अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 48/ मन्त्र 1
ऋषि: - गोपथः
देवता - रात्रिः
छन्दः - त्रिपदार्षी गायत्री
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
30
अथो॒ यानि॑ च॒ यस्मा॑ ह॒ यानि॑ चा॒न्तः प॑री॒णहि॑। तानि॑ ते॒ परि॑ दद्मसि ॥
स्वर सहित पद पाठअथो॒ इति॑। यानि॑। च॒। यस्मै॑। ह॒। यानि॑। च॑। अन्तः॑। प॒रि॒ऽणहि॑। तानि॑। ते॒। परि॑। द॒द्म॒सि॒ ॥४८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अथो यानि च यस्मा ह यानि चान्तः परीणहि। तानि ते परि दद्मसि ॥
स्वर रहित पद पाठअथो इति। यानि। च। यस्मै। ह। यानि। च। अन्तः। परिऽणहि। तानि। ते। परि। दद्मसि ॥४८.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
रात्रि में रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(च) और (अथो) फिर (ह) निश्चय करके (यानि) जिन [वस्तुओं] का (यस्म) हम प्रयत्न करें, (च) और (यानि) जो [वस्तुएँ] (अन्तः) भीतर (परीणहि) बाँधने के आधार [मञ्जूषा आदि] में हैं। (तानि) उन सबको (ते) तुझे (परि दद्मसि) हम सौंपते हैं ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य अपने सब पदार्थों को रात्रि में सावधानी से रखकर रक्षा करें ॥१॥
टिप्पणी
बम्बई गवर्नमेन्ट छापे की पुस्तक के पदपाठ में (यस्म) पद के स्थान पर [यस्मै] छपा है, हमने (यस्म) मूल पद माना है ॥ १−(अथो) अपि च (यानि) वस्तूनि (च) (यस्म) यसु प्रयत्ने लेट्, अडभावश्छान्दसः। स उत्तमस्य। पा० ३।४।९८। उत्तमपुरुषस्य सकारस्य लोपः। प्रयत्नेन प्राप्नुयाम (ह) निश्चयेन (यानि) वस्तूनि (च) (अन्तः) मध्ये (परीणहि) परि+णह बन्धने-क्विप्। बन्धनाधारे मञ्जूषादौ (तानि) वस्तूनि (ते) तुभ्यम् (परि दद्मसि) समर्पयामः ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Ratri
Meaning
Those things which we get with effort and we know, and those which we have secured in safety, all those, O Night, we entrust to you.
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