Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 27 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 1
    सूक्त - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२७
    58

    यदि॑न्द्रा॒हं यथा॒ त्वमीशी॑य॒ वस्व॒ एक॒ इत्। स्तो॒ता मे॒ गोष॑खा स्यात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । इ॒न्द्र॒ । अ॒हम् । यथा॑ । त्वम् । ईशीय॑ । वस्व॑: । इत् ॥ स्तो॒ता । मे॒ । गोऽस॑खा । स्या॒त् ॥२७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदिन्द्राहं यथा त्वमीशीय वस्व एक इत्। स्तोता मे गोषखा स्यात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । इन्द्र । अहम् । यथा । त्वम् । ईशीय । वस्व: । इत् ॥ स्तोता । मे । गोऽसखा । स्यात् ॥२७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 27; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    विषय

    राजा के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (यत्) जब (यथा) जैसे-जैसे (एकः) अद्वितीय (त्वम्) तू (इत्) ही (मे) मेरा [स्वामी होवे], (अहम्) मैं (वस्वः) धन का (ईशीय) स्वामी हो जाऊँ, और (स्तोता) गुणों का व्याख्यान करनेवाला [प्रत्येक पुरुष] (गोसखा) पृथिवी [अर्थात् तेरे राज्य] का मित्र (स्यात्) हो जावे ॥१॥

    भावार्थ

    अद्वितीय प्रतापी राजा विद्वान् गुणी पुरुषों का आदर करता रहे, जिससे सब लोग राज्य की वृद्धि में लगे रहें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।१४।१-६ मन्त्र १-३ सामवेद में है-उ० २।९। तृच ९, और मन्त्र १ सामवेद में है-पू० २।३।७ ॥ १−(यत्) यदा (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (अहम्) (यथा) येन येन प्रकारेण (त्वम् ईशिषे)-इति शेषः (ईशीय) ईश्वरः स्वामी स्याम् (वस्वः) धनस्य (इत्) एव (एकः) अद्वितीयः (स्तोता) गुणानां व्याख्याता (मे) मम (गोसखा) गोः पृथिव्यास्तव राज्यस्य मित्रभूतः (स्यात्) भवेत् ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    Indra, lord of universal knowledge, power and prosperity, if I were, like you, the sole master of wealth, wisdom and power in my field, then pray may my dependent and celebrant also be blest with wealth and wisdom of the world. (Let all of us together be blest with abundance of wealth and wisdom under the social dispensation of our system of government and administration.)

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।१४।१-६ मन्त्र १-३ सामवेद में है-उ० २।९। तृच ९, और मन्त्र १ सामवेद में है-पू० २।३।७ ॥ १−(यत्) यदा (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (अहम्) (यथा) येन येन प्रकारेण (त्वम् ईशिषे)-इति शेषः (ईशीय) ईश्वरः स्वामी स्याम् (वस्वः) धनस्य (इत्) एव (एकः) अद्वितीयः (स्तोता) गुणानां व्याख्याता (मे) मम (गोसखा) गोः पृथिव्यास्तव राज्यस्य मित्रभूतः (स्यात्) भवेत् ॥

    Top