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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 10
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त
    66

    उदायु॑षा॒ समायु॒षोदोष॑धीनां॒ रसे॑न। व्यहं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । आयु॑षा । सम् । आयु॑षा । उत् । ओष॑धीनाम् । रसे॑न ।वि । अ॒हम् । सर्वे॑ण । पा॒प्मना॑ । वि । यक्ष्मे॑ण । सम् । आयु॑षा ॥३१.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदायुषा समायुषोदोषधीनां रसेन। व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण समायुषा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । आयुषा । सम् । आयुषा । उत् । ओषधीनाम् । रसेन ।वि । अहम् । सर्वेण । पाप्मना । वि । यक्ष्मेण । सम् । आयुषा ॥३१.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 31; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आयु बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (आयुषः) जीवन [उत्साह] के साथ (उत्=उद्भव) खड़ा हो (आयुषा) जीवन के साथ (सम्=सम् भव) पराक्रमी हो। (ओषधीनाम्) औषधियों अन्न आदि के (रसेन) रस [भोग] से (उत्=उद्भव) ऊँचा हो। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब कर्म से... [म० १] ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य जीवन भर उद्योगी तथा पराक्रमी रहे, और अन्न आदि पदार्थों के भोगों के अनुसार उपकार का प्रतिफल देकर जीवन सुफल करे ॥१०॥ इस मन्त्र में ‘भव’ पद की अनुवृत्ति मन्त्र ९ से आती है ॥

    टिप्पणी

    १०−(उत्) अत्र पूर्वमन्त्राद् भव इति क्रियापदम् अनुवर्तते। उद्भव ऊर्ध्वो वर्तस्व। (आयुषा) जीवनेन। उत्साहेन। (सम्) सम्भव। पराक्रमी भव। (ओषधीनाम्) अ० ३।५।१। व्रीहियवादीनाम्। (रसेन) आयुष्करेण सारेण। अन्यत् स्पष्टम् ॥

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    विषय

    ओषधीनां रसेन

    पदार्थ

    १. (आयुषा) = आयुष्य के द्वारा (उत्) = मैं मृत्यु से ऊपर उहूँ। (आयुषा सम्) = उत्कृष्ट दीर्घजीवन से सङ्गत हो। (ओषधीनां रसेन) = जी-चावल आदि ओषधियों के रस के द्वारा (उत्) = मैं रोगों से दूर रहूँ। ओषधियों के रस का प्रयोग करते हुए मैं मृत्यु से बचा रहै, रोगों का शिकार न होऊँ। २. मैं सब पापों से पृथक् होकर उत्कृष्ट दीर्घजीवन से सङ्गत होऊँ।

    भावार्थ

    ओषधियों का रस मुझे नौरोग बनाए और दीर्घजीवन प्राप्त कराए।

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    भाषार्थ

    (आयुषा) आयु द्वारा (उत्) उत्थान करूँ, (आयुषा) आयु द्वारा (सम्) समुन्नत होऊँ, (औषधीनाम् रसेन) ओषधियों के रस द्वारा (उत्) उत्थान करूँ। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पापों से (वि) वियुक्त होऊँ, (यक्ष्मेण) यक्ष्मा रोग से (वि) वियुक्त होऊँ, (आयुषा) स्वस्थ तथा दीर्घ आयु से (सम्) सम्बद्ध होऊँ।

    टिप्पणी

    [ओषधियों के रसों के सेवन द्वारा आयु स्वस्थ होती और समुन्नत होती है। इससे पापों के करने से सेवक बचा रहता, तथा यक्ष्म आदि रोगों से छुटकारा पा लेता है।]

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    विषय

    पाप से मुक्त होने का उपाय ।

    भावार्थ

    (आयुषा) दीर्घ आयु से हम (उत् अस्थाम) उन्नत दशा को प्राप्त कर मृत्यु से दूर रहें। (आयुषा सम्) आयु से सम्पन्न होकर इस लोक में विराजमान रहें और यदि रोग आवे तो (ओषधीनां रसेन) ओषधियों के रसों से (उद्) मृत्यु को दबा कर हम बने रहें। (घि अहं सर्वेण पाप्मना०) इत्यादि पूर्ववत् ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। पाप्महा देवता। १-३, ६-११ अनुष्टुभः। ७ भुरिग। ५ विराङ् प्रस्तार पंक्तिः। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Negativity

    Meaning

    Rise with life energy. Live on with life energy. Live on and rise by the life-giving juice of vital herbs. Let me, too, free from all sin, free from cancer and consumption, enjoy full age with good health.

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    Translation

    May we rise up full of life. May we be conjoined with life. ‘May we rise up with the sap of plants. May I be free from -all evil and from wasting disease. May I be conjoined with a long life.

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    Translation

    O Jiva; rise up with life, be conjoined with life, be up with the juice of herbaceous Plants, etc. etc.

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    Translation

    Let us advance enjoying a long life, and keep death away. Let us flourish in the world, acquiring a long life Let us suppress death by the use of medicinal juices. May I, being free from sins and pulmonary disease, be yoked with old age.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(उत्) अत्र पूर्वमन्त्राद् भव इति क्रियापदम् अनुवर्तते। उद्भव ऊर्ध्वो वर्तस्व। (आयुषा) जीवनेन। उत्साहेन। (सम्) सम्भव। पराक्रमी भव। (ओषधीनाम्) अ० ३।५।१। व्रीहियवादीनाम्। (रसेन) आयुष्करेण सारेण। अन्यत् स्पष्टम् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (আয়ুষা) আয়ু দ্বারা (উৎ) উত্থান করি, (আয়ুষা) আয়ু দ্বারা (সম্) সমুন্নত হই, (ওষধীনাম্ রসেন) ঔষধির রস দ্বারা (উৎ) উত্থান করি। (অহম্) আমি যেন (সর্বেণ পাপ্মনা) সব পাপ থেকে (বি) বিযুক্ত হই, (যক্ষ্মেণ) যক্ষ্মা রোগ থেকে (বি) বিযুক্ত হই, (আয়ুষা) সুস্থ এবং দীর্ঘ আয়ুর সাথে (সম্) সম্বন্ধিত হই।

    टिप्पणी

    [ঔষধির রসের সেবন দ্বারা আয়ু সুস্থ হয় এবং সমুন্নত হয়। ফলে পাপ করার হাত থেকে সেবক রক্ষা পায়, এবং যক্ষ্মা আদি রোগ থেকে মুক্ত হয়ে যায়।]

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    मन्त्र विषय

    আয়ুর্বর্ধনায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (আয়ুষঃ) জীবন [উৎসাহ] এর সাথে (উৎ=উদ্ভব) স্থিত হোক (আয়ুষা) জীবনের সাথে (সম্=সম্ ভব) পরাক্রমী হোক। (ওষধীনাম্) ঔষধি অন্ন আদির (রসেন) রস [ভোগ] করে (উৎ=উদ্ভব) উচ্চ/উদ্ভব হোক। (অহম্) আমি (সর্বেণ) সকল (পাপ্মনা) পাপ কর্ম থেকে (বি) আলাদা এবং (যক্ষ্মেণ) রাজরোগ, ক্ষয়ী ইত্যাদি থেকে (বি=বিবর্ত্তৈ) আলাদা থাকি এবং (আয়ুষা) জীবনে [উৎসাহের] সহিত যেন (সম্=সম্ বর্তে) মিলে থাকি/সঙ্গত থাকি॥১০॥

    भावार्थ

    মনুষ্য সারাজীবন উদ্যোগী ও পরাক্রমী থাকুক, এবং অন্ন আদি পদার্থের ভোগের অনুসারে উপকারের প্রতিফল দিয়ে জীবন সুফল করুক ॥১০॥ এই মন্ত্রে ‘ভব’ পদ এর অনুবৃত্তি মন্ত্র ৯ থেকে এসেছে ॥

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