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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 70 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 70/ मन्त्र 14
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०
    41

    वृषा॑ यू॒थेव॒ वंस॑गः कृ॒ष्टीरि॑य॒र्त्योज॑सा। ईशा॑नो॒ अप्र॑तिष्कुतः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृषा॑ । यू॒थाऽइ॑व । वंस॑ग: । कृ॒ष्टी: । इ॒य॒र्ति॒ । ओज॑सा ॥ ईशा॑न: । अप्र॑त‍िऽस्फुत: ॥७०.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषा यूथेव वंसगः कृष्टीरियर्त्योजसा। ईशानो अप्रतिष्कुतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषा । यूथाऽइव । वंसग: । कृष्टी: । इयर्ति । ओजसा ॥ ईशान: । अप्रत‍िऽस्फुत: ॥७०.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १०-२० परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (वृषा) बलवान् बैल (यूथा इव) जैसे अपने झुण्डों को, [वैसे ही] (वंसगः) सेवनीय पदार्थों का पहुँचानेवाला, (अप्रतिष्कुतः) बे-रोक गतिवाला (ईशानः) परमेश्वर (ओजसा) अपने बल से (कृष्टीः) मनुष्यों को (इयर्ति) प्राप्त होता है ॥१४॥

    भावार्थ

    जैसे बलवान् बैल अपने झुण्ड को वश में रखता है, वैसे ही परमात्मा सबमें व्यापकर मनुष्य आदि प्राणियों को अपने नियम में रखता है ॥१४॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र सामवेद में भी है-उ० ८।१।२ ॥ १४−(वृषा) वीर्यवान् बलीवर्दः (यूथा) तिथपृष्ठगूथयूथप्रोथाः। उ० २।१२। यु मिश्रणामिश्रणयोः-थक्। सजातीयसमुदायान् (इव) यथा (वंसगः) अ० १८।३।३६। सेवनीयपदार्थानां प्रापयिता (कृष्टीः) अ० ३।२४।३। मनुष्यान्-निघ० २।३। (इयर्ति) ऋ गतौ-लट् शपः श्लुः। प्राप्नोति (ओजसा) बलेन (ईशानः) ईश ऐश्वर्ये-शानच्। परमेश्वरः (अप्रतिष्कुतः) म० १२। अप्रतिगतः ॥

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    विषय

    हम 'गौएँ' हों, प्रभु हमारे 'गोपाल'

    पदार्थ

    १. वे प्रभु (वृषा) = शक्तिशाली हैं, हमपर सुखों का वर्षण करनेवाले हैं। वे हमें इसप्रकार प्राप्त होते हैं (इव) = जैसेकि (वंसग:) = वननीय [सुन्दर] गतिवाला गडरिया (यूथा) = भेड़ों के झुण्डों को प्राप्त होता है। वे प्रभु (कृष्टी:) = श्रमशील मनुष्यों को (ओजसा इयर्ति) = ओजस्विता के साथ प्राप्त होते हैं। हमें प्रभु ओजस्वी बनाते हैं। २. (ईशानः) = वे प्रभु ईशान है-सब ऐश्वर्यों के स्वामी हैं और (अप्रतिष्कुतः) = प्रति शब्द से रहित हैं-कभी न करनेवाले नहीं है। प्रभु के दरबार में "हमारी प्रार्थना कभी अस्वीकृत होगी', ऐसी सम्भावना नहीं है।

    भावार्थ

    हमें चाहिए कि हम प्रभु के निर्देश में इसप्रकार चलें जैसे भेड़ें गडरिये के निर्देश में चलती हैं। प्रभु का यह निरन्तर सम्पर्क हमें ओजस्वी बनाएगा। प्रभु हमें सब-कुछ देते हैं, 'न' नहीं करते।

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    भाषार्थ

    (वंसगः) रोब-दाब की चालवाला सेनापति, (इव) जैसे (यूथा) सैनिक-समूहों को, (ओजसा) अपने प्रभाव के कारण, (इयर्ति) आज्ञा द्वारा प्रेरित करता है, (ईशानः) और उन पर शासन करता है, वैसे (वृषा) सुखों की वर्षा करनेवाला जगन्नेता, (ओजसा) अपने सर्वोपरि ओज के कारण, (कृष्टीः) प्रजाजनों को (इयर्त्ति) प्रेरित कर रहा है, (ईशानः) और सब पर सुशासन कर रहा है, (अप्रतिष्कुतः) इस सम्बन्ध में उसका कहीं से भी प्रतिरोध नहीं होता।

    टिप्पणी

    [वंसगः—वननीयगतिः। कृष्टीः=मनुष्याः (निघं০ २.३)।]

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    विषय

    राजा परमेश्वर।

    भावार्थ

    (वंसगः) उत्तम गति वाला दृढांग (वृषा) हृष्टपुष्ट बैल जिस प्रकार (यूथेव) गो यूथ में शोभा देता है और (ओजसा) अपने बल से (कृष्टीः) क्षेत्रों को भी (इयर्त्ति) बाह लेता है उसी प्रकार वह परमेश्वर (वंसगः) संभजन या सेवन योग्य समस्त पदार्थों और लोकों में व्यापक होकर (वृषा) समस्त सुखों का वर्षक इस लोक समूह में शोभा पाते हैं और (कृष्टी) और आकर्षण गुण से बध इन लोकों का (ओजसा) अपने बल से (इयर्ति) चला रहा है। वही (अप्रतिष्कुतः) किसी से विचलित न होकर, किसी के भी वश न होकर स्वयं (ईशानः) समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामी है। राजा के पक्ष में—गोयूथ में वृषभ के समान अपने (ओजसा) पराक्रम से (कृष्टीः) प्रजाओं को (इयर्ति) अपने वश करता है और (अप्रतिष्कुतः) किसी से पराजित न होने वाला स्वयं राष्ट्र का स्वामी होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—१,२,६-२० इन्द्रमरुतः, ३-५ मरुतः॥ छन्दः—गायत्री॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    India Devata

    Meaning

    As the virile bull leads the herd it rules, so does Indra, generous lord indomitable and ruler of the world, inspire and lead His children to joy and freedom.

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    Translation

    The Almighty God who is irresistible and all controlling drives, all the creatures with His power like a bull strong in body and limbs.

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    Translation

    The Almighty God who is irresistible and all controlling drives, all the creatures with His power like a bull strong in body and limbs.

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    Translation

    Just as the strong-bodied bull adds to the stature of the herd of cattle and energises the process of agriculture by his vital energy, similarly the Mighty God, showerer of all blessings and well-being. Pervading all created things, the Irresistible Ruler of all energises all the spheres of the universe, held in space by mutual attraction, by His strong energy and power.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र सामवेद में भी है-उ० ८।१।२ ॥ १४−(वृषा) वीर्यवान् बलीवर्दः (यूथा) तिथपृष्ठगूथयूथप्रोथाः। उ० २।१२। यु मिश्रणामिश्रणयोः-थक्। सजातीयसमुदायान् (इव) यथा (वंसगः) अ० १८।३।३६। सेवनीयपदार्थानां प्रापयिता (कृष्टीः) अ० ३।२४।३। मनुष्यान्-निघ० २।३। (इयर्ति) ऋ गतौ-लट् शपः श्लुः। प्राप्नोति (ओजसा) बलेन (ईशानः) ईश ऐश्वर्ये-शानच्। परमेश्वरः (अप्रतिष्कुतः) म० १२। अप्रतिगतः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১০-২০ পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বৃষা) বলবান্ বৃষ (যূথা ইব) যেমন সজাতীয় দলকে একত্রে চালিত করে, [অনুরূপভাবে] (বংসগঃ) সেবনীয় পদার্থের প্রেরক, (অপ্রতিষ্কুতঃ) অপ্রতিরোধ্য গতিসম্পন্ন (ঈশানঃ) পরমেশ্বর (ওজসা) নিজ বল দ্বারা (কৃষ্টীঃ) মনুষ্যদের (ইয়র্তি) প্রাপ্ত হন ॥১৪॥

    भावार्थ

    যেমন বলবান্ বৃষ নিজ দলকে নিয়ন্ত্রণে রাখে, অনুরূপভাবে পরমাত্মা সকলের মধ্যে ব্যাপ্ত হয়ে মনুষ্য আদি প্রাণীকে নিজের নিয়ম-শৃঙ্খলায় শৃঙ্খলিত করে রাখেন ॥১৪॥ এই মন্ত্র সামবেদেও আছে-উ০ ৮।১।২ ॥

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    भाषार्थ

    (বংসগঃ) ঝুঁকিপূর্ণ পদক্ষেপ গ্রহণকারী সেনাপতি, (ইব) যেমন (যূথা) সৈনিক-সমূহকে, (ওজসা) নিজের প্রভাবের কারণে, (ইয়র্তি) আজ্ঞা দ্বারা প্রেরিত করে, (ঈশানঃ) এবং তাঁদের ওপর শাসন করে, তেমনই (বৃষা) সুখ বর্ষণকারী জগন্নেতা, (ওজসা) নিজের সর্বোপরি ওজ/তেজের কারণে, (কৃষ্টীঃ) প্রজাদের (ইয়র্ত্তি) প্রেরিত করছেন, (ঈশানঃ) এবং সকলের ওপর সুশাসন করছে, (অপ্রতিষ্কুতঃ) এই বিষয়ে উনার কোনো প্রতিরোধ হয় না।

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