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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 125 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 125/ मन्त्र 7
    ऋषिः - सुर्कीतिः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१२५
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    स सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ इन्द्रो॑ अ॒स्मदा॒राच्चि॒द्द्वेषः॑ सनु॒तर्यु॑योतु। तस्य॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्यापि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । सु॒ऽत्रामा॑ । स्वऽवा॑न् । इन्द्र॑: । अ॒स्मत् । आ॒रात् । चि॒त् । द्वेष॑: । स॒नु॒त: । यु॒यो॒तु॒ ॥ तस्य॑ । व॒यम् । सु॒ऽम॒तौ । य॒ज्ञिय॑स्य । अपि॑ । भ॒द्रे । सौ॒म॒न॒से । स्या॒म॒ ॥१२५.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स सुत्रामा स्ववाँ इन्द्रो अस्मदाराच्चिद्द्वेषः सनुतर्युयोतु। तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । सुऽत्रामा । स्वऽवान् । इन्द्र: । अस्मत् । आरात् । चित् । द्वेष: । सनुत: । युयोतु ॥ तस्य । वयम् । सुऽमतौ । यज्ञियस्य । अपि । भद्रे । सौमनसे । स्याम ॥१२५.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 125; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह (सुत्रामा) बड़ा रक्षक, (स्ववान्) बड़ा धनी, (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी राजा] (अस्मत्) हमसे (आरात् चित्) बहुत ही दूर (द्वेषः) शत्रुओं को (सनुतः) निर्णयपूर्वक (युयोतु) हटावे। (वयम्) हम लोग (तस्य) उस (यज्ञियस्य) पूजा योग्य [राजा] की (अपि) ही (सुमतौ) सुमति में और (भद्रे) कल्याण करनेवाली (सौमनसे) प्रसन्नता में (स्याम) रहें ॥७॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य प्रजारक्षक, शत्रुनाशक राजा की आज्ञा में रहकर सदा प्रसन्न रहें ॥७॥

    टिप्पणी

    ६, ७−मन्त्रौ व्याख्यातौ-अथ० ७ सू० ९१, ९२ ॥

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    विषय

    सुमति सौमनस

    पदार्थ

    १. (सः) = वह (सुत्रामा) = उत्तम त्राण करनेवाला (स्वावान्) = आत्मिक शक्ति से सम्पन्न (इन्द्रः) = शत्रुविद्रावक प्रभु (अस्मत्) = हमसे (द्वेषः) = द्वेष को (आरात् चित्) = निश्चय से बहुत दूर प्रवाहित करके (युयोतु) = पृथक् कर दे। 'यह द्वेष हमारे समीप फिर न आसके' इस रूप में प्रभु इसे हमसे दूर करें। २. (तस्य यज्ञियस्य) = उस यज्ञिय-पूज्य प्रभु की (समतौ) = कल्याणी मति में (वयम् स्याम) = हम हों (अपि) = और (भद्रे सौमनसे) = उस उत्तम मन में स्थित हों जो सबका भद्र व कल्याण ही सोचता है।

    भावार्थ

    प्रभु-कृपा से हमें सुमति व सौमनस प्राप्त हो। द्वेष हमसे दूर हो। 'सुमति व सौमनस' को प्रास करनेवाला यह व्यक्ति 'वृषाकपि' बनता है-शक्तिशाली व वासनाओं को कम्पित करके दूर करनेवाला। यह 'इन्द्र' परमैश्वर्यशाली प्रभु का उपासक होने से 'इन्द्र' कहलाता है। 'इन्द्राणी' प्रकृति प्रभु का सामर्थ्य है। उस प्रकृति की ओर झुकनेवाली ऋषिका भी 'इन्द्राणी' है। ये ही अगले सूक्त के द्रष्टा है -

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    भाषार्थ

    (सः) वह (सुत्रामा) सुरक्षा करनेवाला, (स्ववान्) निज राष्ट्रोत्पन्न या सम्पत्तिशाली (इन्द्रः) सम्राट्, (सनुतः) छिपे हुए, (द्वेषः) हमारे राष्ट्र के दुश्मनों को, (अस्मत्) हम प्रजाजनों से (आरात् चित् युयोतु) दूर कर दे, पृथक् कर दे। (यज्ञियस्य) राष्ट्र-यज्ञ का सम्पादन करनेवाले (तस्य) उस सम्राट् की (सुमतौ) सुमति में (वयं स्याम) हम प्रजाजन रहें। (अपि) तथा उसकी (भद्रे सौमनसे) कल्याणकारी तथा सुखकारी प्रसन्नता में रहें।

    टिप्पणी

    [सनुतः=अन्तर्हितनाम (निघं০ ३.२५)।]

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    विषय

    राजा।

    भावार्थ

    [ ६,७ ] इन दोनों मन्त्रों की व्याख्या देखो अथर्व० का० ७। सू० ९१ और ९२॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कीर्ति र्ऋषिः। इन्द्रः, ४, ५ अश्विनौ च देवते। त्रिष्टुभः, ४ अनुष्टुप्। सप्तर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    We pray may we ever abide in the good will and loving kindness of adorable Indra. May he, self- refulgent, self-potent, saviour protector, keep off from us and drive away for all time elements of hate and enmity far and near, all.

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    Translation

    May this rich ruler as our good protector drive off and keep after all our foemen. May we ever remain in favour, good opinion and pleasure of this pious ruler.

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    Translation

    May this rich ruler as our good protector drive off and keep after all our foemen. May we ever remain in favor, good opinion and pleasure of this pious ruler.

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    Translation

    O Adorable Lord, when Thou runs away from the soul, trembling at the sight of troubles and miseries, (due to his ignorance). Thou becomest a source of great pain and agony to him. And Thou art not, found even after a great search, for the protection of the soul or blessing him with peace and tranquility at other places even. The Great God is far greater than all others.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६, ७−मन्त्रौ व्याख्यातौ-अथ० ७ सू० ९१, ९२ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সঃ) সেই (সুত্রামা) মহান রক্ষক, (স্ববান্) মহাধনী, (ইন্দ্রঃ) মহা প্রতাপশালী রাজা (অস্মৎ) আমাদের থেকে (আরাৎ চিৎ) অনেক দূর (দ্বেষঃ) শত্রুদের (সনুতঃ) নির্ণয়পূর্বক (যুয়োতু) দূর করুক। (বয়ম্) আমরা যেন (তস্য) সেই (যজ্ঞিয়স্য) পূজাযোগ্য রাজার (অপি)(সুমতৌ) সুমতিতে এবং (ভদ্রে) কল্যাণকারী (সৌমনসে) প্রসন্নতায় (স্যাম) থাকি ॥৭॥

    भावार्थ

    সকল মনুষ্য প্রজারক্ষক, শত্রুনাশক রাজার আজ্ঞাবহ হয়ে সদা প্রসন্ন থাকুক ॥৭॥

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    भाषार्थ

    (সঃ) তিনি (সুত্রামা) সুরক্ষাকারী, (স্ববান্) নিজ রাষ্ট্রোৎপন্ন বা সম্পত্তিশালী (ইন্দ্রঃ) সম্রাট্, (সনুতঃ) লুকিয়ে থাকা, (দ্বেষঃ) আমাদের রাষ্ট্রের শত্রুদের, (অস্মৎ) আমাদের প্রজাদের থেকে (আরাৎ চিৎ যুয়োতু) দূর করুক, পৃথক্ করুক। (যজ্ঞিয়স্য) রাষ্ট্র-যজ্ঞের সম্পাদনকারী (তস্য) সেই সম্রাটের (সুমতৌ) সুমতিতে (বয়ং স্যাম) আমরা প্রজাগণ থাকি। (অপি) তথা উনার (ভদ্রে সৌমনসে) কল্যাণকারী তথা সুখকারী প্রসন্নতায় থাকি।

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