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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 61/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-६१
    47

    तम्व॒भि प्र गा॑यत पुरुहू॒तं पु॑रुष्टु॒तम्। इन्द्रं॑ गी॒र्भिस्त॑वि॒षमा वि॑वासत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । ऊं॒ इति॑ । अ॒भ‍ि । प्र । गा॒य॒त॒ । पु॒रु॒ऽहू॒तम् । पु॒रु॒स्तु॒तम् । इन्द्र॑म् । गी॒ऽभि: । त॒वि॒षम् । आ । वि॒वा॒स॒त॒ ॥६१.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तम्वभि प्र गायत पुरुहूतं पुरुष्टुतम्। इन्द्रं गीर्भिस्तविषमा विवासत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । ऊं इति । अभ‍ि । प्र । गायत । पुरुऽहूतम् । पुरुस्तुतम् । इन्द्रम् । गीऽभि: । तविषम् । आ । विवासत ॥६१.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 61; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (6)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे विद्वानो !] (तम् उ) उस ही (पुरुहूतम्) बहुत पुकारे हुए, (पुरुष्टुतम्) बहुत बड़ाई किये हुए, (तविषम्) महान् (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] को (अभि) सब ओर से (प्र) भले प्रकार (गायत) गाओ, और (गीर्भिः) वाणियों से (आ) सब प्रकार (विवासत) सत्कार करो ॥४॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! वह परमात्मा सबसे बड़ा है, उसीके गुणों को हृदय में धारण करके आत्मबल बढ़ाओ ॥४॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ४-६ ऋग्वेद में है-८।१।१-३ और आगे हैं-अ० २०।६०।८-१० और मन्त्र १ सामवेद में है-पू० ४।१०।३ ॥ ४−(तम्) प्रसिद्धम् (उ) एव (अभि) सर्वतः (प्र) प्रकर्षेण (गायत) स्तुत (पुरुहूतम्) बहुविधाहूतम् (पुरुष्टुतम्) बहुप्रशंसितम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (गीर्भिः) वाणीभिः (तविषम्) महान्तम् (आ) समन्तात् (विवासत) परिचरत। सेवध्वम्-निघ० ३। ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ =  ( तम् उ ) = उस ही  ( पुरुहूतम् ) = बहुत पुकारे हुए  ( पुरुष्टुतम् ) = बहुत बड़ाई किये हुए  ( तविषम् ) = महान्  ( इन्द्रम् ) = परमात्मा को  ( अभि ) = सब ओर से  ( प्रगायत ) = भली प्रकार गाओ और  ( गीर्भि: ) = वाणियों से  ( आ ) = सब प्रकार  ( विवासत ) = सत्कार करो ।

    भावार्थ

    भावार्थ = हे मनुष्यो ! वह परमात्मा सबसे बड़ा है । उसको जान कर उसी की प्रार्थना, उपासना करो, और अपनी वाणियों से भी ईश्वर की महिमा को निरूपण करनेवाले वेद मन्त्रों से प्रभु का सत्कार करो ।

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    विषय

    प्रभु-गायन, प्रभु-पूजन

    पदार्थ

    १. (तम्) = उस (पुरुहूतम्) = बहुतों-से पुकारे जानेवाले (पुरुष्टुतम्) = खूब ही स्तुति किये जानेवाले प्रभु का (उ) = ही (अभिप्रगायत) = प्रात:-सायं गुणगान करो। यह प्रभु का गुणानुवाद ही आसुरवृत्तियों को दूर भगाने का साधन बनता है। २. उस (तविषम्) = महान, सर्वशक्तिमान् (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को ही (गीभिः) = ज्ञानपूर्वक उच्चरित स्तुतिवाणियों से (आविवासत) = पूजित करो। प्रभु-पूजन ही तो हमें शत्रुओं के आक्रमण से बचाता है।

    भावार्थ

    हम प्रभु के गुणों का गायन करें-प्रभु का पूजन करें। यह गायन व पूजन ही हमें 'महान्, शक्तिमान् व ऐश्वर्यवान्' बनाएगा।

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    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे विद्वानो !] (तम् उ) उस ही (पुरुहूतम्) बहुत पुकारे हुए, (पुरुष्टुतम्) बहुत बड़ाई किये हुए, (तविषम्) महान् (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] को (अभि) सब ओर से (प्र) भले प्रकार (गायत) गाओ, और (गीर्भिः) वाणियों से (आ) सब प्रकार (विवासत) सत्कार करो ॥४॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! वह परमात्मा सबसे बड़ा है, उसीके गुणों को हृदय में धारण करके आत्मबल बढ़ाओ ॥४॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ४-६ ऋग्वेद में है-८।१।१-३ और आगे हैं-अ० २०।६२।८-१० और मन्त्र १ सामवेद में है-पू० ४।१०।३ ॥ ४−(तम्) प्रसिद्धम् (उ) एव (अभि) सर्वतः (प्र) प्रकर्षेण (गायत) स्तुत (पुरुहूतम्) बहुविधाहूतम् (पुरुष्टुतम्) बहुप्रशंसितम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (गीर्भिः) वाणीभिः (तविषम्) महान्तम् (आ) समन्तात् (विवासत) परिचरत। सेवध्वम्-निघ० ३। ॥

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    भाषार्थ

    हे उपासको! (पुरुहूतम्) बहुतों द्वारा सहायतार्थ पुकारे गये, (पुरुष्टुतम्) बहुतों द्वारा स्तुतियाँ पाये हुए, (तविषम्) बलस्वरूप (तम्) उस (उ) ही (इन्द्रम्) परमेश्वर के (प्र गायत) गीत गाया करो, और (गीर्भिः) वेदवाणियों की स्तुतियों द्वारा, उसकी ही (अभि) साक्षात् (विवासत) परिचर्या किया करो।

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    विषय

    पूर्णानन्द परमेश्वर की स्तुति।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! (पुरुहूतं) सबसे स्तुति करने योग्य (पुरुस्तुतम्) बहुत विद्वानों से वर्णित (तम् उ) उस परमेश्वर की ही (प्र गायत) अच्छी प्रकार स्तुति करो। हे विद्वान् लोग (गीर्भिः) वेदवाणियों द्वारा (तविषम्) महान् शक्तिशाली (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् पुरुष को (आ विवासत) स्तुति करो, उसकी अर्चना करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोसूक्तयश्वसूक्तिनावृषी। इन्द्रो देवता। उष्णिहः। षडृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    O celebrants, glorify Indra, universally invoked and praised, the lord who blazes with light and power, serve him with words and actions and let him shine forth in your life and achievement.

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    Translation

    O men, you sing the praise of Almighty God who is called by all and is praised by all and with voices of admiration and supplication serve him who is the great powerful.

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    Translation

    O men, you sing the praise of Almighty God who is called by all and is praised by all and with voices of admiration and supplication serve him who is the great powerful.

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    Translation

    O learned persons, fully and thoroughly sing the praises of Him, Whom many invoke and worship. Engulf the Powerful Lord of fortunes with the Vedic songs.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ४-६ ऋग्वेद में है-८।१।१-३ और आगे हैं-अ० २०।६०।८-१० और मन्त्र १ सामवेद में है-पू० ४।१०।३ ॥ ४−(तम्) प्रसिद्धम् (उ) एव (अभि) सर्वतः (प्र) प्रकर्षेण (गायत) स्तुत (पुरुहूतम्) बहुविधाहूतम् (पुरुष्टुतम्) बहुप्रशंसितम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (गीर्भिः) वाणीभिः (तविषम्) महान्तम् (आ) समन्तात् (विवासत) परिचरत। सेवध्वम्-निघ० ३। ॥

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    बंगाली (3)

    পদার্থ

    তম্বভি প্র গায়ত পুরুহূতং পুরুষ্টুতম্ ।

    ইন্দ্রম্ গীর্ভিস্তবিষমা বিবাসত ।।৮১।।

    (অথর্ব ২০।৬১।৪)

    পদার্থঃ হে মানব! (তম্ উ) সেই (পুরুহূতম্) বহু প্রকারে স্তুত, (পুরুষ্টুতম্) বহু প্রশংসিত (তবিষম্) মহান (ইন্দ্রম্) পরমাত্মাকে (অভি) সর্বদা (প্র গায়ত) নানা প্রকার গান এবং (গীর্ভিঃ) বাণী দ্বারা (আ) সকল প্রকারে (বিবাসত) সৎকার করো।

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে মানুষ! পরমাত্মা সকলের পূজনীয়। তা জেনে তাঁর উদ্দেশ্যে প্রার্থনা, উপাসনা করো এবং নিজ বাণী দ্বারা ঈশ্বরের মহিমা নিরূপণ করা বেদ মন্ত্রের মাধ্যমে প্রভুর সৎকার অর্থাৎ যজ্ঞরূপ কর্মের আয়োজন করো ।।৮১।।

     

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    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে বিদ্বানগণ !] (তম্ উ) সেই (পুরুহূতম্) অনেক প্রকারে আহুত, (পুরুষ্টুতম্) বহুপ্রকারে প্রশংশিত (তবিষম্) মহান্ (ইন্দ্রম্) ইন্দ্রকে [পরম ঐশ্বর্যযুক্ত পরমাত্মাকে] (অভি) সকল দিক হতে (প্র) উত্তম প্রকারে (গায়ত) গান করো এবং (গীর্ভিঃ) বাণী দ্বারা (আ) সর্বপ্রকারে (বিবাসত) সৎকার করো ॥৪॥

    भावार्थ

    হে মনুষ্যগণ ! পরমাত্মা সর্ববৃহৎ, উনার গুণ সমূহ হৃদয়ে ধারণ করে আত্মবল বৃদ্ধি করো ॥৪॥মন্ত্র ৪-৬ ঋগ্বেদে আছে-৮।১৫।১-৩ এবং আছে-অ০ ২০।৬০।৮-১০ এবং মন্ত্র ১ সামবেদে আছে-পূ০ ৪।১০।৩ ॥

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    भाषार्थ

    হে উপাসকগণ! (পুরুহূতম্) অনেকের দ্বারা সহায়তার্থে আহূত, (পুরুষ্টুতম্) অনেকের দ্বারা স্তুতি প্রাপ্ত, (তবিষম্) বলস্বরূপ (তম্) সেই (উ)(ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরের (প্র গায়ত) গীত গান করো, এবং (গীর্ভিঃ) বেদবাণীর স্তুতি দ্বারা, উনারই (অভি) সাক্ষাৎ (বিবাসত) পরিচর্যা করো।

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