वाजान् ॥ ९.९०.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 90; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(उरु, गव्यूतिः) विस्तृतमार्गवांस्त्वं (समीचीने) धर्म्ममार्गे (अभयानि, कृण्वन्) अभयं प्रददन् (आ, पवस्व) मां पवित्रय। त्वं (पुरन्धी) सर्वजगद्धारकोऽसि। अपि च (अपः) शुभकर्म्माणि (सिषासन्) शिक्षयन् (उषसः) प्रातःकालस्य (स्वर्गाः) किरणान् (सञ्चिक्रदः) निजवैदिकशब्दैर्विस्तारयसि। (महः) हे सर्वपूज्यपरमात्मन् ! (अस्मभ्यं) अस्माकं (वाजान्) बलानि देहि ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ऊरु गव्यूतिः) विस्तृत मार्गोंवाले आप (समीचीने) धर्म की राह में (अभयानि कृण्वन्) अभय प्रदान करते हुए (आपवस्व) हमको पवित्र करें। आप (पुरुन्धी) सम्पूर्ण संसार के धारण करनेवाले हैं और (अपः) शुभ कर्मों की (सिषासन्) शिक्षा करते हुए (उषसः) उषाकाल की (स्वर्गाः) रश्मियों को (संचिक्रदः) अपने वैदिक शब्दों से विस्तृत करते है। (महः) हे सर्वपूज्य परमात्मन् ! (अस्मभ्यं) हमको (वाजान्) बलों को दें ॥४॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मा के उपदेश किये हुए शुभमार्गों पर चलते हैं, परमात्मा उनको शुभमार्गों की प्राप्ति कराता है ॥४॥
विषय
उत्तम शासक के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे उत्तम शासक प्रभो ! तू (उरु-गव्यूतिः) बड़े भारी लम्बे २ मार्ग का शासक होकर (अभयानि कृण्वन्) अभयों का प्रदान करता हुआ (समीचीने) परस्पर सुसंगत, प्रबद्ध, एक होकर (पुरन्धी) राष्ट्र के धारण करनेवाले प्रजा के पालक स्त्री पुरुषों वा राजा प्रजा वर्गों को (आपवस्व) प्राप्त हो, और (अपः) आप्त प्रजावर्गों को (उषसः) शत्रुदाहकारी सेनाओं को, (स्वः) समस्त राष्ट्र को, और (गाः) ज्ञानवाणियों, रश्मियों और गौ आदि पशु सम्पदाओं को (सिषासन्) स्वयं प्राप्त करना और उनको अन्यों में विभक्त करना चाहता हुआ (अस्मभ्यं) हमें (महः वाजान् सम् चिक्रदः) बड़े ज्ञान और ऐश्वर्यों का उपदेश कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४ त्रिष्टुप्। २, ६ निचृत्त्रिष्टुप्। ५ भुरिक् त्रिष्टुप्। षडृचं सूक्तम्॥
विषय
समीचीने पुरन्धी
पदार्थ
हे सोम ! (उरुगव्यूतिः) = विशाल मार्गवाला, अर्थात् हमें विशालता की ओर ले चलनेवाला तू (अभयानि कृण्वन्) = निर्भयता को करता हुआ (समीचीने) = साथ- साथ गतिवाले (पुरन्धी) = उत्तम धारक द्यावापृथिवी को, मस्तिष्क व शरीर को (आपवस्व) = प्राप्त कराता । सोमरक्षण द्वारा हमारा मस्तिष्क व शरीर उत्तम बने। ये दोनों साथ-साथ विकसित शक्तिवाले हों। (अपः) उत्तम कर्मों के (सिषासन्) = सेवन की इच्छावाला होता हुआ तू (उषसः) = [उष दाहे] दोष दहनों को, (स्वः) = प्रकाश को (गाः) = ज्ञान की वाणियों को और (महः वाजान्) = महनीय बलों को (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (संचिक्रदः) = आहूत कर, इन बातों को हमारे लिये प्राप्त करानेवाला हो । सोमरक्षण से हम उत्तम कर्मों में प्रवृत्त होते हैं, हमारे दोष दग्ध होते हैं, प्रकाश प्राप्त होता है, ज्ञान की वाणियों व शक्तियों का लाभ होता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से मस्तिष्क व शरीर का साथ-साथ विकास होता है। उत्तम कर्म ज्ञान व शक्ति प्राप्त होती है।
इंग्लिश (1)
Meaning
Bountiful bearer of the abundant world of heaven and earth, creating and clearing the wide paths of truth and rectitude, making them free from fear and mutual conflict, enlightening us on the dynamics of karma in the flow of existence, expanding heavenly lights of the dawns of successive days, pray speak loud and bold and clear and bring us great victories of sustenance, power, honour and excellence in the struggle for progress in a state of purity.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक परमात्म्याने केलेल्या उपदेशाच्या मार्गावरून चालतात. परमात्मा त्यांना शुभ मार्ग दर्शवितो किंवा प्राप्त करवून देतो. ॥४॥
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