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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२७
    40

    न ते॑ व॒र्तास्ति॒ राध॑स॒ इन्द्र॑ दे॒वो न मर्त्यः॑। यद्दित्स॑सि स्तु॒तो म॒घम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । ते॒ । व॒र्ता । अ॒स्ति॒ । राध॑स: । इन्द्र॑ । दे॒व: । न । मर्त्य॑: ॥ यत् । दित्स॑सि । स्तु॒त: । म॒घम् ॥२७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न ते वर्तास्ति राधस इन्द्र देवो न मर्त्यः। यद्दित्ससि स्तुतो मघम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । ते । वर्ता । अस्ति । राधस: । इन्द्र । देव: । न । मर्त्य: ॥ यत् । दित्ससि । स्तुत: । मघम् ॥२७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 27; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (ते) तेरे (राधसः) ऐश्वर्य का (वर्ता) रोकनेवाला, (न) न तो (देवः) विद्वान् पुरुष और (न)(मर्त्यः) सामान्य पुरुष (अस्ति) है, (यत्) जब कि (स्तुतः) स्तुति किया गया तू (मघम्) धन (दित्ससि) देना चाहता है ॥४॥

    भावार्थ

    राजा अपने उत्तम गुणों से अनुपम होकर सुपात्रों को दान देकर उन्नति करे ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(न) निषेधे (ते) तव (वर्ता) निवारकः (अस्ति) (राधसः) ऐश्वर्यस्य (इन्द्र) (देवः) विद्वान् पुरुषः (न) निषेधे (मर्त्यः) सामान्यो मनुष्यः (यत्) यदा (दित्ससि) दातुमिच्छसि (स्तुतः) (मघम्) मंहनीयं धनम् ॥

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    विषय

    न देवो न मर्त्यः वर्ता अस्ति

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन प्रभो! (न देवः) = न तो सूर्य-चन्द्र आदि प्राकृतिक देव [शक्तियों] (न मयः) = न ही कोई मनुष्य (ते राधस:) = आपके ऐश्वर्य का (वर्ता अस्ति) = निवारक है। २. (स्तुत:) = स्तुति किये गये आप (यत्) = जब (मघम्) = ऐश्वर्य को (दित्ससि) = देने की कामनावाले होते हैं तब कोई आपको रोक थोड़े ही सकता है?

    भावार्थ

    प्रभु के अनुग्रह से जब स्तोता को धन प्राप्त होता है तब कोई भी उस कार्य को विहत नहीं कर पाता।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (स्तुतः) स्तुतियाँ पाकर आप (यद् मघम्) जो धन (दित्ससि) देना चाहते हैं, उस (ते) आपके (राधसः) धन में (वर्ता) रुकावट डालनेवाला (न देवः अस्ति) न कोई देव है, और (न मर्त्यः) न कोई मनुष्य।

    टिप्पणी

    [वर्ता=निवारणकर्त्ता।]

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    विषय

    धनाढ्यों के प्रति राजा का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (यत्) जो तू (स्तुतः) स्तुति किया जाकर (मघम्) ऐश्वर्य (दित्ससि) प्रदान करना चाहता है, अतः (ते) तेरे (राधसः) ऐश्वर्य का या कार्य साधन के उपाय का कोई (देवः) विद्वान पुरुष या राजा योद्धा भी (वर्ता) बाधक (न) नहीं है और (न मर्त्यः) न कोई मनुष्य ही तेरा बाधक है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोषूक्त्यश्वसूक्तिना वृषी। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    Indra, when you are pleased to bless the celebrant with power, prosperity and excellence, then neither mortal nor immortal can restrain the abundant flow of your grace and generosity.

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    Translation

    O God Almighty, you being worshippėd whatever wealth and gift want to give none as mysterious one or mortal can hinder.

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    Translation

    O God Almighty, you being worshipped whatever wealth and gift want to give none as mysterious one of mortal can hinder.

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    Translation

    O Lord of fortunes, there is no divine power or human being, who can ward Thee off from giving riches and wealth, when Thou, being worshipped and praised, want to shower fortunes on Thy devotees.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(न) निषेधे (ते) तव (वर्ता) निवारकः (अस्ति) (राधसः) ऐश्वर्यस्य (इन्द्र) (देवः) विद्वान् पुरुषः (न) निषेधे (मर्त्यः) सामान्यो मनुष्यः (यत्) यदा (दित्ससि) दातुमिच्छसि (स्तुतः) (मघम्) मंहनीयं धनम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ রাজন্] (তে) তোমার (রাধসঃ) ঐশ্বর্য (বর্তা) নিবারক, (ন) না তো (দেবঃ) বিদ্বান্ পুরুষ এবং (ন) না (মর্ত্যঃ) সামান্য পুরুষ (অস্তি) আছে, (যৎ) যখন (স্তুতঃ) স্তুত্য/প্রশংসিত তুমি (মঘম্) ধন (দিৎসসি) প্রদানের আকাঙ্ক্ষী ॥৪॥

    भावार्थ

    রাজা নিজের উত্তম গুণ দ্বারা অনুপম হয়ে সুপাত্রদের দান করে উন্নতি করুক ॥৪॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (স্তুতঃ) স্তুতি প্রাপ্ত করে আপনি (যদ্ মঘম্) যে ধন (দিৎসসি) প্রদান করতে চান, সেই (তে) আপনার (রাধসঃ) ধন-সম্পদ (বর্তা) অবরোধকারী/প্রতিরোধকারী/নিবারণকর্ত্তা (ন দেবঃ অস্তি) না কোনো দেবতা, এবং (ন মর্ত্যঃ) না কোনো মনুষ্য। [বর্তা=নিবারণকর্ত্তা।]

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