अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 10
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - साम्नी अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
51
तस्य॒व्रात्य॑स्य। एकं॒ तदे॑षाममृत॒त्वमित्याहु॑तिरे॒व ॥
स्वर सहित पद पाठएक॑म् । तत् । ए॒षा॒म् । अ॒मृ॒त॒ऽत्वम् । इति॑ । आऽहु॑ति: । ए॒व ॥१७.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्यव्रात्यस्य। एकं तदेषाममृतत्वमित्याहुतिरेव ॥
स्वर रहित पद पाठएकम् । तत् । एषाम् । अमृतऽत्वम् । इति । आऽहुति: । एव ॥१७.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।
पदार्थ
(तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] की−(आहुतिः) आहुति [दानक्रिया] (एव)ही (एषाम्) इन [विद्वानों] का (एकम्) केवल (तत्) वह [प्रसिद्ध] (अमृतत्वम्)अमरपन [जीवन अर्थात् पुरुषार्थ] है−(इति) यह निश्चित है ॥१०॥
भावार्थ
जब विद्वान् संन्यासीअपने आत्मा को संसार की भलाई में लगा देता है, विद्वान् लोग उसकी मर्यादा कोमानकर पुरुषार्थ करते और क्लेशों को त्याग कर आनन्द भोगते हैं ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(एकम्)केवलम् (तत्) प्रसिद्धम् (एषाम्) देवानाम्। विदुषाम् (अमृतत्वम्) अमरणम्।जीवनम्। पुरुषार्थम् (इति) एवं निश्चितम् (आहुतिः) समन्ताद् दानक्रिया (एव)अवधारणे ॥
विषय
अमृतत्वम्-आहुतिः
पदार्थ
१. (तस्य नात्यस्य) = उस व्रात्य के (समानं अर्थम्) = [सम् आनयति] पृथक् प्राणित करने के प्रयोजन को (देवाः परियन्ति) = सब देव-प्राकृतिक शक्तियाँ सर्वत: इसप्रकार प्राप्त होती हैं, जैसे (ऋतुव:) = ऋतुएँ (एतत् संवत्सरम्) = इस संवत्सर को (अनुपरियन्ति) = अनुक्रमेण प्रास होती हैं। ये (च) = और ये सब धातुएँ (वात्यम्) = व्रात्य को भी अनुकूलता से प्राप्त होती हैं। ऋतुओं की अनुकूलता से यह व्रात्य स्वस्थ बना रहता है। २. ये सब प्राकृतिक शक्तियाँ [देव] (तस्य व्रात्यस्य) = उस व्रात्य के (यत् आदित्यं अभिसंविशन्ति) = ज्ञानसूर्य में अनुकूलता से प्रविष्ट होती है, (अमावास्यां च एव) = और निश्चय से उस व्रात्य की अमावास्या में-ज्ञानसूर्य व भक्तिरसरूप चन्द्र के समन्वय में प्रवेश करती हैं, (च तत्) = और तब (पौर्णमासीम) = पौर्णमासी में-जीवन को सोलह कलापूर्ण बनाने में, प्रवेश करती हैं, (तत्) = वे 'सब प्राकृतिक शक्तियों (तस्य व्रात्यस्य) = उस व्रात्य को ज्ञानसूर्ययुक्त जीवनवाला बनाती है-इसके जीवन में ज्ञानसूर्य व भक्तिचन्द्र का समन्वय करना तथा इसे षोडश कला सम्पन्न जीवनवाला करना' (एषाम्) = इन देवों का (एकम्) = अद्वितीय कर्म है। यही (अमृतत्वम्) = अमृतत्व है। यही (आहुतिः एव) = परब्रह्म में व्रात्य का आहुत हो जाना है पूर्णरूप से अर्पित हो जाना।
भावार्थ
हम व्रात्य बनते हैं तो सब देव [प्राकृतिक शक्तियों] हमारे अनुकूल होते हुए हमें ज्ञानसूर्य से दीस जीवनवाला बनाते हैं। ये हमारे जीवन में ज्ञान व भक्ति के सूर्य और चन्द्र का सहवास कराते हैं तथा हमारे जीवन को सोलह कलापूर्ण करते हैं। यही अमृतत्व है, यही प्रभु के प्रति अर्पण है।
भाषार्थ
(तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रतपति तथा प्राणिवर्गों के हितकारी परमेश्वर का [सृष्टि रचना में] (एकम्) एक प्रयोजन [समानर्थम्, मन्त्र ८] है। (तत्) वह है (एषाम्) इन देवों [मन्त्र ८] का (अमृतत्त्वम्) मोक्ष। (इति) यह मोक्ष जो कि (आहुति, एव) आहुतिरूप है, आदित्यनामक [मन्त्र ९] परमेश्वर में आहुत हो जाना, प्रवेश पा लेना है।
विषय
व्रात्य प्रजापति के सात व्यान।
भावार्थ
(तस्य व्रात्यस्य) उस व्रात्य प्रजापति का (तत्) वह अचिन्त्य, परम स्वरूप (एकम्) एक है। वही (एषाम्) इन देवों का (अमृतत्वम्) अमृत, मोक्ष स्वरूप है (इति) इस प्रकार उन जीवा और देवों का उसमें लीन हो जाना भी (आहुतिः एव) आहुति ही है। यही उनका परम ब्रह्म में महान् आत्मसमर्पण है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१, ५ प्राजापत्योष्णिहौ, २ आसुर्यनुष्टुभौ, ३ याजुषी पंक्तिः ४ साम्न्युष्णिक्, ६ याजुषीत्रिष्टुप्, ८ त्रिपदा प्रतिष्ठार्ची पंक्तिः, ९ द्विपदा साम्नीत्रिष्टुप्, १० सामन्यनुष्टुप्। दशर्चं सप्तदशं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
Of that Aditya Vratya, that is the one immortality, that is the one oblation, the completion of one existential cycle.
Translation
Of that Vratya; that immortality of theirs is one; therefore is the offering.
Translation
Of that Vratya and of these Devas one immortality is indeed this oblation.
Translation
The charitable act of the learned guest is verily their life.
Footnote
Their: Of scholarly persons.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(एकम्)केवलम् (तत्) प्रसिद्धम् (एषाम्) देवानाम्। विदुषाम् (अमृतत्वम्) अमरणम्।जीवनम्। पुरुषार्थम् (इति) एवं निश्चितम् (आहुतिः) समन्ताद् दानक्रिया (एव)अवधारणे ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal