अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 5
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - निचृत् आर्ची बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
54
यदे॑न॒माह॒व्रात्य॑ त॒र्पय॒न्त्विति॑ प्रा॒णमे॒व तेन॒ वर्षी॑यांसं कुरुते ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ए॒न॒म् । आह॑ । व्रात्य॑ । त॒र्पय॑न्तु । इति॑। प्रा॒णम् । ए॒व । तेन॑ । वर्षी॑यांसम् । कु॒रु॒ते॒ ॥११.५॥
स्वर रहित मन्त्र
यदेनमाहव्रात्य तर्पयन्त्विति प्राणमेव तेन वर्षीयांसं कुरुते ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । एनम् । आह । व्रात्य । तर्पयन्तु । इति। प्राणम् । एव । तेन । वर्षीयांसम् । कुरुते ॥११.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अतिथिसत्कार के विधान का उपदेश।
पदार्थ
(यत्) जब (एनम्) इस [अतिथि] से (आह) [वह गृहस्थ] कहता है−(व्रात्य) हे व्रात्य ! [सद्व्रतधारी] (तर्पयन्तु इति) वे [यह पदार्थ तुझे अथवा आप हमें] तृप्त करें−(तेन) उस [सत्कार] से (एव) निश्चय करके (प्राणम्) अपने प्राण [जीवन] को (वर्षीयांसम्) अधिक बड़ा (कुरुते) वह [गृहस्थ] करता है ॥५॥
भावार्थ
गृहस्थ लोग अतिथि महात्माओं का सत्कार करके उनके सदुपदेश से अपना जीवन उत्तम बनावें ॥५॥इस मन्त्र का अन्तिम भाग ऊपर आया है अ० ९।६(२)।२ ॥
विषय
आतिथ्य से दीर्घजीवन
पदार्थ
१. (यत्) = जो (एनम्) = इस विद्वान् व्रात्य को (आह) = यह कहता है कि (व्रात्य) = हे जतिन् ! (क्व अवात्सी: इति) = आप कहाँ रहे? (तेन एव) = उस निवास के विषय में सत्कारपूर्वक किये गये प्रश्न के द्वारा ही (देवयानान् पश्चः अवरुद्धे) = देवयानमार्गों को अपने लिए सुरक्षित करता है, अर्थात् इस प्रकार आतिथ्य से उसकी प्रवृत्ति उत्तम होती है और वह देवयानमार्गों से चलनेवाला बनता है। २. (यत् एनम् आहः) = जो इसको कहता है कि (व्रात्य उदकम् इति) = हे वतिन् ! आपके लिए यह जल है। (तेन एव) = इस जल के अर्पण से ही यह (आप: अवरुद्धे) = उत्तम कर्मों को अपने लिए सुरक्षित करता है, अर्थात् उस अतिथि की प्रेरणाओं से प्रेरित होकर उत्तम कर्मों में प्रवृत्त होनेवाला होता है। (यत् एनम् आह) = जो इस विद्वान् व्रात्य से कहता है कि (व्रात्य तर्पयन्तु इति) = हे वतिन्! ये भोजन आपको तृप्त करनेवाले हों। (तेन एव) = इस सत्करण से ही (प्राणं वर्षीयांसं कुरुते) = जीवन को दीर्घ करता है। स्वयं आतिथ्यावशिष्ट भोजन करता हुआ दीर्घजीवनवाला बनता है। ३. (यत् एनम् आह) = जो इस व्रात्य से कहता है कि व्रात्य-हे वतिन्! (यथा ते प्रियम्) = जैसा आपको प्रिय लगे (तथा अस्तु इति) = वैसा ही हो। (तेन एव) = उस प्रिय प्रश्न से ही (प्रियं अवरुद्धे) = अपने लिए प्रिय को सुरक्षित करता है। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार व्रात्य से प्रिय विषयक प्रश्न करना जानता है, (एनम्) = इस प्रश्नकर्ता को (प्रियं आगच्छति) = प्रिय प्राप्त होता है और वह (प्रियः प्रियस्य भवति) = प्रियों का प्रिय बनता है।
भावार्थ
विद्वान व्रात्यों के आतिथ्य से हम देवयानमार्ग पर चलनेवाले, उत्तम कर्मों में प्रवृत्त, दीर्घजीवनवाले व सर्वप्रिय बनते हैं।
भाषार्थ
(यद्) जो (एनम्) इस अतिथि को (आह) गृहस्थी कहता है कि (व्रात्य) हे व्रात्य ! (तर्पयन्तु, इति) मेरे गृहवासी या भोज्यपदार्थ आप को तृप्त करें, (तेन) उस द्वारा (प्राणम्,एव) अतिथि के प्राण या जीवन को या प्राणप्रद भोजन को (वर्षीयांसम्) प्रवृद्ध (कुरुते) करता है, बढ़ाता है।
टिप्पणी
[खानपान से जीवन बढ़ता है, और अनशन से जीवन घटता है। वर्षीयांसम् = अधिक वर्षो वाला। वृद्ध (वर्षि), "प्रिय... वृद्ध... वृन्दारकाणां प्र-वर्षि" (अष्टा० ६।४।१५७ ) + ईयसुन्]
विषय
व्रातपति आचार्य का अतिथ्य और अतिथियज्ञ।
भावार्थ
(यद् एनम् आह) जब इस अतिथि को कहा जाता है (तर्पयन्तु इति) कि मेरे गृहजन आपको भोजन से तृप्त करें। (इति) इस प्रकार (तेन) भोजन से तृप्त करने के कार्य से वह (प्राणम् एव) अपने प्राण, जीवन को (वर्षीयांसम् कुरुते) चिर वर्षों तक रहने वाला कर लेता है अर्थात् अपने जीवन को ही दीर्घ करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१ देवी पंक्तिः, २ द्विपदा पूर्वा त्रिष्टुप् अतिशक्करी, ३-६, ८, १०, त्रिपदा आर्ची बृहती (१० भुरिक्) ७, ९, द्विपदा प्राजापत्या बृहती, ११ द्विपदा आर्ची, अनुष्टुप्। एकादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
When the host says: ‘O Vratya, pray satisfy yourself and oblige us’, he only augments the showers of life energy for himself.
Translation
When he says to him ; "Vrátya, let them entertain you," thereby he makes his very life-breath longer.
Translation
When he asks his guest as to let these people of mine refresh him he thereby wins his vital breath to make it be prolonged till old age.
Translation
When he says to him, Acharya, let my family members satisfy thee with meals, he thereby prolongs his life.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
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