अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 61/ मन्त्र 3
ऋषिः - गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - उष्णिक्
सूक्तम् - सूक्त-६१
48
तद॒द्या चि॑त्त उ॒क्थिनोऽनु॑ ष्टुवन्ति पू॒र्वथा॑। वृष॑पत्नीर॒पो ज॑या दि॒वेदि॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । अ॒द्य । चि॒त् । ते॒ । उ॒क्थिन॑: । अनु॑ । स्तु॒व॒न्ति॒ । पू॒र्वऽथा॑ ॥ वृष॑ऽपत्नी । अ॒प: । ज॒य॒ । दि॒वेऽदि॑वे ॥६१.३॥
स्वर रहित मन्त्र
तदद्या चित्त उक्थिनोऽनु ष्टुवन्ति पूर्वथा। वृषपत्नीरपो जया दिवेदिवे ॥
स्वर रहित पद पाठतत् । अद्य । चित् । ते । उक्थिन: । अनु । स्तुवन्ति । पूर्वऽथा ॥ वृषऽपत्नी । अप: । जय । दिवेऽदिवे ॥६१.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
[हे परमेश्वर !] (ते) तेरे (तत्) उस [सामर्थ्य] को (उक्थिनः) कहने योग्य के कहनेहारे पुरुष (अद्यचित्) अब भी (पूर्वथा) पहिले के समान (अनु) लगातार (स्तुवन्ति) गाते हैं। [जिस सामर्थ्य से] (वृषपत्नीः) बलवान् [तुझ परमात्मा] से रक्षा की हुई (अपः) प्रजाओं को (दिवेदिवे) दिन-दिन (जय) तू जीतता है ॥३॥
भावार्थ
विज्ञानी सूक्ष्मदर्शी लोग परमात्मा की उस शक्ति को देखकर समर्थ होते हैं, जिस शक्ति से वह सब सृष्टि को रचकर सदा अपने वश में रखता है ॥३॥
टिप्पणी
३−(तत्) सामर्थ्यम् (अद्य) इदानीम् (चित्) अपि (ते) तव (उक्थिनः) वक्तव्यस्य वक्तारः (अनु) निरन्तरम् (स्तुवन्ति) प्रशंसन्ति (पूर्वथा) पूर्वकाले यथा (वृषपत्नीः) वृषा बलवान् परमात्मा पती रक्षको यासां ताः (अपः) प्रजा (जय) लडर्थे लोट्। जयसि। वशीकरोषि (दिवे-दिवे) प्रतिदिनम् ॥
विषय
'वृषपत्नी: अप:' जय
पदार्थ
१. हे प्रभो! (अद्या चित्) = आज भी (पूर्वथा) = पहले की भांति-इस सृष्टि में भी उसी प्रकार जैसेकि पूर्व सृष्टि में (उक्थिन:) = स्तोता लोग (ते) = आपके (तत्) = उस सोमपानजनित् बल व उल्लास का (अनुष्टुवन्ति) = स्तवन करते हैं। यह सोमरक्षण-जनित मद वस्तुत: प्रशस्यतम है। यही सब वृद्धियों व उन्नतियों का मूल है। २. हे प्रभो! आप हमारे लिए (दिवे-दिवे) = प्रतिदिन (अपः) = रेत:कण रूप जलों का (जया)= -विजय कीजिए। ये रेत:कणरूप जल ही (वृषपत्नी:) = हमारे जीवनों में धर्म का ['वृषो हि भगवान् धर्म:-मनु०] रक्षण करनेवाले हैं। वे ही हमें शक्तिशाली बनाते हैं।
भावार्थ
प्रभु ने सोम-रक्षण से उत्पन्न होनेवाले बल व मद की अद्भुत ही व्यवस्था की है। प्रभु के अनुग्रह से हम इन रेत:कणरूप जलों का विजय करें। ये रेत:कणरूप जल ही सब शक्तिशाली पुरुषों से रक्षणीय हैं-ये ही हमारे जीवनों में धर्म का रक्षण करते हैं।
भाषार्थ
(तद्) इसलिए, (पूर्वथा) पूर्ववत् (अद्य चित्) आज भी, (ते) आपके (उक्थिनः) स्तोता, आपकी (अनु) निरन्तर (स्तुवन्ति) स्तुतियाँ करते हैं। अतः (वृषपत्नीः) भक्तिरसवर्षी उपासक द्वारा परिपालित (अपः) उसके कर्मों पर, (दिवेदिवे) दिन प्रतिदिन, (जय) आपका राज्य होता जा रहा है।
टिप्पणी
[वृषपत्नीः=वृष (=भक्तिरसवर्षी)+पत्नीः (=परिपालित)।]
विषय
पूर्णानन्द परमेश्वर की स्तुति।
भावार्थ
(अद्यचित्) आज तक भी (उक्थिनः) स्तुतिकर्त्ता पुरुष (पूर्वथा) पूर्व के समान ही (तत्) उस तेरे स्वरूप का (अनु सुवन्ति) बराबर वर्णन करते हैं। वह ही (वृषपत्नीः) वर्षंणशील मेघ की शक्तियों को पालन करने वाली (अपः) जलों को जिस प्रकार सूर्य धारण करता है उसी प्रकार वृष अर्थात् बलवान् पुरुष के पालने वाली प्रजाओं को (दिवे दिवे) प्रतिदिन (अपः) समस्त प्राप्त प्रजाओं को (जय) अपने वश कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोसूक्तयश्वसूक्तिनावृषी। इन्द्रो देवता। उष्णिहः। षडृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
That divine power and joyous generosity of yours, today, saints and scholars of the holy Word and song sing and celebrate as ever before. O lord, conquer and control the waters of space collected in the mighty clouds and let them flow day by day.
Translation
O Lord, even this day like of the old one the devotees admire that power of yours. You have under your control every day the waters which produce the raining clouds.
Translation
O Lord, even this day like of the old one the devotees admire that power of yours. You have under your control every day the waters which produce the raining clouds.
Translation
Even up-to-date, the devotees sing Thy praises as here-to-fore. Daily Thou keepest under Ihy control all the pious persons like the Sun controlling the raining and nourishing powers of the clouds.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(तत्) सामर्थ्यम् (अद्य) इदानीम् (चित्) अपि (ते) तव (उक्थिनः) वक्तव्यस्य वक्तारः (अनु) निरन्तरम् (स्तुवन्ति) प्रशंसन्ति (पूर्वथा) पूर्वकाले यथा (वृषपत्नीः) वृषा बलवान् परमात्मा पती रक्षको यासां ताः (अपः) प्रजा (जय) लडर्थे लोट्। जयसि। वशीकरोषि (दिवे-दिवे) प्रतिदिनम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে পরমেশ্বর !] (তে) আপনার (তৎ) সেই [সামর্থ্যকে] (উক্থিনঃ) কথনযোগ্য-এর কথক পুরুষ (অদ্যচিৎ) আজও (পূর্বথা) পূর্বের ন্যায় (অনু) নিরন্তর (স্তুবন্তি) গান করে। [যে সামর্থ্য দ্বারা] (বৃষপত্নীঃ) বলবান [আপনার] দ্বারা রক্ষিত (অপঃ) প্রজাদের (দিবেদিবে) দিন-দিন (জয়) আপনি জয় করেন ॥৩॥
भावार्थ
বিজ্ঞানী সূক্ষ্মদর্শী মনুষ্যগণ পরমাত্মার শক্তি প্রত্যক্ষ করে সামর্থ্যযুক্ত হয়, যে শক্তি দ্বারা তিনি সকল সৃষ্টি রচনা করে সদা নিজের নিয়ন্ত্রণে রাখেন ॥৩॥
भाषार्थ
(তদ্) এইজন্য, (পূর্বথা) পূর্ববৎ (অদ্য চিৎ) আজও, (তে) আপনার (উক্থিনঃ) স্তোতা, আপনার (অনু) নিরন্তর (স্তুবন্তি) স্তুতি করে। অতঃ (বৃষপত্নীঃ) ভক্তিরসবর্ষী উপাসক দ্বারা পরিপালিত (অপঃ) তাঁর কর্মের ওপর, (দিবেদিবে) দিন প্রতিদিন, (জয়) আপনার রাজ্য/জয় হচ্ছে।
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