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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 70 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 70/ मन्त्र 11
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०
    34

    इन्द्रं॑ व॒यं म॑हाध॒न इन्द्र॒मर्भे॑ हवामहे। युजं॑ वृ॒त्रेषु॑ व॒ज्रिण॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । व॒यम् । म॒हा॒ऽध॒ने । इन्द्र॑म् । अर्भे॑ । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ युज॑म् । वृ॒त्रेषु॑ । व॒ज्रि॒ण॑म् ॥७०.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं वयं महाधन इन्द्रमर्भे हवामहे। युजं वृत्रेषु वज्रिणम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । वयम् । महाऽधने । इन्द्रम् । अर्भे । हवामहे ॥ युजम् । वृत्रेषु । वज्रिणम् ॥७०.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    १०-२० परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (वयम्) हम (अर्भे) चलते हुए (महाधने) बहुत धन प्राप्त करानेवाले संग्राम में [अथवा बहुत धन में] (युजम्) सहायकारी और (वृत्रेषु) रोकनेवाले शत्रुओं पर (वज्रिणम्) वज्रधारी (इन्द्रम्) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] को, (इन्द्रम्) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] को (हवामहे) बुलाते हैं ॥११॥

    भावार्थ

    युद्धों में तथा बहुत धन में वीर पुरुष−“हे इन्द्र जगदीश्वर ! हे इन्द्र जगदीश्वर”− ऐसा स्मरण करके अपना बल बढ़ावें और प्रयत्न करके शत्रुओं को हटावें ॥११॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र सामवेद में भी है-पू० २।४।६ ॥ ११−(इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं जगदीश्वरम् (वयम्) (महाधने) महाधने संग्रामनाम-निघ० २।१७। प्रभूतधननिमित्ते संग्रामे। यद्वा, महच्च तद् धनं च। प्रभूते धने (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं जगदीश्वरम् (अर्भे) अर्त्तिगॄभ्यां भन्। उ० ३।१२। ऋ गतौ-भन्। गतिशीले (हवामहे) आह्वयामहे (युजम्) युजिर् योगे, युज समाधौ च-क्विप्। सहायकम् (वृत्रेषु) आवरकेषु शत्रुषु (वज्रिणम्) दण्डधारिणम् ॥

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    विषय

    'महाधन व अर्भ' में विजय

    पदार्थ

    १. (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को हम (महाधने) = 'दमन-दया व दान' रूप महाधनों की प्राप्ति के निमित्त (हवामहे) = पुकारते हैं। प्रभु-कृपा से काम को पराजित करके मैं मन को दान्त करता हूँ। प्रभु-कृपा से ही क्रोध को पराभूत करके मैं दयावाला बनता है और लोभ को विनष्ट कर में दानशील होता हूँ। २. (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को ही हम (अर्भे) = छोटे धनों के निमित्त-सांसारिक धनों की प्राप्ति के निमित्त (हवामहे) = पुकारते हैं। ३. उस प्रभु को हम पुकारते हैं जोकि (युजम्) = सदा हमारा साथ देनेवाले हैं और (वृत्रेषु) = हमारे ज्ञान पर पर्दा डालनेवाली वासनाओं पर (वज्रिणम्) = वज्र का प्रहार करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    प्रभु की शक्ति से शक्ति-सम्पन्न होकर हम छोटे-बड़े सभी संग्रामों में विजयी बनें। प्रभु हमारा साथ न छोड़नेवाले सच्चे मित्र हैं। उनके अनुग्रह से ही हम वासनाओं पर विजय पाकर ज्ञानदीस बन पाते हैं।

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    भाषार्थ

    (वयम्) हम उपासक (महाधने) महा-मोक्षधन की प्राप्ति में (युजम् इन्द्रम्) सहयोगी परमेश्वर का (हवामहे) आह्वान करते हैं। (अर्भे) अल्प सांसारिक धन की प्राप्ति में भी (इन्द्रम्) परमेश्वर का (हवामहे) हम आह्वान करते हैं। (वज्रिणम्) न्यायवज्रधारी परमेश्वर का उस समय भी हम आह्वान करते हैं, जबकि (वृत्रेषु) कामादि दुर्वासनाएँ हमें घेर लेती हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    India Devata

    Meaning

    In battles great and small, we invoke Indra, lord omnipotent, we call upon sun and wind, Indra, mighty breaker of the clouds, friend in darkness, wielder of the thunderbolt.

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    Translation

    We invoke Almighty God as our helper in great battles and in small one I also invoke Indra, the Almighty God He is the holder of thunderbolt upon the clouds.

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    Translation

    We invoke Almighty God as our helper in great battles and in small one I also invoke Indra, the Almighty God. He is the holder of thunderbolt upon the clouds.

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    Translation

    We invoke the Powerful Destroyer or commander in great wars, as well as in small battles. We call Him, our Helper, equipped with deadly weapons like the thunderbolt in all acts of smashing the wicked and evil forces.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र सामवेद में भी है-पू० २।४।६ ॥ ११−(इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं जगदीश्वरम् (वयम्) (महाधने) महाधने संग्रामनाम-निघ० २।१७। प्रभूतधननिमित्ते संग्रामे। यद्वा, महच्च तद् धनं च। प्रभूते धने (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं जगदीश्वरम् (अर्भे) अर्त्तिगॄभ्यां भन्। उ० ३।१२। ऋ गतौ-भन्। गतिशीले (हवामहे) आह्वयामहे (युजम्) युजिर् योगे, युज समाधौ च-क्विप्। सहायकम् (वृत्रेषु) आवरकेषु शत्रुषु (वज्रिणम्) दण्डधारिणम् ॥

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