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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२७
    56

    धे॒नुष्ट॑ इन्द्र सू॒नृता॒ यज॑मानाय सुन्व॒ते। गामश्वं॑ पि॒प्युषी॑ दुहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धे॒नु: । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । सू॒नृता॑ । यज॑मानाय । सु॒न्व॒ते ॥ गाम् । अश्व॑म् । पि॒प्युषी॑ । दु॒हे॒ ॥२७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धेनुष्ट इन्द्र सूनृता यजमानाय सुन्वते। गामश्वं पिप्युषी दुहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धेनु: । ते । इन्द्र । सूनृता । यजमानाय । सुन्वते ॥ गाम् । अश्वम् । पिप्युषी । दुहे ॥२७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 27; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] (ते) तेरी (धेनुः) वाणी (सूनृता) प्यारी और सच्ची और (पिप्युषी) बढ़ती करनेवाली होकर (सुन्वते) तत्त्व निचोड़नेवाली (यजमानाय) यजमान [विद्वानों का सत्कार, सत्सङ्ग और विद्या आदि दान करनेवाले] के लिये (गाम्) भूमि, विद्या वा गौओं और (अश्वम्) घोड़ों को (दुहे) भरपूर करती है ॥३॥

    भावार्थ

    सत्यवादी ऐश्वर्यवान् राजा सत्कार करके विद्वानों की उन्नति करके राज्य की उन्नति करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(धेनुः) वाक्-निघ० १।११ (ते) तव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (सूनृता) अ० ३।१२।२ प्रियसत्यात्मिका (यजमानाय) देवपूजासंगतिकरणविद्यादिदानकारकाय (सुन्वते) तत्त्वनिष्पादनं कुर्वते (गाम्) भूमिं विद्यां गोसमूहं वा (अश्वम्) अश्वसमूहम् (पिप्युषी) ओप्यायी वृद्धौ, क्वसु, ङीप्। वर्धयित्री (दुहे) तलोपः। दुग्धे। प्रपूरयति ॥

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    विषय

    सुनता धेनु

    पदार्थ

    १. हे इन्द्र-परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! ते धेनु: आपकी यह वेदवाणीरूप धेनु सन्ता-अत्यन्त प्रिय सत्यवाणीवाली है। यह सत्य-ज्ञान को प्रिय शब्दों में प्राप्त कराती है। २. यह धेनु यजमानाय-यज्ञशील सुन्वते-सोमशक्ति का सम्पादन करनेवाले पुरुष के लिए पिप्युषी-आप्यायन [वर्धन] करनेवाली होती हुई गाम्-उत्तम ज्ञानेन्द्रियों को तथा अश्वम्-उत्तम कर्मेन्द्रियों को दुहे-प्रपूरित करती है। वेदवाणी को अपनाने से इन्द्रियों की शक्ति का वर्धन होता है।

    भावार्थ

    वेदवाणीरूप धेनु सत्य-ज्ञान को प्रियरूप में प्रास कराती है। इसका अध्ययन इन्द्रियों को प्रशस्त करता है।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (ते) आपकी (पिप्युषी) ज्ञान से परिपुष्ट, (सूनृता) प्रिय तथा सत्यरूपा (धेनुः) वेदवाणी (सुन्वते) भक्तिरसवाले (यजमानाय) स्वाध्याय-यज्ञ के रचयिता के लिए, (गाम् अश्वम्) गौ और अश्व का ज्ञान (दुहे) प्रदान करती है।

    टिप्पणी

    [गौः=गच्छति यो यत्र यया वा सा गौः=पशुः, इन्द्रियं, सुखं, किरणः, वज्रं, चन्द्रमा, भूमिः, वाणी जलं वा (उणा০ कोष २.६७)। अश्व=इन्द्रियाँ, मन, सूर्य, वह्नि, अश्व, पशु, वीर्य आदि। वेदवाणी इन सब विषयों का ज्ञान प्रदान करती है।]

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    विषय

    धनाढ्यों के प्रति राजा का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (सुन्वते यजमानाय) यज्ञ करने वाले दानशील एवं ईश्वरोपासना करने वाले पुरुष के लिये अथवा ज्ञान प्रदान करने वाले पुरुष के लिये (ते) तेरी (सूनृता) उत्तम, सत्यमयी वाणी ही (धेनुः) कामधेनु के समान (पिप्युषी) पुष्ट करनेहारी होकर (गाम् अश्वम्) नाना गौ, भूमि और अश्व आदि धन को भी (दुहे) प्रदान करती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोषूक्त्यश्वसूक्तिना वृषी। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    Indra, the divine voice of your omniscience, omnipotence and bliss overflows with universal truth and rectitude of the law of existence and showers the abundance of prosperity and advancement upon the dedicated yajamana who distils and creates the soma of joy for the world.

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    Translation

    O Almighty God, your vedic speech (a truth in itself) for the performer of Yajna is a cow that Strengthening him pours (the wealth of) cows and horses.

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    Translation

    O Almighty God, your vedic speech (a truth in itself) for the performer of Yajna is a cow that strengthening him pours (the wealth of) cows and horses.

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    Translation

    O Adorable Lord, Thy cow, the Vedic Lore, full of truth and fulfiller of all desires of man, nourishes him with all sorts of riches in the form of land, wealth, cows and horses.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(धेनुः) वाक्-निघ० १।११ (ते) तव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (सूनृता) अ० ३।१२।२ प्रियसत्यात्मिका (यजमानाय) देवपूजासंगतिकरणविद्यादिदानकारकाय (सुन्वते) तत्त्वनिष्पादनं कुर्वते (गाम्) भूमिं विद्यां गोसमूहं वा (अश्वम्) अश्वसमूहम् (पिप्युषी) ओप्यायी वृद्धौ, क्वसु, ङीप्। वर्धयित्री (दुहे) तलोपः। दुग्धे। प्रपूरयति ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান্ পুরুষ] (তে) তোমার (ধেনুঃ) বাণী (সূনৃতা) প্রিয়, সত্য এবং (পিপ্যুষী) বর্ধনকারী হয়ে (সুন্বতে) তত্ত্ব নিষ্পাদনকারী (যজমানায়) যজমান [বিদ্বানদের সৎকার, সৎসঙ্গ ও বিদ্যাদি দাতার] জন্য (গাম্) ভূমি, বিদ্যা বা গাভী এবং (অশ্বম্) অশ্বসমূহকে (দুহে) সমৃদ্ধ করে॥৩॥

    भावार्थ

    সত্যবাদী ঐশ্বর্যবান রাজা সৎকার করে বিদ্বানগনের উন্নতি করে রাজ্যের উন্নতি করবে ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (তে) আপনার (পিপ্যুষী) জ্ঞান দ্বারা পরিপুষ্ট, (সূনৃতা) প্রিয় তথা সত্যরূপা (ধেনুঃ) বেদবাণী (সুন্বতে) ভক্তিরসযুক্ত (যজমানায়) স্বাধ্যায়-যজ্ঞের রচয়িতার জন্য, (গাম্ অশ্বম্) গৌ এবং অশ্বের জ্ঞান (দুহে) প্রদান করে।

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