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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 12
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
    46

    प॑ञ्चदश॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒ञ्च॒द॒श॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२३.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पञ्चदशर्चेभ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पञ्चदशऽऋचेभ्यः। स्वाहा ॥२३.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 23; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (पञ्चदशर्चेभ्यः) पन्द्रह [शुक्ल, नील, पीत, रक्त, हरित, कपिश, चित्र ये सात रूप, तथा मधुर, अम्ल, कटु, कषाय, तिक्त ये छह रस और सुरभि, असुरभि दो प्रकार का गन्ध, इन पन्द्रह] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१२॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(पञ्चदशर्चेभ्यः) म०१। शुक्लनीलपीतरक्तहरितकपिशचित्रसप्तरूपाणि, मधुराम्ललवणकटुकषायतिक्त-षड्रसाः, सुरभिश्चासुरभिश्चेति गन्धौ। इत्येतेषां पञ्चदशानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥

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    विषय

    बुद्धि, चौदह विद्याएँ, १५ गन्ध

    पदार्थ

    १. (द्वादशचेंभ्यः स्वाहा) = बारह आदित्यों [चैत्र आदि १२ मासों] का स्तवन व प्रतिपादन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इनके अध्ययन से इन बारह मासों के अनुरूप आहार-विहार को अपनाते हुए आदित्यसम दीप्त-जीवनवाले बनते हैं। २. (त्रयोदशर्चेभ्यः स्वाहा) = पाँच यमों [अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह] तथा पाँच नियमों [शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान] और उनके पालन से स्वस्थ होनेवाले 'शरीर, मन व बुद्धि' का स्तवन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और यम-नियमों का पालन करते हुए हम त्रिविध स्वस्थ्य को प्राप्त करते हैं। ३. (चतुर्दशर्चेभ्यः स्वाहा) = चतुर्दश विद्याओं का [षडङ्गमिश्रिता वेदा धर्मशास्त्रां पुराणकम्। मीमांसा तर्कमपि च एता विद्याश्चतुर्दश] शंसन करनेवाले मन्त्रों का शंसन करते हुए हम इन चौदह विद्याओं को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। ४. (पञ्चदशचेभ्यः स्वाहा) = द्विविधगन्ध [सुरभि-असुरभि] षड् रस [कषाय, मधुर, लवण, कटु, तिक्त, अम्ल], सप्तवर्ण [सूर्य की सात रंग की किरणें]-इन पन्द्रह का वर्णन करनेवाली ऋचाओं के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और इनका यथायोग करते हुए स्वस्थ बनते हैं।

    भावार्थ

    हम बारह आदित्यों को समझें। दश यम-नियमों व उनसे स्वस्थ बननेवाले शरीर, मन व बुद्धि को समझें। चौदह विद्याओं को जानने के लिए यत्नशील हों और 'द्विविध गन्ध, षड् रसों व सप्त वर्णों को समझकर' उनका ठीक प्रयोग करनेवाले बनें।

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    भाषार्थ

    १५ ऋचाओं वाले सूक्तों के लिए प्रशंसायुक्त वाणी हो।

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    विषय

    अथर्ववेद के सूक्तों का संग्रह।

    भावार्थ

    (अथर्वणानाम्) अथर्ववेद में आये सूक्तों में से (चतुर्ऋचेभ्यः) चार चार ऋचा के बने सूक्तों का स्वयं मनन करो। (पञ्चर्चेभ्यः स्वाहा० इत्यादि २-१७) इसी प्रकार ५, ६, ७, ८, ६, १०, ११, १२,१३, १४, १५, १६, १७, १८, १९ और २० ऋचा वाले सूक्तों का भी ज्ञान करो। इसके अतिरिक्त (महत् काण्डाय स्वाहा) बड़े काण्ड का स्वाध्याय करो। (एक चेंभ्यः स्वाहा) एक ऋचा के सूक्तों का भी स्वाध्याय करो। (क्षुद्रेभ्यः) क्षुद सूक्त [का० १० १०] अर्थात् स्कम्भ आदि सूक्तों का भी ज्ञान करो। (एकानृचेभ्यः) एक चरण के मन्त्र जो ‘अनुच’ अर्थात् पूर्ण ऋचा नहीं और जिनमें पाद की व्यवस्था नहीं है जैसे व्रात्य सूक्त उनका भी स्वाध्याय करो। (रोहितेभ्यः स्वाहा) रोहित देवता विषयक सूक्तों [१३ का०] का स्वाध्याय करो (सूर्येऽभ्यः स्वाहा) ‘सूर्य’ देवता के दो अनुवाकों [ का० १४] का स्वाध्याय करो। (व्रात्याभ्यां स्वाहा) व्रात्य विषयक [ का० १५] दो सूत्रों का स्वाध्याय करो। (प्राजापत्याभ्यां स्वाहा) प्रजापतिविषयक [ का० १६ ] दो अनुवाकों का स्वाध्याय करो। (विषासह्यै स्वाहा) विषासहि सूक्त [ १७ का० ] का स्वाध्याय करो। (मंगलिकेभ्यः स्वाहा) मंगलिक, स्वस्तिवाचन, शान्तिपाठ [१९ का० ] का भी स्वाध्याय करो। (ब्रह्मणे स्वाहा) शेष ब्रह्मवेद [ २० का० ] का भी स्वाध्याय करो। ये दोनों समास सूक्त कहाते हैं। इनमें समस्त अथर्ववेद को संक्षिप्त करके उनके स्वाध्याय करने का उपदेश किया है। ज्ञान सूक्तों की आहुति स्वाध्यायमय ज्ञान यज्ञ है इसलिये ‘स्वाहा’ शब्द का सर्वत्र ‘अध्ययन करो’ ऐसा ही अर्थ किया गया हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः उतचन्द्रमा देवता। १ आसुरी बृहती। २-७, २०, २३, २७ दैव्यस्त्रिष्टुभः। १, १०, १२, १४, १६ प्राजापत्या गायत्र्यः। १७, १९, २१, २४, २५, २९ दैव्यः पंक्तयः। १३, १८, २२, २६, २८ दैव्यो जगत्यः (१-२९ एकावसानाः)। त्रिंशदृचं द्वितीयं समाससूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    x

    Meaning

    For fifteen-verse hymns (on fifteen adorables: seven forms of colour, six tastes and twofold smell, agreeable and disagreeable), Svaha.

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    Translation

    Svaha to the fifteen-versed ones.

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    Translation

    Let us gain knowledge from the sets of fifteen verses and appreciate them.

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    Translation

    Have good knowledge of the suktas of fifteen mantras.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(पञ्चदशर्चेभ्यः) म०१। शुक्लनीलपीतरक्तहरितकपिशचित्रसप्तरूपाणि, मधुराम्ललवणकटुकषायतिक्त-षड्रसाः, सुरभिश्चासुरभिश्चेति गन्धौ। इत्येतेषां पञ्चदशानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥

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