Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 27 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 6
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - त्रिवृत् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
    37

    मा वः॑ प्रा॒णं मा वो॑ऽपा॒नं मा हरो॑ मा॒यिनो॑ दभन्। भ्रा॑जन्तो वि॒श्ववे॑दसो दे॒वा दैव्ये॑न धावत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा। वः॒। प्रा॒णम्। मा। वः॒। अ॒पा॒नम्। मा। हरः॑। मा॒यिनः॑। द॒भ॒न्। भ्राज॑न्तः। वि॒श्वऽवे॑दसः। दे॒वाः। दैव्ये॑न। धा॒व॒त॒ ॥२७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा वः प्राणं मा वोऽपानं मा हरो मायिनो दभन्। भ्राजन्तो विश्ववेदसो देवा दैव्येन धावत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा। वः। प्राणम्। मा। वः। अपानम्। मा। हरः। मायिनः। दभन्। भ्राजन्तः। विश्वऽवेदसः। देवाः। दैव्येन। धावत ॥२७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 27; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आशीर्वाद देने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्यो !] (मा) न तो (वः) तुम्हारे (प्राणम्) श्वास को, (मा)(वः) तुम्हारे (अपानम्) प्रश्वास को, और (मा)(हरः) तेज को (मायिनः) छली लोग (दभन्) नष्ट करें। (भ्राजन्तः) चमकते हुए, (विश्ववेदसः) सब प्रकार धनवाले, (देवाः) विद्वानो ! तुम (दैव्येन) विद्वानों के योग्य कर्म के साथ (धावत) धावा करो ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को विद्वानों के समान दूरदर्शी होकर शत्रु लोग रोकने चाहिएँ कि जिससे वे किसी प्रकार हानि न पहुँचावें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(मा) निषेधे (वः) युष्माकम् (प्राणम्) श्वासम् (मा) (वः) (अपानम्) प्रश्वासम् (हरः) तेजः (मायिनः) छलिनः (मा दभन्) मा नाशयन्तु (भ्राजन्तः) दीप्यमानाः (विश्ववेदसः) सर्वधनाः (देवाः) विद्वांसः (दैव्येन) देव-यञ्। विद्वद्योग्यकर्मणा (धावत) शीघ्रं गच्छत ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    भ्राजन्तो विश्ववेदसो देवः

    पदार्थ

    १. (व:) = तुम्हारी (प्राणम्) = प्राणशक्ति को (मायिन:) = आसुर-[मायावी]-भाव (मा दभन्) = मत हिंसित करें। (व:) = तुम्हारी (अपानम्) = अपानशक्ति को (मा) = ये आसुरभाव मत हिंसित करें तथा (हर:) = तुम्हारे शत्रुबलापहारक तेज को (मा) = ये आसुरभाव मत हिंसित करें। आसुरी वृत्तियों से प्राणापान व तेज का विनाश होता है। २. आसुरी वृत्तियों में न फंसकर प्राणापान की शक्ति व तेजस्विता से (भाजन्त:) = चमकते हुए (विश्ववेदसः) = सब ज्ञानों व धनों को प्राप्त करनेवाले [विद् ज्ञाने, विद् लाभे] (देवा:) = देववृत्ति के पुरुषो! तुम (दैव्येन धावत) = उस देव [प्रभु] के प्राप्त करनेवाले यज्ञादि उत्तम कर्मों से (धावत) = गतिशील बनते हुए अपने जीवनों को शुद्ध बना डालो [धावु गतिशुद्धयोः]।

    भावार्थ

    हम आसुरभावों से ऊपर उठकर प्राणापान की शक्ति व तेज का अपने में रक्षण करें। तेजस्विता से दीप्त, ज्ञानी व देव बनकर हम देवोचित कार्यों को करते हुए अपने जीवनों को शुद्ध बना डालें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    हे मनुष्यो! (मा)(वः) तुम्हारे (प्राणम्) प्राण को, (मा)(वः) तुम्हारे (अपानम्) अपान को, (मा)(हरः) तुम्हारे तेज को (मायिनः) छली-कपटी रोग कीटाणु (दभन्) दबा पाएं। (भ्राजन्तः) हे कान्ति सम्पन्न तथा (विश्ववेदसः) जीवन सम्बन्धी सब रहस्यों के जानने वाले (देवाः) दिव्य पुरुषो! तुम (दैव्येन) परमेश्वर-देव द्वारा प्रदर्शित विधि से, (धावत) अपने जीवनों को शुद्ध-पवित्र करते रहो।

    टिप्पणी

    [प्राण= नासिका संचारी वायु। अपान=आन्तों में रहने वाली, मलमूत्र को बाहिर फैंकने वाली वायु। धावत=धातु शुद्धौ।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    जीवन रक्षा।

    भावार्थ

    (मायिनः) मायावी पुरुष (चः) आप लोगों के (प्राणम्) प्राण को (मा दभन्) विनाश न करे। (वः अपानं मा) वे तुम्हारे अपान को नष्ट न करें। (मा हरः) तुम्हारे हरः अर्थात् बल को भी वे नाश न करें। हे (देवाः) विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (विश्ववेदसः) सब प्रकार ऐश्वर्यवान् होकर (भ्राजन्तः) तेजस्वी होकर (दैव्येन) दिव्य पदार्थ, अग्नि, जल वायु आदि के वेग या वेगवान रथ से (धावत) शीघ्र गति से जाया करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वगिरा ऋषिः। त्रिवृद् उत चन्द्रमा देवता। ३, ९ त्रिष्टुभौ। १० जगती। ११ आर्ची उष्णिक्। १२ आर्च्यनुष्टुप्। १३ साम्नी त्रिष्टुप् (११-१३ एकावसानाः)। शेषाः अनुष्टुभः।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Protection

    Meaning

    Let no clever negative forces suppress your prana, your apana and your lustre and grandeur. O brilliant divinities, blazing lustrous, knowers of all overt and covert facts of the world of existence, wash yourselves clean with divine purities and run on.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May not the wily ones suppress your in-breath, nor your out- ‘breath, nor (your) strength. O blazing bounties of Nature. possessors of all riches, may you rush up with your divine power (to help this person).

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let not the clouds or over whelming objects over-power the vitality of these (fire, moon and sun) let not over-power their outer function and let these wondrous powers shining with refulgence and possessing all their qualities run their course with marvelous splendour.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O learned people, Jet not the cheats end your incoming and outgoing breaths, nor your evil-destroying prowess. Let you be running far and wide, being glorious and possessing ample fortunes, by high quality means of transport, cars, trains, ships and aeroplanes.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(मा) निषेधे (वः) युष्माकम् (प्राणम्) श्वासम् (मा) (वः) (अपानम्) प्रश्वासम् (हरः) तेजः (मायिनः) छलिनः (मा दभन्) मा नाशयन्तु (भ्राजन्तः) दीप्यमानाः (विश्ववेदसः) सर्वधनाः (देवाः) विद्वांसः (दैव्येन) देव-यञ्। विद्वद्योग्यकर्मणा (धावत) शीघ्रं गच्छत ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top