अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 48/ मन्त्र 6
वेद॒ वै रा॑त्रि ते॒ नाम॑ घृ॒ताची॒ नाम॒ वा अ॑सि। तां त्वां भ॒रद्वा॑जो वेद॒ सा नो॑ वि॒त्तेऽधि॑ जाग्रति ॥
स्वर सहित पद पाठवेद॑। वै। रा॒त्रि॒। ते॒। नाम॑। घृ॒ताची॑। नाम॑। वै। अ॒सि॒। ताम्। त्वाम्। भ॒रत्ऽवा॑जः। वे॒द॒। सा। नः॒। वि॒त्ते। अधि॑। जा॒ग्र॒ति॒ ॥४८.६॥
स्वर रहित मन्त्र
वेद वै रात्रि ते नाम घृताची नाम वा असि। तां त्वां भरद्वाजो वेद सा नो वित्तेऽधि जाग्रति ॥
स्वर रहित पद पाठवेद। वै। रात्रि। ते। नाम। घृताची। नाम। वै। असि। ताम्। त्वाम्। भरत्ऽवाजः। वेद। सा। नः। वित्ते। अधि। जाग्रति ॥४८.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रात्रि में रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(रात्रि) हे रात्रि ! (ते) तेरा (नाम) नाम (वै) निश्चय करके (वेद) मैं जानता हूँ, तू (घृताची) घृताची [प्रकाश को प्राप्त होनेवाली] (नाम) नामवाली (वै) निश्चय करके (असि) है। (तां त्वा) उस तुझको (भरद्वाजः) भरद्वाज [विज्ञानपोषक महात्मा] (वेद) जानता है, (सा) सो आप (नः) हमारी (वित्ते) सम्पत्ति पर (अधि) अधिकारपूर्वक (जाग्रति) जागती रहें ॥६॥
भावार्थ
मनुष्य तारे आदि से युक्त रात्रि में वेदादि शास्त्रों का मनन करके ज्ञान से प्रकाशित होकर सबकी रक्षा करें ॥६॥
टिप्पणी
६−(वेद) अहं जानामि (वै) निश्चयेन (रात्रि) (ते) तव (नाम) नामधेयम् (घृताची) घृ क्षरणदीप्त्योः-क्त+अञ्चु गतिपूजनयोः−क्विन्, ङीप्। घृतं दीप्तिम् अञ्चति प्राप्नोतीति सा (नाम) नाम्ना (वै) (असि) (ताम्) तादृशीम् (त्वाम्) (भरद्वाजः) भृञ् भरणे-शतृ। भरत् पोषकं वाजो विज्ञानं यस्य सः (वेद) वेत्ति (सा) सा भवती (नः) अस्माकम् (वित्ते) धने। सम्पत्तौ (अधि) अधिकृत्य (जाग्रति) जागर्तेर्लेटि अडागमः, गुणाभावश्छान्दसः। जागर्तु। सावधानो भवतु ॥
भाषार्थ
(रात्रि) हे रात्रि! (वै) निश्चय से (ते) तेरा (नाम) नाम (वेद) मैं जानता हूँ (वै) निश्चय से (घृताची) ज्ञान प्रकाश देनेवाली, (नाम) इस नाम से तू प्रसिद्ध (असि) है। (भरद्वाजः) ज्ञानभरा मेरा मन (तां त्वाम्) उस तुझ को ऐसा (वेद) जानता है, (सा) वह तू (नः) हमें (वित्ते अधि) ज्ञान प्रकाश धन प्रदान के निमित्त (जागृहि, मन्त्र ४) जागरूक सी रह, जैसे कि रात्री में योगानुष्ठान करने वाले (मन्त्र ५) अध्यात्मदान देने के लिए (जाग्रति) जागरूक रहते हैं।
टिप्पणी
[घृताची=घृत (प्रकाश, घृ दीप्तौ)+क्त+अञ्च् गतौ। रात्री के प्रशान्त “अश्विनौ काल” में अभ्यास का विधान है। (निरु० १२.१.१-५)] गतेस्त्रयोऽर्थाः ज्ञानं गतिः प्राप्तिश्च। भरद्वाजः=भरत्+वाजः (ज्ञान)। वाजः=वज् गतौ, गतेस्त्रयोऽर्थाः ज्ञानम् गतिः प्राप्तिश्च। भरद्वाजः=मनः। “भरद्वाज ऋषिः....मनोगृह्णामि” (यजुः० १३.५५)। वित्तेऽधि= ज्ञानदीप्तरूपी धन के सम्बन्ध में। रात्री के वर्णन द्वारा हमें निर्देश मिलते हैं कि हमें रात्रि में सांप आदि से आत्मरक्षा करनी चाहिये। रात्रि में परमेश्वर का स्तवन तथा योगानुष्ठान लाभप्रद है। योगानुष्ठान करनेवालों को प्राणिवर्ग की सेवा तथा पशुओं की रक्षा करनी चाहिये, पशु हिंसा नहीं करनी चाहिये। तथा निज आत्मोन्नति करके प्रजाजनों की आत्मोन्नति में प्रयत्नशील होना चाहिये। रात्री के प्रशान्त-काल में योगानुष्ठान द्वारा ज्ञान-दीप्ति सुगम होती है।]
विषय
घृताची [रात्रि]
पदार्थ
१. हे (रात्रि) = रात्रिदेवि! हम (वै) = निश्चय से (ते नाम वेद) = तेरे नाम को जानते हैं। तू वा निश्चय से ('घृताची' नाम) = घृताची नामवाली (असि) = है। 'घृतम् अञ्चति' [घृक्षरणदीप्तयोः] मलक्षरण व दीति को प्राप्त करानेवाली है। रात्रि में शरीर में मलों का क्षरण होकर शरीर सबल बनाता है तथा मन क्रोध आदि के हेतुओं को भूलकर दौस हो उठता है, अतः रात्रि 'घृताची' कही गई है। २. (ताम्) = उस (त्वा) = तुझको (भरद्वाज) = भरद्वाज वेद-जानता है। रात्रि में मनुष्य के अन्दर फिर से शक्ति का भरण-सा होता है। एवं रात्रि हमें भरद्वाज' बनाती है। (सा) = वह रात्रि (न:) = हमारे (वित्ते) = तेजस्विता-निमलता व ज्ञानरूप धन में (अधिजाग्नति) = अधिक अप्रमत्ता करती है। यह हमारे वित्तों का रक्षण करती है।
भावार्थ
रात्रि घृताची है। यह हमारे मलों का क्षरण करती हुई तेजस्विता की दीति प्राप्त कराती है। यह हममें शक्ति का भरण करती हुई हमें भरद्वाज बनाती है। हमारे शक्ति आदि धनों का रक्षण करती है।
विषय
राष्ट्रशक्ति रूप ‘रात्रि’।
भावार्थ
हे (रात्रि) रात्रि ! समस्त जगत् को अपने भीतर लेने वाली सर्वोपरि विद्यमान शक्ते ! (ते नाम अहं वेद) तेरा नाम मैं जानता हूं कि तू (घृताची नाम) ‘घृताची’ नामक (असि) है। (भरद्वाजः) भरद्वाज, अन्न और बलों को धारण करने वाला (तां त्वाम्) उस तुझको (वेद) जानता या प्राप्त करता है। (सः) वह (नः) हमारे (वित्ते) समस्त प्राप्त करने योग्य पदार्थों पर (जाग्रति*) जागती है, सावधान होकर रहती है। सब की रक्षा करती और यथासमय प्राप्त कराती है। ‘घृताची’—घृ क्षरणदीप्त्योः (चुरादिः) गृ घृ सेचने (भ्वादिः) एताभ्यामौणादिकः कः। जिघर्त्ति सञ्चलति दीप्यते वा तद् घृतम्। उदकं सर्पिः प्रदीप्तं वा। इति दया०। सेचयत्यनेन भूमिं पर्जन्यः। क्षरति भेघात्। दीप्तं वा स्वेन तेजसा देवतात्वात् घृतमत्रावश्यायलक्षणं जलं तदञ्चति। अञ्चतेर्गत्यर्थात् क्विनि ङीपि, घृताची। इति देवराजः। घृत जल है। इससे मेघ पृथ्वी को सींचता है। या घृत तेज है अर्थात् वह परमात्मा की जलदात्री, जीवनदात्री, तेजोदात्री, मेघ, सूर्य, वायु रूप से प्राणप्रद शक्ति घृताची, रात्रि है। उसके तत्व को ‘भरद्वाज’ अन्नोत्पादक विद्वान् जानते हैं। अध्यात्म में—मनो वै भरद्वाजऋषिः। अन्नं वाजः। यो वै मनो विभर्त्ति सो अन्नं वाज विभर्त्ति। तस्मान्मनो भरद्वाज ऋषिः। मन भरद्वाज है। अन्न वाज है। वही शरीर में रहकर समस्त प्राणों को धारण करता है। वह आत्मा के घृताची शक्ति को जानता है।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘वासि’, (तृ०) ‘ता त्वा’, (च०) ‘जागृहि’ इति पैप्प० सं०। *जागर्त्तर्लंरि अड़ागयो गुणाभावश्चेति सायणः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोपथ ऋषिः। रात्रिर्देवता। १ त्रिपदा आर्षी गायत्री। २ त्रिपदा विराड् अनुष्टुप। ३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्। ५ पथ्यापंक्तिः। शेषाः अनुष्टुभः। षडृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Ratri
Meaning
O Night, I know well your name. You are of the name of Ghrtachi, the service ladle for ghrta and generosity for yajna. Bharadvaja, the sagely scholar of food and energy, knows you who watch over and guard our wealth.
Translation
I know. — your name, O night. 'dripping clarified butter’ (grtachi) is your name. The possessor of strength (Bharadvàj) knows you as such. So may you keep awake and watch over our possessions.
Comments / Notes
Text is not clear in the book. If someone has a clearer copy, please edit this translation
Translation
I know certainly the name and impact of this night. Its name is Chritachi, that which spreads splendour. To this night knows actually Bharadvaj, the man of wealth. This night has watch and ward over our wealth (When we sleep).
Translation
O night, verily do I know thy name to be Ghritachi, showerer of comforts, lustre and the enervating freshness of body. Thou bearest that name. The mind, full of energy and power is quite familiar with thee (as it is at night that it has its fee play of activities during the hours of sleep) such as thou art, keepest watch over our wealth.
Footnote
भरद्वाज-mind and not any sage of that name.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(वेद) अहं जानामि (वै) निश्चयेन (रात्रि) (ते) तव (नाम) नामधेयम् (घृताची) घृ क्षरणदीप्त्योः-क्त+अञ्चु गतिपूजनयोः−क्विन्, ङीप्। घृतं दीप्तिम् अञ्चति प्राप्नोतीति सा (नाम) नाम्ना (वै) (असि) (ताम्) तादृशीम् (त्वाम्) (भरद्वाजः) भृञ् भरणे-शतृ। भरत् पोषकं वाजो विज्ञानं यस्य सः (वेद) वेत्ति (सा) सा भवती (नः) अस्माकम् (वित्ते) धने। सम्पत्तौ (अधि) अधिकृत्य (जाग्रति) जागर्तेर्लेटि अडागमः, गुणाभावश्छान्दसः। जागर्तु। सावधानो भवतु ॥
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