अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 125/ मन्त्र 4
ऋषिः - सुर्कीतिः
देवता - अश्विनीकुमारौ
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सूक्त-१२५
41
यु॒वं सु॒राम॑मश्विना॒ नमु॑चावासु॒रे सचा॑। वि॑पिपा॒ना शु॑भस्पती॒ इन्द्रं॒ कर्म॑स्वावतम् ॥
स्वर सहित पद पाठयु॒वम् । सु॒राम॑म् । अ॒श्वि॒ना॒ । नमु॑चौ । आ॒सु॒रे । सचा॑ ॥ वि॒ऽपि॒पा॒ना । शु॒भ॒: । प॒ती॒ इति॑ । इन्द्र॑म् । कर्म॑ऽसु । आ॒व॒त॒म् ॥१२५.४॥
स्वर रहित मन्त्र
युवं सुराममश्विना नमुचावासुरे सचा। विपिपाना शुभस्पती इन्द्रं कर्मस्वावतम् ॥
स्वर रहित पद पाठयुवम् । सुरामम् । अश्विना । नमुचौ । आसुरे । सचा ॥ विऽपिपाना । शुभ: । पती इति । इन्द्रम् । कर्मऽसु । आवतम् ॥१२५.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(शुभः पती) हे शुभ व्यवहार के पालन करने हारे (अश्विना) कर्मों में व्यापक [सभापति और सेनापति] (सचा) मिले हुए (विपिपाना) विविध प्रकार रक्षक (युवम्) तुम दोनों ने (नमुचौ) न छोड़ने योग्य [सदा रखने योग्य] (आसुरे) बुद्धिमान् पुरुष के व्यवहार में (कर्मसु) कर्मों के बीच वर्तमान, (सुरामम्) भले प्रकार आनन्द देनेवाले (इन्द्रम्) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाले धनी पुरुष] की (आवतम्) रक्षा की है ॥४॥
भावार्थ
प्रजा और सेना के अधिकारी मिलकर व्यवहारकुशल धनी पुरुषों की रक्षा करके खेती आदि व्यापारों से प्रजा को सुख पहुँचावें ॥४॥
टिप्पणी
मन्त्र ४; यजुर्वेद में भी हैं-१०।३३।३४ तथा २०।७६, ७७ ॥ ४−(युवम्) युवाम् (सुरामम्) सुष्ठु रमयितारं आनन्दयितारम् (अश्विना) कर्मसु व्यापकौ सभासेनेशौ (नमुचौ) अ० २०।२१।७। अमोचनीये। सदा रक्षणीये (आसुरे) असुर-अण्। असुः प्रज्ञा-निघ० ३।९, रो मत्वर्थे। असुरस्य मेधाविनः पुरुषस्य व्यवहारे (सचा) समवेतौ (विपिपाना) पा रक्षणे-कानच्। विविधं रक्षमाणौ (शुभः) कल्याणकरस्य व्यवहारस्य (पती) पालकौ (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं धनिकम् (कर्मसु) (आवतम्) युवां रक्षितवन्तौ ॥
विषय
सरामं विपिपाना
पदार्थ
१. 'अश्विना' शरीर में प्राणापान हैं। इनकी साधना से शरीर में सोमशक्ति [वीर्य] की ऊर्ध्वगति होती है। इस सोमशक्ति को प्रस्तुत मन्त्र में 'सुरामम्' कहा गया है। इसके द्वारा जीव उत्तम रमणवाला होता है 'सुष्टु रमते अनेन । सोम-रक्षण होने पर ही सब आनन्द-निर्भर हैं। इसी से मनुष्य सौम्य स्वभाव का बनता है और अन्ततः प्रभु को पानेवाला होता है। २. हे (अश्विना) = प्राणापानो! (युवम्) = आप (सुरामम्) = उत्तम रमण के साधनभूत सोम का (विपिपाना) = विशेषरूप से पान करते हुए, (शुभस्पती) = सब कर्मों के रक्षक होते हो, (सचा) = परस्पर मिलकर-प्राण-अपान से मिलकर (आसुरे) = असुरों के अधिपति (नमुचौ) = [न मुचि]-अत्यन्त कठिनता से पीछा छोड़नेवाले इस अहंकार का हनन करनेवाले होते हो। प्राणसाधना से सब मलों का क्षय होते-होते इस आसुर अहंकारवृत्ति का भी ध्वंस हो जाता है। ३. इस आसुरवृत्ति का संहार करके आप (इन्द्रम्) = इस जितेन्द्रिय पुरुष को (कर्मसु) = कर्मों में (आवतम्) = रक्षित करते हो। कर्मों में लगा रहकर यह साधक वासनाओं की ओर नहीं झुकता और पवित्र बना रहकर प्रभु को पानेवाला होता है।
भावार्थ
प्राणसाधना से सोम का रक्षण होकर मनुष्य निरहंकार होता है। कर्मशील बना रहकर पवित्र बना रहता है और प्रभु को प्राप्त करता है।
भाषार्थ
(आसुरे) मेघ-सम्बन्धी (नमुचौ) जल के मोचन न होने पर अर्थात् वर्षा के अभाव में (अश्विना) अश्वों से सम्पन्न, हे प्रधानमन्त्री तथा प्रधान सेनापति! (युवम्) तुम दोनों (सचा) परस्पर के सहयोग द्वारा (सुरामम्) उत्तम तथा रमणीय राष्ट्र की पूर्णतया रक्षा करो। तुम दोनों (विपिपाना=विपिपानौ) विशेषतया राष्ट्र की रक्षा करनेवाले, तथा (शुभस्पती) राष्ट्र के शुभ कर्मों के रक्षक हो। और (कर्मसु) सम्राट् के कर्त्तव्य-कर्मों में (इन्द्रम्) सम्राट् की (आवतम्) पूर्णतया रक्षा करो।
टिप्पणी
[असुरः=मेघः (निघं০ १.१०)।]
विषय
राजा।
भावार्थ
हे (अश्विना) व्यापक अधिकार वाले दो बड़े अधिकारी पुरुषों ! (नमुचौ) कभी भी न छोड़ने योग्य (असुरे) असुर, दुष्ट पुरुषों के हनन कार्य में (सचा) सदा साथ रहकर (युवम्) तुम दोनों (शुभस्पती) शुभ कार्यों के पालक होकर (सुरामम्) राज्य लक्ष्मी के साथ वर्तमान राष्ट्र की (विपिपाना) नाना कर्मों में रक्षा करते हुए (कर्मसु) संमस्त कर्मों में (इन्दं) मुख्य राजा की (अवतम्) रक्षा करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कीर्ति र्ऋषिः। इन्द्रः, ४, ५ अश्विनौ च देवते। त्रिष्टुभः, ४ अनुष्टुप्। सप्तर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
O Ashvins, complementary powers of humanity, men and women, scholars and teachers, masters and protectors of the good, valuable and auspicious, well enjoying the soma taste of life together, help and assist Indra, ruler of life in the world, in the struggles of life and society against the demonic forces of want, violence and meanness.
Translation
O preserver of good dealings, O King and prime-minister, You always protecting the people guard pleasant wealthy men engaged in the acts of that intelligent deal which is unabondanable.
Translation
O preserver of good dealings, O King and prime-minister, You always protecting the people guard pleasant wealthy men engaged in the acts of that intelligent deal which is un-abondanable.
Translation
O Mighty king, let both the officers of the civil and the military departments, strong and quick in taking decisions, protect thee by their wise and thoughtful counsels and determined enemy-crushing actions, like the parents protecting their son. O king of fortunes, when thou enjoyest the national fortunes and well-being, the assembly of the learned persons makes thee free from all troubles and difficulties.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र ४; यजुर्वेद में भी हैं-१०।३३।३४ तथा २०।७६, ७७ ॥ ४−(युवम्) युवाम् (सुरामम्) सुष्ठु रमयितारं आनन्दयितारम् (अश्विना) कर्मसु व्यापकौ सभासेनेशौ (नमुचौ) अ० २०।२१।७। अमोचनीये। सदा रक्षणीये (आसुरे) असुर-अण्। असुः प्रज्ञा-निघ० ३।९, रो मत्वर्थे। असुरस्य मेधाविनः पुरुषस्य व्यवहारे (सचा) समवेतौ (विपिपाना) पा रक्षणे-कानच्। विविधं रक्षमाणौ (शुभः) कल्याणकरस्य व्यवहारस्य (पती) पालकौ (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं धनिकम् (कर्मसु) (आवतम्) युवां रक्षितवन्तौ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(শুভঃ পতী) হে শুভ আচরণের পালক (অশ্বিনা) কর্মে ব্যাপক [সভাপতি এবং সেনাপতি] (সচা) সমবেত/মিলিত/একত্রিত (বিপিপানা) বিবিধ প্রকার রক্ষক (যুবম্) তোমরা উভয়ই (নমুচৌ) অমোচনীয়/পরিত্যাগ করার অযোগ্য [সর্বদা রাখার যোগ্য] (আসুরে) বুদ্ধিমান পুরুষের আচরণে (কর্মসু) কর্মের মাঝে বর্তমান, (সুরামম্) সুষ্ঠুভাবে আনন্দ দাতা (ইন্দ্রম্) ইন্দ্রেকে [পরম ঐশ্বর্যবান ধনী পুরুষকে] (আবতম্) রক্ষা করো॥৪॥
भावार्थ
প্রজা ও সেনা কর্মকর্তারা মিলে ব্যবহারকুশল ধনী পুরুষদের রক্ষা করুক এবং কৃষিকাজ ইত্যাদি ব্যবসার মাধ্যমে প্রজাদের সুখ দান করুক ॥৪॥ মন্ত্র ৪; যজুর্বেদেও আছে-১০।৩৩।৩৪ তথা ২০।৭৬, ৭৭ ॥
भाषार्थ
(আসুরে) মেঘ-সম্বন্ধী (নমুচৌ) জলের মোচন না হলে অর্থাৎ বর্ষার অভাবে (অশ্বিনা) অশ্বসম্পন্ন, হে প্রধানমন্ত্রী তথা প্রধান সেনাপতি! (যুবম্) তোমরা (সচা) পরস্পরের সহযোগিতা দ্বারা (সুরামম্) উত্তম তথা রমণীয় রাষ্ট্রের পূর্ণরূপে রক্ষা করো। তোমরা দুজন (বিপিপানা=বিপিপানৌ) বিশেষরূপে রাষ্ট্রের রক্ষক, তথা (শুভস্পতী) রাষ্ট্রের শুভ কর্মের রক্ষক। এবং (কর্মসু) সম্রাটের কর্ত্তব্য-কর্মে (ইন্দ্রম্) সম্রাটের (আবতম্) পূর্ণরূপে রক্ষা করো।
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