ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 91/ मन्त्र 6
ऋषिः - कश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ए॒वा पु॑ना॒नो अ॒पः स्व१॒॑र्गा अ॒स्मभ्यं॑ तो॒का तन॑यानि॒ भूरि॑ । शं न॒: क्षेत्र॑मु॒रु ज्योतीं॑षि सोम॒ ज्योङ्न॒: सूर्यं॑ दृ॒शये॑ रिरीहि ॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । पु॒ना॒नः । अ॒पः । स्वः॑ । गाः । अ॒स्मभ्य॑म् । तो॒का । तन॑यानि । भूरि॑ । शम् । नः॒ । क्षेत्र॑म् । उ॒रु । ज्योतीं॑षि । सो॒म॒ । ज्योक् । नः॒ । सूर्य॑म् । दृ॒शये॑ । रि॒री॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एवा पुनानो अपः स्व१र्गा अस्मभ्यं तोका तनयानि भूरि । शं न: क्षेत्रमुरु ज्योतींषि सोम ज्योङ्न: सूर्यं दृशये रिरीहि ॥
स्वर रहित पद पाठएव । पुनानः । अपः । स्वः । गाः । अस्मभ्यम् । तोका । तनयानि । भूरि । शम् । नः । क्षेत्रम् । उरु । ज्योतींषि । सोम । ज्योक् । नः । सूर्यम् । दृशये । रिरीहि ॥ ९.९१.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 91; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 6
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (एव, पुनानः) अनेन प्रकारेण पवित्रयँस्त्वं (अपः) अन्तरिक्षं (स्वः) स्वर्गलोकं (गाः) पृथिवीलोकञ्च (अस्मभ्यं) अस्मभ्यं देहि (तोका) पुत्रान् (भूरि) प्रचुरान् (तनयानि) पौत्रांश्च वितर, किञ्च (नः) अस्मभ्यं (शं) कल्याणं भवेत् (उरु, क्षेत्रं) विस्तृतानि क्षेत्राणि च स्युः (सोम) हे परमात्मन् ! (उरु, ज्योतींषि) भूयांसि तेजांसि (नः) अस्मदर्थं सन्तु, किञ्च हे परमात्मन्, (ज्योक्) चिरकालपर्य्यन्तं (सूर्यं, दृशये) तेजोमयमिमं सूर्य्यमभिविलोकयितुम् (रिरीहि) अस्मान् सामर्थ्यशालिनः कुरु ॥६॥ इत्येकनवतितमं सूक्तं प्रथमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन्। (एव पुनानः) इस प्रकार पवित्र करते हुए आप (अपः) अन्तरिक्षलोक (स्वः) स्वर्गलोग और (गाः) पृथिवीलोक (अस्मभ्यं) हमारे लिये दें। (तोका) पुत्र और (तनयानि) पौत्र (भूरि) बहुत से प्रदान करें और (नः) हमारे लिये (शं) कल्याण हो (उरुक्षेत्रं) और विस्तृत क्षेत्र हों। (सोम) हे परमात्मन् ! (उरु ज्योतींषी) बहुत सी ज्योतियें (नः) हमारे लिये हों और (ज्योक्) चिरकाल तक (सूर्य्यं दृशये) इस तेजोमय सूर्य्य के देखने के लिये (रिरीहि) सामर्थ्ययुक्त बनायें ॥६॥
भावार्थ
जो लोग ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं, परमात्मा उनके लिये सब प्रकार के ऐश्वर्य्य प्रदान करता है ॥६॥ यह ९१ वाँ सूक्त और पहला वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
प्रभु से ज्ञान अकाश की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (सोम) सर्वशासक प्रभो ! (एव) इस प्रकार तू (अपः) अन्तरिक्ष (स्वः) महान् आकाश और समस्त भूमियों को भी (पुनानः) पवित्र, दोषरहित, दुःखादि से शून्य करता हुआ (अस्मभ्यं) हमारे (तोका, तनयानि) पुत्र पौत्र आदि सन्तान और (भूरि) बहुत से (उरु) विशाल (क्षेत्रम्) निवास योग्य भूमि, और (ऊरु ज्योतींषि) बहुत २ प्रकाशों को (नः ज्योक् दृशये) हमें चिरकाल तक सम्यग् दर्शन करने कराने के लिये (सूर्यं) सूर्य भी (रिरीहि) प्रदान कर। इति प्रथमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कश्यप ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २, ६ पादनिचृत्त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप्। ४, ५ निचृत्त्रिष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥
विषय
अपः स्वः गाः
पदार्थ
हे सोम! (एवा) = गतिशीलता के द्वारा (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ तू (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (अपः) = उत्तम कर्मों को, (स्वः) = प्रकाश को तथा (गाः) = ज्ञान वाणियों को, (तोका) = उत्तम पुत्रों को (तनयानि) = पौत्रों को (भूरि) = खूब ही रिहीहि दे । सोमरक्षण से ही शक्ति के द्वारा क्रियाशीलता व ज्ञान की वाणियों के द्वारा प्रकाश की प्राप्ति का सम्भव होता है। यह सोमरक्षण ही हमें उत्तम सन्तानों की प्राप्ति कराता है। हे सोम ! वीर्यशक्ते ! (नः) = हमारे लिये (क्षेत्रम्) = इस शरीर रूप क्षेत्र को (शम्) = शान्तिवाला, रोगादि के उपद्रव से शून्य कर। उस (ज्योतींषि) = विशाल ज्योतियों को प्राप्त करा तथा (नः) = हमारे लिये (सूर्यं) = सूर्य को (ज्योक्) = दीर्घकाल तक दृशये देखने के लिये (रिरीहि) = दे । दीर्घकाल तक हम सूर्य को देखनेवाले बनें, दीर्घजीवन को प्राप्त करें ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम 'शक्ति ज्ञान, उत्तम सन्तान व दीर्घ जीवन' को देनेवाला होता है । अगला सूक्त भी 'कश्यप' का ही है-
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, spirit of peace and joy, pure, purifying and thus adored and consecrated, bless us with the abundance of earth, showers of the skies and illuminations of the highest regions of light, wealth of children and grand children. Give us peace and well being, vast field of action for expansion, and brilliant illuminations of knowledge and wisdom. And give us the vision to see the light of the sun for all time.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक ईश्वराची आज्ञा पाळतात. ईश्वर त्यांना सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य देतो. ॥६॥
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