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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१२
    38

    ते त्वा॒ मदा॑ इन्द्र मादयन्तु शु॒ष्मिणं॑ तुवि॒राध॑सं जरि॒त्रे। एको॑ देव॒त्रा दय॑से॒ हि मर्ता॑न॒स्मिन्छू॑र॒ सव॑ने मादयस्व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । त्वा॒ । मदा॑: । इ॒न्द्र॒ । मा॒द॒य॒न्तु॒ । शु॒ष्मिण॑म् । तु॒वि॒ऽराध॑सम् । ज॒रि॒त्रे ॥ एक॑: । दे॒व॒ऽत्रा । दय॑से । हि । मर्ता॑न् । अ॒स्मिन् । शू॒र॒ । सव॑ने । मा॒द॒य॒स्व॒ ॥१२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते त्वा मदा इन्द्र मादयन्तु शुष्मिणं तुविराधसं जरित्रे। एको देवत्रा दयसे हि मर्तानस्मिन्छूर सवने मादयस्व ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । त्वा । मदा: । इन्द्र । मादयन्तु । शुष्मिणम् । तुविऽराधसम् । जरित्रे ॥ एक: । देवऽत्रा । दयसे । हि । मर्तान् । अस्मिन् । शूर । सवने । मादयस्व ॥१२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 12; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सेनापति के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी सेनापति] (ते) वे (मदाः) आनन्द करते हुए वीर (शुष्मिणम्) महाबली और (तुविराधसम्) बड़े धनी (त्वा) तुझको (जरित्रे) स्तुति करनेवाले के लिये (मादयन्तु) हर्षित करें। (देवत्रा) विद्वानों में (एकः हि) अकेला ही तू (मर्तान्) मनुष्यों पर (दयसे) दया करता है, (शूर) हे शूर ! (अस्मिन्) इस (सवने) प्रेरणा में [सबको] (मादयस्व) आनन्दित कर ॥॥

    भावार्थ

    सब सैन्यदल अपने पराक्रमों से मुख्य सेनापति को प्रसन्न करें और वह सेनापति भी उन सबों पर पूर्ण दया करे, जिससे शत्रुओं का नाश और प्रजा की रक्षा होवे ॥॥

    टिप्पणी

    −(ते) प्रसिद्धाः (त्वा) त्वाम् (मदाः) आनन्दयुक्ताः सुभटाः-दयानन्दभाष्ये, ऋ० ७।२३। (इन्द्रः) (मादयन्तु) हर्षयन्तु (शुष्मिणम्) बलिष्ठम् (तुविराधसम्) बहुधनयुक्तम् (जरित्रे) स्तोत्रे (एकः) अद्वितीयः (देवत्रा) विद्वत्सु (दयसे) म० ४। दयां करोषि (हि) एव (मर्तान्) मनुष्यान् (अस्मिन्) वर्तमाने (शूर) निर्भय (सवने) प्रेरणे (मादयस्व) आनन्दयस्व सर्वानिति शेषः ॥

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    विषय

    शुष्मिणं तुविराधसम्

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! (ते मदा:) = वे उल्लासजनक सोमकण शरीर में रक्षित हुए-हुए (त्वा मादयन्तु) = आपको आनन्दित करें। जब हम सोमकणों का रक्षण करें तो आपके प्रकाश को हृदयों में अधिक-अधिक देख पाएँ। उन आपको, जोकि (जरित्रे) = स्तोता के लिए (शुष्मिणम्) = शक्ति देनेवाले हैं और (तुविराधसम्) = महान् ऐश्वर्यवाले हैं। २. हे प्रभो! (एक:) = आप अकेले (हि) = ही (देवत्रा) = सब देवों में (मान्) = मनुष्यों को (दयसे) = रक्षित करते हैं। प्रभु अपने स्तोता को दिव्यगुणों में स्थापित करते हैं। हे शूर-शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले प्रभो! आप (अस्मिन्) = सबने इस जीवन-यज्ञ में (मादयस्व) = हमें आनन्दित कीजिए।

    भावार्थ

    शरीर में सरक्षित सोमकणों के द्वारा ही प्रभु का प्रकाश दिखता है। प्रभु स्तोता को बल व ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। प्रभु हमें दिव्यगुणों में स्थापित करते हैं और जीवन-यज्ञ में आनन्दित करते हैं।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (ते) वे (मदाः) हर्षोत्पादक भक्तिरस (शुष्मिणम्) पापशोषक बलवान, तथा (तुविराधसम्) महाधनी (त्वा) आपको (मादयन्तु) प्रसन्न करें, (जरित्रे) ताकि आप स्तोता को सफल-मनोरथ करें। (देवत्रा) देवों में आप ही (एकः) एक देव हैं, जो कि (हि) निश्चयपूर्वक (मर्तान्) मनुष्यों की (दयसे) रक्षा कर रहे हैं, उन पर दया कर रहें हैं। (शूर) हे पराक्रमशील! (अस्मिन्) इस (सवने) भक्तियज्ञ में (मादयस्व) आप अपने भक्तों को भी आनन्दरस द्वारा प्रसन्न कीजिए, तृप्त कीजिए।

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    विषय

    परमेश्वर का वर्णन

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) परमेश्वर ! (ते मदाः) वे नाना तृप्तिकारी, हर्ष, सुखकारक आनन्दरस (शुष्मिणम्) सर्वशक्तिमान् (तुविराधसम्) बहुत ऐश्वर्यवान् (त्वा) तुझको (जरित्रे) स्तुतिकर्ता उपासक के संतोष के लिये (मादयन्तु) पूर्ण कर रहे हैं कि तू (देवत्रा) समस्त देवों के बीच (एकः) अकेला ही (मर्त्तान्) समस्त मरणधर्मा प्राणियों को (दयसे) रक्षा करता है। हे (शूर) सर्वशक्तिमन् ! तू ही (अस्मिन् सवने) इस संसार में (मादयस्व) सदा तृप्त रहने वाला है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-६ वसिष्ठः। ७ अत्रिर्ऋषिः। त्रिष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Indra, lord of might, mercy, magnanimity and giver of all round success, may the devotees blest with joy and vision of action win your pleasure and favour for the gift of strength and power, sure success and excellence in all fields to bless the celebrant. You, the one adorable lord, bless the mortals with love and mercy. Come and share our celebrations of yajnic ecstasy with us in this session.

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    Translation

    All these blesssedness gladden you, O God Almighty, who is powerful, possessor of riches for the devotees. You only one among wondrous forces do mercy on the men. O omnipotent one you give pleasure to all in this Yajna.

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    Translation

    All these blessedness gladden you, O God Almighty, who is Powerful, possessor of riches for the devotees. You only one among wondrous forces do mercy on the men. O omnipotent one. you give pleasure to all in this Yajna.

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    Translation

    O the Radiant God, all those various kinds of joys and pleasures gush out or Thee, the Almighty and Lord of innumerable riches and fortunes, for the sake of the worshipper. O Omnipotent, Thou alone of all the divine forces, protectest the mortals and rejoicest in this creation of Thine.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(ते) प्रसिद्धाः (त्वा) त्वाम् (मदाः) आनन्दयुक्ताः सुभटाः-दयानन्दभाष्ये, ऋ० ७।२३। (इन्द्रः) (मादयन्तु) हर्षयन्तु (शुष्मिणम्) बलिष्ठम् (तुविराधसम्) बहुधनयुक्तम् (जरित्रे) स्तोत्रे (एकः) अद्वितीयः (देवत्रा) विद्वत्सु (दयसे) म० ४। दयां करोषि (हि) एव (मर्तान्) मनुष्यान् (अस्मिन्) वर्तमाने (शूर) निर्भय (सवने) प्रेरणे (मादयस्व) आनन्दयस्व सर्वानिति शेषः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সেনাপতিকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [মহাপ্রতাপী সেনাপতি] (তে) এই (মদাঃ) আনন্দিত বীর (শুষ্মিণম্) মহাবলী ও (তুবিরাধসম্) মহাধনী (ত্বা) তোমাকে (জরিত্রে) স্তোতা/প্রশংসাকারীদের জন্য (মাদয়ন্তু) হর্ষিত করে/করুক। (দেবত্রা) বিদ্বানদের মধ্যে (একঃ হি) একমাত্র তুমি (মর্তান্) মনুষ্যদের উপর (দয়সে) দয়া করো, (শূর) হে বীর ! (অস্মিন্) এই (সবনে) প্রেরণায় [সকলকে] (মাদয়স্ব) আনন্দিত করো॥৫॥

    भावार्थ

    সকল সৈন্যদল নিজের পরাক্রম দ্বারা মুখ্য সেনাপতিকে প্রসন্ন করে/করুক এবং সেই সেনাপতিও তাঁদের সকলের উপর পূর্ণ দয়া করে/করুক, যাতে শত্রুদের নাশ এবং প্রজাদের রক্ষা হয় ॥৫॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (তে) সেই (মদাঃ) হর্ষোৎপাদক ভক্তিরস (শুষ্মিণম্) পাপশোষক বলবান, তথা (তুবিরাধসম্) মহাধনী (ত্বা) আপনাকে (মাদয়ন্তু) প্রসন্ন করুক, (জরিত্রে) যাতে আপনি স্তোতার মনোরথ সফল করেন। (দেবত্রা) দেবতাদের মধ্যে আপনিই (একঃ) এক দেবতা, যিনি (হি) নিশ্চিতরূপে (মর্তান্) মনুষ্যদের (দয়সে) রক্ষা করছেন, তাঁদের ওপর দয়া করছেন। (শূর) হে পরাক্রমশীল! (অস্মিন্) এই (সবনে) ভক্তিযজ্ঞে (মাদয়স্ব) আপনি নিজের ভক্তদেরও আনন্দরস দ্বারা প্রসন্ন করুন, তৃপ্ত করুন।

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