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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 55
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - ओदन सूक्त
    26

    न च॑ प्रा॒णं रु॒णद्धि॑ सर्वज्या॒निं जी॑यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । च॒ । प्रा॒णम् । रु॒णध्दि॑ । स॒र्व॒ऽज्या॒निम् । जी॒य॒ते॒ ॥५.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न च प्राणं रुणद्धि सर्वज्यानिं जीयते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । च । प्राणम् । रुणध्दि । सर्वऽज्यानिम् । जीयते ॥५.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 55
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (च) यदि वह (प्राणम्) [अपने] प्राण को (न) नहीं (रुणद्धि) रोकता है, वह (सर्वज्यानिम्) सब हानि से (जीयते) निर्बल हो जाता है ॥५५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य परमेश्वर के सामर्थ्य को देखते हुए भी जितेन्द्रिय नहीं होता, वह मनुष्यपन से गिरकर बलहीन हो जाता है ॥५५॥

    टिप्पणी

    ५५−(न) निषेधे (च) यदि (प्राणम्) श्वासप्रश्वासव्यापारम् (रुणद्धि) वशं करोति (सर्वज्यानिम्) ज्या वयोहानौ-क्तिन्, सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। तृतीयास्थाने द्वितीया। सर्वज्यान्या। सर्वहान्या (जीयते) ज्या वयोहानौ कर्मणि-लट्। हीयते ॥

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    विषय

    प्राणरोध-सर्वज्यानि-शीघ्रमृत्यु

    पदार्थ

    १. (य:) = जो (एवम्) = इसप्रकार (विदुष:) = सृष्टितत्त्व के ज्ञाता का-ओदन के महत्त्व को समझनेवाले का (उपद्रष्टा) = आलोचक [निन्दक] (भवति) = होता है (सः) = वह (प्राणं रुणद्धि) = प्राणशक्ति का निरोध कर बैठता है-उसकी प्राणशक्ति क्षीण हो जाती है। २. (न च प्राणं रुणद्धि) = और केवल प्राणशक्ति का निरोध ही नहीं कर बैठता, वह (सर्वज्यानि जीयते) = सब प्रकार की हानि का भागी होता है-वह सर्वस्व खो बैठता है। (न च सर्वज्यानि जीयते) = न केवल सर्वस्व खो बैठता है, (अपितु प्राण:) = प्राण-जीवन (एनम्) = इसे (जरसः पुरा जहाति) = बुढ़ापे से पहले ही छोड़ जाता है, अर्थात् युवावस्था में ही समाप्त हो जाता है।

     

    भावार्थ

    जो ज्ञान के महत्त्व को न समझता हुआ ज्ञान-प्रवण नहीं होता, बल्कि ज्ञानियों की आलोचना ही करता है, वह प्राणशक्ति के हास-सर्वनाश व शीघ्रमृत्यु का भागी बनता है।

    गत सूक्तों में वर्णित ब्रह्मज्ञान में अपने को परिपक्व करनेवाला भार्गव' बनता है। यह उस 'स उ प्राणस्य प्राण: 'प्राणों के भी प्राण प्रभु से अपना मेल बनाकर 'वैदर्भि' [ otie, fasten, string together] कहलाता है। यह 'भार्गव वैदर्भि' 'प्राण' नाम से प्रभु का स्तवन करता है कि -

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    भाषार्थ

    (च) और (न) न केवल (प्राणम्, रुणद्धि) जीवन में रुकावट ही डालता है, अपितु (सर्वज्यानि जीयते) समग्र जीवन को हानि पहुंचाता है।

    टिप्पणी

    [ज्यानिम=ज्या वयोहानौ। जीयते= ज्या कर्मणि लट् "ग्रहिज्या" (अष्टा. ६।१।१६) द्वारा सम्प्रसारण]।

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    विषय

    ब्रह्मज्ञ विद्वान् की निन्दा का बुरा परिणाम।

    भावार्थ

    (यः) जो (एवं) पूर्वोक्त प्रकार के (विदुषः) ब्रह्मरूप ओदन के रहस्य जानने वाले विद्वान् का (उपद्रष्टा) दोषदर्शी, निन्दक (भवति) होता है (सः) वह अपने ही (प्राणं) प्राण-बल का (रुणद्धि) विच्छेद करता है। अर्थात् अपने प्राण-बल का अन्त कर लेता है। (न च) और न केवल (प्राणं रुणद्धि) प्राण-बल का अन्त कर लेता है बल्कि (सर्वज्यानिम् जीयते) उसका सर्वनाश हो जाता है। (न च) और न केवल (सर्व ज्यानिं जीयते) सर्वनाश हो जाता है बल्कि (एनं) उसको (जरसः पुरा) बुढ़ापे के पहले ही (प्राणः जहाति) प्राण छोड़ देता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ओदनो देवता। ५० आसुरी अनुष्टुप्, ५१ आर्ची उष्णिक्, ५२ त्रिपदा भुरिक् साम्नी त्रिष्टुप्, ५३ आसुरीबृहती, ५४ द्विपदाभुरिक् साम्नी बृहती, ५५ साम्नी उष्णिक्, ५६ प्राजापत्या बृहती। सप्तर्चं तृतीयं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Odana

    Meaning

    And not only does he violate his pranic energy, he is also deprived of his life’s wealth and property.

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    Translation

    If he does not stop (his own) breath, he is scathed a complete scathing

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    Translation

    He not merely stops his life breath but he ruin his whole life.

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    Translation

    Not only does he end his vital breaths, but suffers entire ruination.

    Footnote

    Entire ruination: Complete downfall in all respects.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५५−(न) निषेधे (च) यदि (प्राणम्) श्वासप्रश्वासव्यापारम् (रुणद्धि) वशं करोति (सर्वज्यानिम्) ज्या वयोहानौ-क्तिन्, सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। तृतीयास्थाने द्वितीया। सर्वज्यान्या। सर्वहान्या (जीयते) ज्या वयोहानौ कर्मणि-लट्। हीयते ॥

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