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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 28
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी जगती सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
    39

    म॑ङ्गलि॒केभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒ङ्ग॒लि॒केभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२३.२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मङ्गलिकेभ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मङ्गलिकेभ्यः। स्वाहा ॥२३.२८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 23; मन्त्र » 28
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (मङ्गलिकेभ्यः) मङ्गलवाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२८॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२८॥

    टिप्पणी

    २८−(मङ्गलिकेभ्यः) अत इनिठनौ। पा०५।२।११५। मङ्गल-उन्। मङ्गलयुक्तेभ्यो वेदेभ्यः ॥

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    विषय

    विषासहि-मंगलिक-ब्रह्मा

    पदार्थ

    १. (विषासहौ) = वेदज्ञान द्वारा सब शत्रुओं का पराभव करनेवाली इस गृहिणी के लिए हम (स्वाहा) = प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इससे सब गृहिणियों को 'विषासहि' बनने की प्रेरणा प्राप्त होती है। २. (मंगलिकेभ्यः स्वाहा) = वेदज्ञान द्वारा सदा यज्ञ आदि मंगल कार्यों को करनेवाले पुरुषों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इससे सभी को इन मंगल कार्यों को करने की प्रवृत्ति प्राप्त होती है। ३. अन्ततः हम (ब्रह्मणे) = इन चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त करनेवाले सर्वोत्तम सात्त्विक पुरुष के लिए शुभ शब्द कहते हैं और स्वयं ऐसा बनने का ही अपना लक्ष्य बनाते हैं।

    भावार्थ

    वेदज्ञान से हम शत्रुओं का मर्षण करनेवाले, मंगल कार्यों को करनेवाले व सर्वोत्तम सात्त्विक स्थिति की ओर बढ़नेवाले बनते हैं।

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    भाषार्थ

    मङ्गलकारी सूक्तों के लिये प्रशंसायुक्त वाणी हो।

    टिप्पणी

    [वेद के सब सूक्त मंगलकारी हैं। वैदिक दण्डविधान भी मङ्गलकारी है। दण्ड द्वारा व्यक्ति सन्मार्गगामी बन जाता है। उपनिषद् में कहा है कि परमेश्वर के भय से वायु बहती, भय से सूर्य तपता, विद्युत् तथा मृत्यु भी इस के भय से निजकर्मों में व्यापृत हैं। इसलिए दण्ड-विधान भी मङ्गलकारी है। क्रमानुसार अथर्ववेद के १८वें काण्ड का कथन सम्भवतः मन्त्र २८वें द्वारा अभिप्रेत हो। १८वें काण्ड में मृत्यु तथा पुनर्जन्म का वर्णन है। मृत्यु तथा पुनर्जन्म व्यक्ति या आत्मा के लिए मङ्गलकारी होते हैं। इसी दृष्टि से संहारकारी रुद्र-देवता को शिव तथा शंकर भी कहते हैं।]

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    विषय

    अथर्ववेद के सूक्तों का संग्रह।

    भावार्थ

    (अथर्वणानाम्) अथर्ववेद में आये सूक्तों में से (चतुर्ऋचेभ्यः) चार चार ऋचा के बने सूक्तों का स्वयं मनन करो। (पञ्चर्चेभ्यः स्वाहा० इत्यादि २-१७) इसी प्रकार ५, ६, ७, ८, ६, १०, ११, १२,१३, १४, १५, १६, १७, १८, १९ और २० ऋचा वाले सूक्तों का भी ज्ञान करो। इसके अतिरिक्त (महत् काण्डाय स्वाहा) बड़े काण्ड का स्वाध्याय करो। (एक चेंभ्यः स्वाहा) एक ऋचा के सूक्तों का भी स्वाध्याय करो। (क्षुद्रेभ्यः) क्षुद सूक्त [का० १० १०] अर्थात् स्कम्भ आदि सूक्तों का भी ज्ञान करो। (एकानृचेभ्यः) एक चरण के मन्त्र जो ‘अनुच’ अर्थात् पूर्ण ऋचा नहीं और जिनमें पाद की व्यवस्था नहीं है जैसे व्रात्य सूक्त उनका भी स्वाध्याय करो। (रोहितेभ्यः स्वाहा) रोहित देवता विषयक सूक्तों [१३ का०] का स्वाध्याय करो (सूर्येऽभ्यः स्वाहा) ‘सूर्य’ देवता के दो अनुवाकों [ का० १४] का स्वाध्याय करो। (व्रात्याभ्यां स्वाहा) व्रात्य विषयक [ का० १५] दो सूत्रों का स्वाध्याय करो। (प्राजापत्याभ्यां स्वाहा) प्रजापतिविषयक [ का० १६ ] दो अनुवाकों का स्वाध्याय करो। (विषासह्यै स्वाहा) विषासहि सूक्त [ १७ का० ] का स्वाध्याय करो। (मंगलिकेभ्यः स्वाहा) मंगलिक, स्वस्तिवाचन, शान्तिपाठ [१९ का० ] का भी स्वाध्याय करो। (ब्रह्मणे स्वाहा) शेष ब्रह्मवेद [ २० का० ] का भी स्वाध्याय करो। ये दोनों समास सूक्त कहाते हैं। इनमें समस्त अथर्ववेद को संक्षिप्त करके उनके स्वाध्याय करने का उपदेश किया है। ज्ञान सूक्तों की आहुति स्वाध्यायमय ज्ञान यज्ञ है इसलिये ‘स्वाहा’ शब्द का सर्वत्र ‘अध्ययन करो’ ऐसा ही अर्थ किया गया हैं।

    टिप्पणी

    ‘मांगलिकेभ्यः स्वाहा’ इति क्वचित्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः उतचन्द्रमा देवता। १ आसुरी बृहती। २-७, २०, २३, २७ दैव्यस्त्रिष्टुभः। १, १०, १२, १४, १६ प्राजापत्या गायत्र्यः। १७, १९, २१, २४, २५, २९ दैव्यः पंक्तयः। १३, १८, २२, २६, २८ दैव्यो जगत्यः (१-२९ एकावसानाः)। त्रिंशदृचं द्वितीयं समाससूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    x

    Meaning

    For hymns of auspiciousness, Svaha.

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    Translation

    Svaha to the auspicious one (euphemistically, inauspicious ones).

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    Translation

    Let us gain the knowledge of the verses concerned with the verses of applied auspicious work and appreciate them.

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    Translation

    Thoroughly study the suktas, praying peace, happiness and well-being (19th Kanda).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २८−(मङ्गलिकेभ्यः) अत इनिठनौ। पा०५।२।११५। मङ्गल-उन्। मङ्गलयुक्तेभ्यो वेदेभ्यः ॥

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