अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 2
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिवृत्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
46
सोम॑स्त्वा पा॒त्वोष॑धीभि॒र्नक्ष॑त्रैः पातु॒ सूर्यः॑। मा॒द्भ्यस्त्वा॑ च॒न्द्रो वृ॑त्र॒हा वातः॑ प्रा॒णेन॑ रक्षतु ॥
स्वर सहित पद पाठसोमः॑। त्वा॒। पा॒तु॒। ओष॑धीभिः। नक्ष॑त्रैः। पा॒तु॒। सूर्यः॑। मा॒त्ऽभ्यः। त्वा॒। च॒न्द्रः। वृ॒त्र॒ऽहा। वातः॑। प्रा॒णेन॑। र॒क्ष॒तु॒ ॥२७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमस्त्वा पात्वोषधीभिर्नक्षत्रैः पातु सूर्यः। माद्भ्यस्त्वा चन्द्रो वृत्रहा वातः प्राणेन रक्षतु ॥
स्वर रहित पद पाठसोमः। त्वा। पातु। ओषधीभिः। नक्षत्रैः। पातु। सूर्यः। मात्ऽभ्यः। त्वा। चन्द्रः। वृत्रऽहा। वातः। प्राणेन। रक्षतु ॥२७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आशीर्वाद देने का उपदेश।
पदार्थ
(सोमः) सोमरस (ओषधीभिः) ओषधियों के साथ (त्वा) तुझे (पातु) बचावे, (सूर्यः) सबका चलानेवाला सूर्य (नक्षत्रैः) नक्षत्रों के साथ (पातु) बचावे। (वृत्रहा) अन्धकारनाशक (चन्द्रः) आनन्दप्रद चन्द्रमा (माद्भ्यः) महीनों के लिये और (वातः) पवन (प्राणेन) प्राण [जीवनसामर्थ्य] के साथ (त्वा) तुझे (पातु) बचावे ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य ओषधि आदि संसार के सब पदार्थों से उपकार लेकर सुखी होवें ॥२॥
टिप्पणी
२−(सोमः) सोमरसः (त्वा) (पातु) (ओषधीभिः) (नक्षत्रैः) (पातु) (सूर्यः) लोकानां प्रेरक आदित्यः (माद्भ्यः) मासानां हिताय (त्वा) (चन्द्रः) आह्लादकश्चन्द्रमाः (वृत्रहा) शत्रुनाशकः (वातः) पवनः (प्राणेन) जीवनसामर्थ्येन (रक्षतु) ॥
विषय
सोम-सूर्य-चन्द्र-वात
पदार्थ
१. (सोमः) = वह सौम्य प्रभु (त्वा) = तुझे (ओषधीभिः) = दोषों का दहन करनेवाली ओषधियों के द्वारा (पातु) = रक्षित करे। हम सौम्य वानस्पतिक भोजनों द्वारा दीर्घजीवन प्राप्त करें। 'आग्नेय पदार्थ रोगों के भेषज है, नकि भोजन। (सूर्य:) = सूर्यसम देदीप्यमान प्रभु (नक्षत्रै:) = नक्षत्रों के द्वारा हमारा (पातु) = रक्षण करें। सब नक्षत्रों की हमारे साथ अनुकूलता हो 'सर्व शान्ति:'। २. वह (वृत्रहा) = सब वासनाओं का विनाश करनेवाला (चन्द्रः) = आहादमय प्रभु (माद्धयः) = मासों के द्वारा-[मस्-to measure] प्रमाणों के द्वारा-तत्त्वज्ञान को प्राप्त कराने के द्वारा (त्वा) = तेरी (रक्षतु) = रक्षा करें तथा (वात:) = निरन्तर गतिशील प्रभु (प्राणेन) = प्राणशक्ति के द्वारा हमारा रक्षण करें।
भावार्थ
प्रभु हमें उत्तम ओषधियों, नक्षन्नों, तत्त्वज्ञान तथा प्राणशक्ति के द्वारा रक्षित करें।
भाषार्थ
हे मनुष्य! (ओषधीभिः) ओषधियों समेत (सोमः) सोम ओषधि (त्वा) तुझे (पातु) सुरक्षित करे, (नक्षत्रैः) नक्षत्रों समेत (सूर्यः) सूर्य तुझे सुरक्षित करे। (वृत्रहा) रात्रि के तमस् का हनन करनेवाला (चन्द्रः) चन्द्रमा (माद्भ्यः) मासों द्वारा, तथा (वातः) वायु (प्राणेन) प्राणशक्तिप्रदान द्वारा (त्वा) तुझे (रक्षतु) सुरक्षित करे।
टिप्पणी
[सोमः= सोम ओषधि, अन्य सब ओषधियों में प्रधान ओषधि मानी गई है। वेदों और आयुर्वेद के ग्रन्थों में इनके नाना चमत्कारी गुणों तथा प्रभावों का वर्णन हुआ है। सूर्यः= सूर्य की गति भी नक्षत्रमण्डलों के क्रान्तिवृत्त में होती है। भिन्न-भिन्न नक्षत्रों में कालानुसार सूर्य की स्थितियाँ भिन्न-भिन्न गुणों को पैदा करती हैं। इन भिन्न-भिन्न स्थितियों द्वारा सूर्य के ताप तथा प्रकाश का भिन्न-भिन्न प्रभाव पृथिवी पर पड़ता है, और ऋतुओं में परिवर्तन होता रहता है, जिसके द्वारा हमारी रक्षा हो रही है। माद्भ्यः= चन्द्रमा का सम्बन्ध मासों के निर्माण के साथ वर्णित है। अमान्तमास या पौर्णमासान्तमास चन्द्रमा द्वारा प्रत्येक को स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं। चन्द्रमा का प्रभाव महिलाओं के मासिक ऋतुदर्शन पर, सामुद्रिक ज्वार-भाटा पर, ओषधियों के रसों के निर्माण पर भी पड़ता है। इस प्रकार हमारे जीवानों की रक्षा चन्द्रमा पर भी निर्भर है।]
विषय
जीवन रक्षा।
भावार्थ
(सोमः) सोमलता (ओषधीभिः) अपने दोषनाशक शक्तियों से (त्वा पातु) तेरी रक्षा करे अथवा (सोमः) ओषधियों का निष्कर्ष या सार पदार्थ निकालने में चतुर वैद्य पुरुष (त्वा ओषधीभिः) तुझे रोगनाशक औषधियों से (पातु) पालन करे। (सूर्यः) सूर्य तुझे (नक्षत्रैः पातु) अपने व्यापक अथवा नक्ष=नाश से त्राण करने वाले गुणों से पालन करे। (चन्द्रः) आह्लादकारी चन्द्र (त्वा) तुझे (मादभ्यः) अपने मासों से रक्षा करे। और (वृत्रहा वातः) आवरणकारी मेघों का नाशक, मेघों को छिन्न भिन्न करने वाला (वातः) वायु अथवा मलशोधक रोगों का नाशक प्राणवायु (त्वा रक्षतु) तेरी रक्षा करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वगिरा ऋषिः। त्रिवृद् उत चन्द्रमा देवता। ३, ९ त्रिष्टुभौ। १० जगती। ११ आर्ची उष्णिक्। १२ आर्च्यनुष्टुप्। १३ साम्नी त्रिष्टुप् (११-१३ एकावसानाः)। शेषाः अनुष्टुभः।
इंग्लिश (4)
Subject
Protection
Meaning
Let Soma, the divine herb, protect you with oshadhis, medical applications, let the sun protect you with constellations of stars, let Chandrama, the moon, destroyer and dispeller of night’s darkness, protect you month by month, and let the air protect you with pranic energy.
Translation
May the cure-juice protect you with herbs; may the sun protect you with the constellations; may the moon, destroyer of darkness, protect you with months; may the wind protect you with the vital breath.
Translation
O man, let the Soma (group of herbaceous Plants) protect. You with herbaceous plants, Let the sun guard you with the stars, Let the moon preserve you ‘with the months and let the air killing clouds preserve you with the vital air.
Translation
Let the essence of medicines protect you with the help of herbs. Let the Sun protect you along with the constellations. Let the cloud-smasher moon protect you through waters. Let the wind protect you through vital breaths.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(सोमः) सोमरसः (त्वा) (पातु) (ओषधीभिः) (नक्षत्रैः) (पातु) (सूर्यः) लोकानां प्रेरक आदित्यः (माद्भ्यः) मासानां हिताय (त्वा) (चन्द्रः) आह्लादकश्चन्द्रमाः (वृत्रहा) शत्रुनाशकः (वातः) पवनः (प्राणेन) जीवनसामर्थ्येन (रक्षतु) ॥
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