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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी त्रिष्टुप् सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
    43

    प॑ञ्च॒र्चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒ञ्च॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पञ्चर्चेभ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पञ्चऽऋचेभ्यः। स्वाहा ॥२३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 23; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (पञ्चर्चेभ्यः) पाँच [पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश पाँच तत्त्वों] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(पञ्चर्चेभ्यः) म०१। पञ्चानां पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥

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    विषय

    चार पुरुषार्थ, पञ्चभूत, छह ऋतुएँ, सात ऋषि

    पदार्थ

    १. 'अथर्वा' से जिन मन्त्रों का अर्थ देखा जाता है वे मन्त्र 'आथर्वण' कहलाते हैं। 'अथर्वा' वे व्यक्ति हैं जोकि 'अथ अर्वाङ्'-विषयों में न भटक [न थर्व] अब अन्दर-आत्मनिरीक्षण करते हैं। (आथर्वणानाम्) = इन अथर्वाओं से देखे गये मन्त्रों में (चतुर्ऋचेभ्यः) = [ऋच् स्तुती] जिनमें 'धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष' इन चारों पुरुषार्थों का स्तवन व प्रतिपादन है, उन मन्त्रों के लिए (स्वाहा) = हम [सु आह] प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। हम भी उन मन्त्रों का अध्ययन करते हुए 'धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष' इन चारों ही पुरुषार्थों को सिद्ध करते हैं। २. (पञ्चचेभ्यः) = पृथिवी, जल, तेज, वायु व आकाश' इन पाँचों भूतों का स्तवन व प्रतिपादन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम (स्वाहा) = प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इनके अध्ययन से पाँचों भूतों का ज्ञान प्राप्त करके उनकी अनुकूलता के सम्पादन से हम पूर्ण स्वस्थ होने का प्रयत्न करते हैं। ३. (षड्चेभ्य:) = 'वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त व शिशिर' इन छह ऋओं का स्तवन करनेवाले मन्त्रों का हम स्वाहा शंसन करते हैं। इनका अध्ययन करते हुए सब ऋतुओं के गुण-धर्मों को समझकर अपनी ऋतुचर्या को ठीक बनाते हैं। २. (सप्तर्चेभ्यः स्वाहा) = 'कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्' इन सात ऋषियों का स्तवन व प्रतिपादन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इनके अध्ययन से कान आदि ऋषियों के महत्त्व को समझते हैं और उनको ज्ञान-प्राप्ति में लगाकर सचमुच ही उन्हें ऋषि बनाये रखने का प्रयत्न करते हैं।

    भावार्थ

    हम आथर्वण मन्त्रों में 'चतुरीच' मन्त्रों से 'धर्मार्थ, काम व मोक्ष' इन चार पुरुषार्थों का ज्ञान प्राप्त करें। 'पञ्चचों' से पञ्चभूतों का, 'षड़चों' से छह ऋतुओं का तथा 'सप्तौं' सें कान आदि सात ऋषियों का ज्ञान प्राप्त करें।

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    भाषार्थ

    ५ ऋचाओं वाले सूक्तों के लिये प्रशंसायुक्त वाणी हो।

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    विषय

    अथर्ववेद के सूक्तों का संग्रह।

    भावार्थ

    (अथर्वणानाम्) अथर्ववेद में आये सूक्तों में से (चतुर्ऋचेभ्यः) चार चार ऋचा के बने सूक्तों का स्वयं मनन करो। (पञ्चर्चेभ्यः स्वाहा० इत्यादि २-१७) इसी प्रकार ५, ६, ७, ८, ६, १०, ११, १२,१३, १४, १५, १६, १७, १८, १९ और २० ऋचा वाले सूक्तों का भी ज्ञान करो। इसके अतिरिक्त (महत् काण्डाय स्वाहा) बड़े काण्ड का स्वाध्याय करो। (एक चेंभ्यः स्वाहा) एक ऋचा के सूक्तों का भी स्वाध्याय करो। (क्षुद्रेभ्यः) क्षुद सूक्त [का० १० १०] अर्थात् स्कम्भ आदि सूक्तों का भी ज्ञान करो। (एकानृचेभ्यः) एक चरण के मन्त्र जो ‘अनुच’ अर्थात् पूर्ण ऋचा नहीं और जिनमें पाद की व्यवस्था नहीं है जैसे व्रात्य सूक्त उनका भी स्वाध्याय करो। (रोहितेभ्यः स्वाहा) रोहित देवता विषयक सूक्तों [१३ का०] का स्वाध्याय करो (सूर्येऽभ्यः स्वाहा) ‘सूर्य’ देवता के दो अनुवाकों [ का० १४] का स्वाध्याय करो। (व्रात्याभ्यां स्वाहा) व्रात्य विषयक [ का० १५] दो सूत्रों का स्वाध्याय करो। (प्राजापत्याभ्यां स्वाहा) प्रजापतिविषयक [ का० १६ ] दो अनुवाकों का स्वाध्याय करो। (विषासह्यै स्वाहा) विषासहि सूक्त [ १७ का० ] का स्वाध्याय करो। (मंगलिकेभ्यः स्वाहा) मंगलिक, स्वस्तिवाचन, शान्तिपाठ [१९ का० ] का भी स्वाध्याय करो। (ब्रह्मणे स्वाहा) शेष ब्रह्मवेद [ २० का० ] का भी स्वाध्याय करो। ये दोनों समास सूक्त कहाते हैं। इनमें समस्त अथर्ववेद को संक्षिप्त करके उनके स्वाध्याय करने का उपदेश किया है। ज्ञान सूक्तों की आहुति स्वाध्यायमय ज्ञान यज्ञ है इसलिये ‘स्वाहा’ शब्द का सर्वत्र ‘अध्ययन करो’ ऐसा ही अर्थ किया गया हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः उतचन्द्रमा देवता। १ आसुरी बृहती। २-७, २०, २३, २७ दैव्यस्त्रिष्टुभः। १, १०, १२, १४, १६ प्राजापत्या गायत्र्यः। १७, १९, २१, २४, २५, २९ दैव्यः पंक्तयः। १३, १८, २२, २६, २८ दैव्यो जगत्यः (१-२९ एकावसानाः)। त्रिंशदृचं द्वितीयं समाससूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    x

    Meaning

    For five-verse hymns (on five adorable elements), Svaha.

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    Translation

    Svahà to the five-versed ones.

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    Translation

    Let us gain knowledge from the sets of five verses and appreciate them.

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    Translation

    Learn well the suktas of five mantras.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(पञ्चर्चेभ्यः) म०१। पञ्चानां पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशानां स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः ॥

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