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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 2
    ऋषिः - त्रिशोकः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२२
    63

    मा त्वा॑ मू॒रा अ॑वि॒ष्यवो॒ मोप॒हस्वा॑न॒ आ द॑भन्। माकीं॑ ब्रह्म॒द्विषो॑ वनः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । त्वा॒ । मू॒रा: । अ॒वि॒ष्यव॑: । मा । उ॒प॒ऽहस्वा॑न: । आ । द॒भ॒न् ॥ माकी॑म् । ब्र॒ह्म॒ऽद्विष॑: । व॒न॒: ॥२२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा त्वा मूरा अविष्यवो मोपहस्वान आ दभन्। माकीं ब्रह्मद्विषो वनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । त्वा । मूरा: । अविष्यव: । मा । उपऽहस्वान: । आ । दभन् ॥ माकीम् । ब्रह्मऽद्विष: । वन: ॥२२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 22; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्वा) तुझको (मा) न तो (मूराः) मूढ़ (अविष्यवः) हिंसा चाहनेवाले और (मा)(उपहस्वानः) ठट्ठा करनेवाले लोग (आ दभन्) कभी दबावें। तू (ब्रह्मद्विषः) वेद के वैरियों को (माकीम्) मत (वनः) सेवन कर ॥२॥

    भावार्थ

    विद्वान् राजा सदा श्रेष्ठ कर्म करे, जिससे कोई दुष्ट उसका उपहास आदि न कर सके ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(मा) निषेधे (त्वा) त्वाम् (मूराः) मूढाः-निरु–० ६।८ (अविष्यवः) अ० ११।२।२। अव हिंसायाम्-इसि, क्यच्, उप्रत्ययः। परहिंसेच्छवः (मा) निषेधे (उपहस्वानः) उप+हसतेः-वनिप्। उपहासकर्तारः (आ) समन्तात् (दभन्) दम्भु दम्भे-लुङ्। हिंसन्तु (माकीम्) निषेधे। मा शब्दार्थे (ब्रह्मद्विषः) वेदद्वेष्टॄन् (वनः) वन संभक्तौ-लङ्। भजेथाः ॥

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    विषय

    'उपहस्वा-अविष्य, ब्रह्मद्विद्' मूढ़

    पदार्थ

    १.हे प्रभो! (मूरा:) = मूढ़ लोग (अविष्यवः) = [अव हिंसायाम्] दूसरों की हिंसा की कामनावाले (त्वा) = आपको (मा आदभन्) = हमारे अन्दर हिंसित करनेवाले न हों। (उपहस्वान:) = उपहास करनेवाले लोग भी हमें आपकी आस्था से दूर करने में समर्थ न हों। इनकी बातें हमारी आस्था को नष्ट न कर पाएँ। २. हे प्रभो। (त्वम्) = आप (ब्रह्मद्विषः) = ज्ञान के साथ अप्रीतिवाले लोगों को माकी (वन:) = मत प्राप्त हों। ज्ञानी भक्त ही आपका प्रिय हो।

    भावार्थ

    संसार में हम आध्यात्मिकता का उपहास करनेवाले, पर-हिंसारत मूढ़ लोगों की बातों में आकर प्रभु के प्रति श्रद्धा को न छोड़ बैठें। ज्ञानरुचि बनें और प्रभु को प्राप्त हों।

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    भाषार्थ

    हे उपासक! (अविष्यवः) चापलूस लोग (त्वा) तुझे, तेरे उपासना मार्ग से (मा आ दभन्) च्युत न करें। (मा) और न (उपहस्वानः) तेरे उपासनामार्ग का उपहास करनेवाले (मूराः) मूर्ख लोग तुझे तेरे उपासना मार्ग से च्युत करें। तू (ब्रह्मद्विषः) ब्रह्मद्वेषी जन का (वनः) संसर्ग (मा कीम्) न किया कर।

    टिप्पणी

    [अविष्यवः=अव् (To Praise आप्टे)।]

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) इन्द्र राजन् ! (त्वा) तुझको (मूराः) मूढ लोग (अविष्यवः) अपनी रक्षा चाहने वाले, या तेरे अधीन स्वयं रक्षा चाहने का बहाना बनाने वाले (मा दभन्) विनाश न करें। और इसी प्रकार (उपहस्वानः) तेरे उपहास करने वाले भी तुझे (मा दभन्) विनाश न करें। और (ब्रह्मद्विषः) ब्रह्म, वेद के और वेदज्ञ विद्वान् ब्राह्मणों के द्वेषी लोग भी तुझे तेरे ऐश्वर्य का (मा वनः) भोग न करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-३ त्रिशोकः काण्वः। ४-६ प्रियमेधः काण्वः। गायत्र्यः। षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    Let the fools and scoffers never get round you, even if they profess that they are keen to please you, for protection and support. Never support the negationists of knowledge, piety, existence and divinity.

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    Translation

    Let not the foolish and the men asking your aid with mockery and they who laugh on you bring you under pressures, You love not them who are the enemies of God, knowledge and prayers.

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    Translation

    Let not the foolish and the men asking your aid with mockery and they who laugh on you bring you under pressures. You love not them who are the enemies of God, knowledge and prayers.

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    Translation

    O king, let not the foolish people, seeking thy protection or- those who mock at thee overwhelm thee. Also love not those, who hate God,Vedas and the Vedic scholars.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(मा) निषेधे (त्वा) त्वाम् (मूराः) मूढाः-निरु–० ६।८ (अविष्यवः) अ० ११।२।२। अव हिंसायाम्-इसि, क्यच्, उप्रत्ययः। परहिंसेच्छवः (मा) निषेधे (उपहस्वानः) उप+हसतेः-वनिप्। उपहासकर्तारः (आ) समन्तात् (दभन्) दम्भु दम्भे-लुङ्। हिंसन्तु (माकीम्) निषेधे। मा शब्दार्थे (ब्रह्मद्विषः) वेदद्वेष्टॄन् (वनः) वन संभक्तौ-लङ्। भजेथाः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ত্বা) তোমার প্রতি যেন (মা) না (মূরাঃ) মূঢ় (অবিষ্যবঃ) হিংসক এবং (মা) না (উপহস্বানঃ) উপহাসকারী মনুষ্য (আ দভন্) হিংসা করে। তুমি (ব্রহ্মদ্বিষঃ) বেদের শত্রুদের (মাকীম্) না (বনঃ) গ্রহণ করো না।।২।।

    भावार्थ

    বিদ্বান রাজা সদা শ্রেষ্ঠ কর্ম করুক, যাতে কোনো দুষ্ট তাঁর উপহাস-আদি করতে না পারে।।২।।

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    भाषार्थ

    হে উপাসক! (অবিষ্যবঃ) চাটুকার লোক (ত্বা) তোমাকে, তোমার উপাসনা মার্গ থেকে যেন (মা আ দভন্) চ্যুত না করে। (মা) এবং না (উপহস্বানঃ) তোমার উপাসনামার্গের উপহাসকারী (মূরাঃ) মূর্খ লোকেরা তোমাকে তোমার উপাসনা মার্গ থেকে চ্যুত করে। তুমি (ব্রহ্মদ্বিষঃ) ব্রহ্মদ্বেষী লোকেদের (বনঃ) সংসর্গ/সঙ্গ (মা কীম্) করিও না।

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