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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 6
    ऋषिः - ब्रह्मा, भृग्वङ्गिराः देवता - इन्द्राग्नी, आयुः, यक्ष्मनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायुप्राप्ति सूक्त
    41

    इ॒हैव स्तं॑ प्राणापानौ॒ माप॑ गातमि॒तो यु॒वम्। शरी॑रम॒स्याङ्गा॑नि ज॒रसे॑ वहतं॒ पुनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ह । ए॒व । स्त॒म् । प्रा॒णा॒पा॒नौ॒ । मा । अप॑ । गा॒त॒म् । इ॒त: । यु॒वम् । शरी॑रम् । अ॒स्य॒ । अङ्गा॑नि । ज॒रसे॑ । व॒ह॒त॒म् । पुन॑: ॥११.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहैव स्तं प्राणापानौ माप गातमितो युवम्। शरीरमस्याङ्गानि जरसे वहतं पुनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इह । एव । स्तम् । प्राणापानौ । मा । अप । गातम् । इत: । युवम् । शरीरम् । अस्य । अङ्गानि । जरसे । वहतम् । पुन: ॥११.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 11; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग नाश करने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (प्राणापानौ) हे श्वास-प्रश्वास ! (युवम्) तुम दोनों (इह एव) इसमें ही (स्तम्) रहो, (इतः) इससे (मा अप गातम्) दूर मत जाओ। (अस्य) इस [प्राणी] के (शरीरम्) शरीर और (अङ्गानि) अङ्गों को (जरसे) स्तुति के लिये (पुनः) अवश्य (वहतम्) तुम दोनों ले चलो ॥६॥

    भावार्थ

    प्राण और अपान वायु का संचार ठीक न होने से रुधिर जमकर रोग उत्पन्न होता है, इससे मनुष्य सब शरीर में वायु संचार ठीक रखकर दृढ़ शरीरवाले हों और स्तुति प्राप्त करें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(इह एव)। अस्मिन्नेव शरीरे। (स्तम्)। भवतम्। (प्राणापानौ)। श्वासप्रश्वासौ। (मा अप गातम्)। इण् गतौ-माङि लुङ्। माप गच्छतम्। (इतः)। अस्माच्छरीरात्। (युवम्)। युवाम्। (शरीरम्)। अ० २।१२।८। कायम्। (अस्य)। पुरुषस्य। (अङ्गानि)। देहावययवान्। (जरसे)। अ० १।३०।२। जृ स्तुतौ, यद्वा, गृ शब्दे=स्तुतौ-असुन्। गस्यजः। स्तुत्यर्थम्। (वहतम्)। युवां प्रापयतम्। (पुनः) अवधारणे ॥

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    विषय

    पूर्ण सौ वर्ष तक

    पदार्थ

    १. हे (प्राणापानौ) = प्राण व अपानशक्ते! आप दोनों (इह एव स्तम्) = यहाँ शरीर में ही होओ। (इतः) = यहाँ से (युवम्)= तुम दोनों (मा अपगातम्) = दूर मत जाओ। २. यहाँ रहते हुए (पुन:) = फिर आप दोनों (अस्य) = इसके (शरीरम्) = शरीर को तथा (अङ्गानि) = शरीर के सब अङ्गों को (जरसे) = पूर्ण जरावस्थापर्यन्त (वहतम्) = धारण करनेवाले होओ।

    भावार्थ

    प्राणापान शरीर को, अङ्ग-प्रत्यङ्ग को सौ वर्ष तक शक्तिशाली बनाये रक्खें।

     

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    भाषार्थ

    (प्राणापानौ) हे प्राण और अपान ! तुम (इह एव) इसके शरीर में ही (स्तम्) रहो, (इतः) इस शरीर से (युवम्) तुम दोनों (मा अप गातम्) अपगत न होओ। (अस्य) इसके (शरीरम् अङ्गानि) शरीर और अंगों को (पुनः) फिर (जरसे) जरावस्था के लिए (वहतम्) प्राप्त कराओ। वहतम्= वह प्रापणे (भ्वादिः)

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    विषय

    आरोग्य और दीर्घायु होने के उपाय ।

    भावार्थ

    हे (प्राणपानौ) प्राण और अपान ! तुम दोनों (इह एव) इस देह में ही (स्तं) रहो । (युवम्) तुम दोनों (इतः) इस देह को छोड़ कर (मा अप गातम्) मत जावो । (अस्य) इस बालक के (शरीरम्) शरीर को और (अंगानि) अंगों को भी (पुनः) बराबर (जरसे) वृद्धावस्था तक (वहतम्) ले जाओ ।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘गामितो जबम्’ इति सायणाभिमतः पाठः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा भृग्वङ्गिराश्च ऋषि । ऐन्द्राग्न्युषसो यक्ष्मनाशनो वा देवता । ४ शक्वरीगर्भा जगती । ५, ६ अनुष्टुभौ । ७ उष्णिग् बृहतीगर्भा । पण्यापक्तिः । ८ त्र्यवसाना षट्पदा बृहतीगर्भा जगती । १ - ३ त्रिष्टुभः । अष्टर्चं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life and Yakshma Cure

    Meaning

    Let prana and apana stay strong here. They must not go away from this youth. Let them sustain and strengthen his parts of the body system and, further, conduct him to live his full age of good health till fulfilment.

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    Translation

    O in-breath and out-breath, may both of you stay here. May you not depart from here. Again may you carry his body and members up to his ripe old age (jarase) again.

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    Translation

    Let breath and respiration stay here in the body. Let these two not go from it. Let these two bring his body till old age.

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    Translation

    Breath, Respiration, stay Ye here. Go ye not hence away from him.Take the body and organs of this patient verily to old age.

    Footnote

    Him: A patient.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(इह एव)। अस्मिन्नेव शरीरे। (स्तम्)। भवतम्। (प्राणापानौ)। श्वासप्रश्वासौ। (मा अप गातम्)। इण् गतौ-माङि लुङ्। माप गच्छतम्। (इतः)। अस्माच्छरीरात्। (युवम्)। युवाम्। (शरीरम्)। अ० २।१२।८। कायम्। (अस्य)। पुरुषस्य। (अङ्गानि)। देहावययवान्। (जरसे)। अ० १।३०।२। जृ स्तुतौ, यद्वा, गृ शब्दे=स्तुतौ-असुन्। गस्यजः। स्तुत्यर्थम्। (वहतम्)। युवां प्रापयतम्। (पुनः) अवधारणे ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (প্রাণাপানৌ) হে প্রাণ ও অপান ! তোমরা (ইহ এব) এর[এই রুগ্ণের] শরীরেই (স্তম্) থাকো, (ইতঃ) এই শরীর থেকে (যুবম্) তোমরা (মা অপ গাতম্) অপগত হয়ো না, ছেড়ে যেওনা। (অস্য) এর[এই রুগ্ণের] (শরীরম্ অঙ্গানি) শরীর ও অঙ্গসমূহকে (পুনঃ) পুনঃ/পুনরায় (জরসে) জরাবস্থার জন্য (বহতম্) প্রাপ্ত করাও। বহতম্ =বহ প্রাপণে (ভ্বাদিঃ)

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    मन्त्र विषय

    রোগনাশনায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (প্রাণাপানৌ) হে শ্বাস-প্রশ্বাস ! (যুবম্) তোমরা (ইহ এব) এর মধ্যেই [এই প্রাণীর মধ্যেই] (স্তম্) থাকো, (ইতঃ) এর [এই প্রাণীর] থেকে (মা অপ গাতম্) দূরে যেওনা/অপগত হয়োনা। (অস্য) এই [প্রাণীর] (শরীরম্) শরীর ও (অঙ্গানি) অঙ্গ-প্রত্যঙ্গকে (জরসে) স্তুতির জন্য (পুনঃ) অবশ্যই (বহতম্) তোমরা নিয়ে চলো ॥৬॥

    भावार्थ

    প্রাণ ও অপান বায়ুর সঞ্চার সঠিক না হলে, রক্ত জমাট বেঁধে রোগ সৃষ্টি হয়, তাই মনুষ্য নিজের শরীরে বায়ু সঞ্চার সঠিক রেখে দৃঢ় শরীরযুক্ত হোক এবং স্তুতি প্রাপ্ত করুক ॥৬॥

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