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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 21
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी पङ्क्तिः सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
    50

    क्षु॒द्रेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्षु॒द्रेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२३.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्षुद्रेभ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्षुद्रेभ्यः। स्वाहा ॥२३.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 23; मन्त्र » 21
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    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (क्षुद्रेभ्यः) सूक्ष्मज्ञानवाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२१॥ यह मन्त्र आ चुका है-अ०१९।२२।६॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥२१॥

    टिप्पणी

    २१−(क्षुद्रेभ्यः) म०१९।२२।६। सूक्ष्मज्ञानयुक्तेभ्यो वेदेभ्यः ॥

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    विषय

    अज्ञान विध्वंस व प्रभु-दर्शन

    पदार्थ

    १. [कडि भेदने संरक्षणे च] (महत्काण्डाय) = महान् अविद्या का भेदन करनेवाले व हमारा संरक्षण करनेवाले वेदज्ञान के लिए (स्वाहा) = मैं अपना अर्पण करता हूँ। २. (तचेभ्य:) = 'जीव, प्रकृति, परमात्मा' अथवा 'ज्ञान, कर्म, उपासना' तीनों का प्रतिपादन करनेवाले इन मन्त्रों के लिए (स्वाहा) = अपना अर्पण करता हैं। ३. (एकर्चेभ्य:) = उस एक अद्वितीय प्रभु की महिमा का स्तवन करनेवाले मन्त्रों के लिए (स्वाहा) = मैं अपना अर्पण करता हूँ। उनके पढ़ने के लिए यत्नशील होता हूँ। [शुदिर संपेषणे] (क्षद्रेभ्यः) = अविद्यान्धकार का संपेषण करनेवाले इन वेदमन्त्रों के लिए स्वाहा-मैं अपना अर्पण करता हूँ। ५. (एकानृचेभ्यः स्वाहा) = [नास्ति ऋक्-स्तुत्याविद्याः-यस्य सकाशात् स: 'अनृच'] उस ब्रह्मविद्या का वर्णन करनेवाली अनुत्तम [सर्वोत्तम] ऋचाओं के लिए मैं अपने को अर्पित करता हूँ।

    भावार्थ

    अज्ञान के विध्वंसक वेदमन्त्रों का अध्ययन करते हुए हम उस अद्वितीय प्रभु को जानने के लिए यत्नशील होते हैं।

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    भाषार्थ

    क्षुद्र अर्थात् अल्प संख्या वाले सूक्तों के लिये प्रशंसायुक्त वाणी हो।

    टिप्पणी

    [इस २३ वें सूक्त का प्रारम्भ “चतुऋर्चेभ्यः” द्वारा किया गया है, क्योंकि अथर्ववेद का प्रथम सूक्त चतुऋर्चात्मक है, चार ऋचाओं वाला है, जैसे कि २२ वें सूक्त का प्रारम्भ “आद्यैः पञ्चानुवाकैः” द्वारा किया है। अर्थात् अथर्ववेद के आदि के= प्रारम्भ के ५ अनुवाकों द्वारा किया है। “चतुऋर्चेभ्यः” से प्रारम्भ कर उत्तरोत्तर क्रमशः एक-एक ऋचा की वृद्धि वाले “अष्टादशर्चेभ्यः” तक २३ वें सूक्त में कथन हुआ है। “एकोविंशतिः स्वाहा” (मन्त्र १६) में स्वाहा शब्द के योग में चतुर्थी विभक्ति नहीं है। यही परिस्थिति “विंशतिः स्वाहा” (मन्त्र १७) की है। यह भेद सम्भवतः यह दर्शाता है कि “एकोनविंशतिः, तथा विंशतिः” मन्त्र १९ तथा २० ऋचाओं वाले सूक्तों के लिये अभिप्रेत नहीं। अतः इन पदों के अर्थ क्रमशः १ से १९ काण्ड तथा १ से २० काण्ड ही प्रतीत होते हैं। अथर्ववेद में २० काण्ड ही हैं। अथवा इनका अभिप्राय है केवल १९ वां काण्ड, तथा केवल २०वां काण्ड। “चतुऋर्चेभ्यः” से पूर्व तत्संलग्न तृचेभ्यः द्व्यृचेभ्यः एकर्चेभ्यः तथा एकानृचेभ्यः का कथन शेष है, जिन्हें कि मन्त्र १९,२०,२१,२२ द्वारा निर्दिष्ट किया है। ये चार मन्त्र सूक्तों में ऋक्-संख्या के उत्तरोत्तर ह्रास के सूचक हैं। समग्र अथर्ववेद में “तृच” सूक्त लगभग १७३, “द्व्यृच” सूक्त ४६, “एकर्च” सूक्त ७५, तथा “एकानृच” सूक्त १ है। इस संख्या के क्रम से इसलिए “तृचेभ्यः, एकर्चेभ्य, क्षुद्रेभ्यः और एकानृचेभ्यः”—यह क्रम रखा प्रतीत होता है। वर्तमान २३ वें सूक्त में “द्व्यृचेभ्यः” का वर्णन नहीं। इसलिए सम्भवतः “क्षुद्रेभ्यः” द्वारा “द्व्यृ चेभ्यः” सूक्तों का कथन हुआ है। क्योंकि अथर्ववेद में “द्व्यृ च” सूक्त संख्या में तृच और एकर्च सूक्तों की अपेक्षया अल्प अर्थात् क्षुद्र हैं।]

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    विषय

    अथर्ववेद के सूक्तों का संग्रह।

    भावार्थ

    (अथर्वणानाम्) अथर्ववेद में आये सूक्तों में से (चतुर्ऋचेभ्यः) चार चार ऋचा के बने सूक्तों का स्वयं मनन करो। (पञ्चर्चेभ्यः स्वाहा० इत्यादि २-१७) इसी प्रकार ५, ६, ७, ८, ६, १०, ११, १२,१३, १४, १५, १६, १७, १८, १९ और २० ऋचा वाले सूक्तों का भी ज्ञान करो। इसके अतिरिक्त (महत् काण्डाय स्वाहा) बड़े काण्ड का स्वाध्याय करो। (एक चेंभ्यः स्वाहा) एक ऋचा के सूक्तों का भी स्वाध्याय करो। (क्षुद्रेभ्यः) क्षुद सूक्त [का० १० १०] अर्थात् स्कम्भ आदि सूक्तों का भी ज्ञान करो। (एकानृचेभ्यः) एक चरण के मन्त्र जो ‘अनुच’ अर्थात् पूर्ण ऋचा नहीं और जिनमें पाद की व्यवस्था नहीं है जैसे व्रात्य सूक्त उनका भी स्वाध्याय करो। (रोहितेभ्यः स्वाहा) रोहित देवता विषयक सूक्तों [१३ का०] का स्वाध्याय करो (सूर्येऽभ्यः स्वाहा) ‘सूर्य’ देवता के दो अनुवाकों [ का० १४] का स्वाध्याय करो। (व्रात्याभ्यां स्वाहा) व्रात्य विषयक [ का० १५] दो सूत्रों का स्वाध्याय करो। (प्राजापत्याभ्यां स्वाहा) प्रजापतिविषयक [ का० १६ ] दो अनुवाकों का स्वाध्याय करो। (विषासह्यै स्वाहा) विषासहि सूक्त [ १७ का० ] का स्वाध्याय करो। (मंगलिकेभ्यः स्वाहा) मंगलिक, स्वस्तिवाचन, शान्तिपाठ [१९ का० ] का भी स्वाध्याय करो। (ब्रह्मणे स्वाहा) शेष ब्रह्मवेद [ २० का० ] का भी स्वाध्याय करो। ये दोनों समास सूक्त कहाते हैं। इनमें समस्त अथर्ववेद को संक्षिप्त करके उनके स्वाध्याय करने का उपदेश किया है। ज्ञान सूक्तों की आहुति स्वाध्यायमय ज्ञान यज्ञ है इसलिये ‘स्वाहा’ शब्द का सर्वत्र ‘अध्ययन करो’ ऐसा ही अर्थ किया गया हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः उतचन्द्रमा देवता। १ आसुरी बृहती। २-७, २०, २३, २७ दैव्यस्त्रिष्टुभः। १, १०, १२, १४, १६ प्राजापत्या गायत्र्यः। १७, १९, २१, २४, २५, २९ दैव्यः पंक्तयः। १३, १८, २२, २६, २८ दैव्यो जगत्यः (१-२९ एकावसानाः)। त्रिंशदृचं द्वितीयं समाससूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    x

    Meaning

    For short verse hymns, Svaha.

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    Translation

    Let us gain knowledge from the verses concerned with the infinitesimal substances and appreciate them.

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    Translation

    Thoroughly study the Kshudra sukta i.e., 10.10 Shamkha sukta.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २१−(क्षुद्रेभ्यः) म०१९।२२।६। सूक्ष्मज्ञानयुक्तेभ्यो वेदेभ्यः ॥

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